20 रुपए में हजार लीटर फ्लोराइड मुक्त पानी
आईआईटी गुवाहाटी ने विकसित की क्रांतिकारी तकनीक
फ्लोराइड युक्त पानी से भारत के लोगों को मिलेगी मुक्ति
गुवाहाटी, 19 जून (एजेंसियां)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने 20 रुपए में 1000 लीटर फ्लोराइड मुक्त पानी उपलब्ध कराने वाली तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में 1000 लीटर पानी को शुद्ध करने की लागत केवल 20 रुपए आएगी। इस तकनीक को बहुत कम निगरानी की आवश्यकता होती है और इसका अनुमानित जीवनकाल 15 वर्ष है।
इस आविष्कार से आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही सस्ती, देसी और असरदार तकनीक खोज ली है। जिसकी मदद से सिर्फ 20 रुपए खर्च करके 1000 लीटर तक भूमिगत जल को पीने लायक साफ पानी में बदला जा सकता है। यह तकनीक पानी को पूरी तरह से सुरक्षित और पीने लायक बना देता है, साथ ही यह बहुत सस्ता भी है। यह सिस्टम 94 प्रतिशत आयरन और 89 प्रतिशत फ्लोराइड को हटाकर पानी को पूरी तरह पीने लायक और सुरक्षित बनाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह तकनीक रोजाना 20,000 लीटर पानी तक को साफ करने में मदद कर सकती है।
फ्लोराइड भूजल में प्राकृतिक फिर इंसानों द्वारा की गई गतिविधियों से पहुंचता है। फ्लोराइड वाला पानी पीने से स्केलेटल फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है, जिसमें शरीर की हड्डियां काफी कमजोर और सख्त हो जाती हैं और जोड़ों में दर्द बना रहता है। लेकिन आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित किए गए तकनीक की मदद से भारत के लोग इस समस्या से बच सकेंगे क्योंकि यह उपकरण महज 20 रुपए में हजार लीटर पानी को फ्लोराइड से 89 प्रतिशत तक साफ करने उसे पीने लायक पानी बना देता है।
आईआईटी द्वारा यह तकनीक विशेष रूप से असम के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्सेनिक और फ्लोराइड मुक्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए विकसित की गई है। यह तकनीक भारत सरकार को देश के कई अन्य राज्यों में ग्रामीण आबादी को दूषित पानी से बचाने में मदद करेगी। आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित यह उपकरण लाखों भारतीयों के गंभीर स्वास्थ्य संकट का निदान करने वाला है। विशेष रूप से असम, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, बंगाल, झारखंड और गुजरात जैसे राज्यों में, जहां भूजल में अत्यधिक फ्लोराइड के कारण कंकाल फ्लोरोसिस जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं।
केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकाइत ने उस शोध दल का नेतृत्व किया, जिसने वास्तविक जमीनी स्थितियों का परीक्षण करने और उसका मुकाबला करने वाली तकनीक विकसित करने में मात्र 12 सप्ताह का समय लगाया। प्रतिष्ठित एसीएस ईएसएंडटी वाटर जरनल में प्रकाशित शोध निष्कर्ष यह बताता है कि आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित उपकरण दूषित पानी से 94 प्रतिशत आयरन और 89 प्रतिशत फ्लोराइड हटाने की तकनीकी क्षमता रखता है, जिससे पानी का स्तर भारतीय सुरक्षा मानकों के अनुकूल आ जाता है।
इस उपकरण को प्रयोग के तौर पर असम राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग और काकती इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से चांगसारी इंस्टॉल किया गया और वह पूरी कामयाबी के साथ काम कर रहा है। इस उपकरण की खासियत उसकी कुशल डिजाइन, ऊर्जा की किफायती खपत और न्यूनतम रखरखाव है। इस उपकरण की अनुमानित जीवन अवधि कम से कम 15 साल बताई गई है। इस उपकरण में हर छह महीने पर इलेक्ट्रोड बदलना होगा। इस मशीन को न्यूनतम पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है। शोध धल के नेता प्रोफेसर पुरकाइत ने कहा, हम यूनिट को संचालित करने और इलेक्ट्रो-कोएग्युलेशन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस का उपयोग करने के लिए सौर या पवन ऊर्जा के उपयोग की भी खोज कर रहे हैं। इस शोध में पोस्ट-डॉक्टरल एसोसिएट्स डॉ. अन्वेषन और डॉ. पियाल मंडल के साथ-साथ रिसर्च स्कॉलर मुकेश भारती शामिल थे। ये सभी आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग से संबद्ध हैं।