बॉर्डर पर 30 अहम रक्षा परियोजनाओं को मिली मंजूरी

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति का महत्वपूर्ण फैसला

बॉर्डर पर 30 अहम रक्षा परियोजनाओं को मिली मंजूरी

लद्दाख से सिक्किम और अरुणाचल तक विस्तृत हैं प्रोजेक्ट्स

बॉर्डर रोड, हवाई पट्टी, आयुध भंडार और सैनिक आवास बनेंगे

नई दिल्ली, 11 जुलाई (एजेंसियां)। चीन से लगने वाले बॉर्डर के लिए भारत ने कई अहम रक्षा परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। ये परियोजनाएं पूर्वी लद्दाख से लेकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई हैं। इन परियोजनाओं में मूल रूप से फारवर्ड एविएशन बेस के लिए बुनियादी ढांचावास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोलपर मिसाइलों और महत्वपूर्ण सड़क संपर्कों के लिए सुविधाओं का निर्माण आदि शामिल हैं। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने इन परियोजनाओं को मंजूरी दी है। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्टैंडिंग कमेटी ने 30 से ज्यादा रक्षा और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं का मूल्यांकन किया और इन सभी को मंजूरी दे दी। इनमें से 26 परियोजनाएं लद्दाख में हैं। बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने की।

इन परियोजनाओं के लिए वन्यजीव बोर्ड की मंजूरी इसलिए जरूरी है, क्योंकि ये परियोजनाएं काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य और चांगथांग कोल्ड डेजर्ट अभयारण्य (लद्दाख)दिबांग वन्यजीव अभयारण्य (अरुणाचल प्रदेश) और पंगोलखा अभयारण्य (सिक्किम) जैसे संरक्षित इलाकों में हैं। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने म्यांमार सीमा के पास अरुणाचल फ्रंटियर हाई-वे के काम को भी मंजूरी दी है। सबसे अहम परियोजना दौलत बेग गोल्डी (डीबीजी) से बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) हट के बीच की सड़क के निर्माण का है। यहां 10.26 किलोमीटर लंबी सड़क बननी है, जहां भारत और चीन की सेना के सीनियर अफसर बॉर्डर से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मिलते हैं। यह इलाका समुद्र से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है और यहां सबसे ऊंची हवाई पट्टी भी है। रक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति को बताया था कि डीबीजी और बीपीएम के बीच कोई सड़क नहीं है, जबकि दूसरी ओर चीन ठोस सड़क बना रहा है।

काराकोरम अभयारण्य में तिब्बती हिरनशापोजंगली याकभरलहिम तेंदुआहिमालयी ग्रे भेड़ियालिंक्स और मार्मोट जैसे दुर्लभ वन्यजीव रहते हैं। दिबांग अभयारण्य तेंदुए और बाघों का घर है जबकि एशियाई काला भालूअन्य जीवों के साथ पंगोलखा अभयारण्य में रहता है। इसके अलावा अन्य जिन अहम परियोजनाओं को मंजूरी दी गई हैउनमें तोपखाना रेजिमेंट के सैनिकों के लिए आवासएक फील्ड अस्पतालश्योक में फारवर्ड एविएशन बेस के लिए विमानन हेतु बुनियादी ढांचे का निर्माण और कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के उपकरणों का पता लगाने के लिए तकनीकी बुनियादी ढांचे का निर्माण वगैरह शामिल हैं। इसके अलावा सियाचिन क्षेत्र के लिए भी अहम मंजूरी दी गई है। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि परतापुर का परियोजना सियाचिन ग्लेशियर में उड़ान गतिविधियों के लिए अहम होगी।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पूर्वोत्तर में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए मालिन-बलुआ-कपुड़ा सड़क को मंजूरीसिक्किम में पाक्योंग जिले के पंगोला में एक सीमा चौकी और ऋषि-रोंगली-कुपुप सड़क सुधार को मंजूरी दी है। इस तरह राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने लद्दाखसिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में 30 रक्षा परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) सिक्किम में कुपुक-शेराथांग रोड और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में उत्तर-दक्षिण रोड सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों और पुलों के निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। भारत और चीन ने देपसांग और डेमचोक में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया हैजिसके परिणामस्वरूप टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी हो रही है। भारत चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सड़कोंपुलोंसुरंगों और सैन्य बुनियादी ढांचे सहित विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से अपने सीमावर्ती बुनियादी ढांचे और रक्षा क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा रहा हैजिसका उद्देश्य कनेक्टिविटीसैन्य तैनाती और समग्र सुरक्षा में सुधार पर केंद्रित है। ये परियोजनाएं नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैंजिससे सैनिकों की तेज़ आवाजाहीआपूर्ति श्रृंखला दक्षता और बेहतर निगरानी संभव हो पाती है।

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सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में संपर्क बेहतर बनाने के लिए कई सड़क और पुल निर्माण परियोजनाएं चला रहा है। परियोजनाओं में गोला-बारूद भंडारण सुविधाएंबटालियन शिविरदूरसंचार नेटवर्क और सेना की तैयारियों को बढ़ाने के लिए अन्य रणनीतिक संपत्तियां शामिल हैं। मसलन अटल सुरंग और सेला सुरंग जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य सभी मौसमों में संपर्क प्रदान करना और सैन्य आवाजाही को सुगम बनाना है। सीमावर्ती क्षेत्रों में हवाई अड्डों और हेलीपैडों के विकास से हवाई सहायता क्षमताओं में सुधार किया जा रहा है। भारत अपनी सीमा निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ड्रोन सहित उन्नत निगरानी तकनीकों में निवेश कर रहा है।

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प्रोजेक्ट स्वस्तिक परियोजना ऋषि-रोंगली-कुपुओ सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग के दोहरे लेन के स्तर तक सुधारने पर केंद्रित है। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने लद्दाख में 11 रक्षा परियोजनाओं को मंजूरी दी हैजिनमें दूरसंचार टावरगोला-बारूद भंडारण और बटालियन शिविर शामिल हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य संभावित खतरों को रोकना और सीमा पर किसी भी स्थिति का प्रभावी ढंग से जवाब देने की भारत की क्षमता को बढ़ाना है। सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी ढांचा स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक विकास और संपर्क को भी बढ़ावा दे सकता है। साथ ही ये परियोजनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के अपने बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित चिंताओं का समाधान करती हैं।

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