राज्य भाजपा में आंतरिक कलह से तंग आकर कार्यकर्ता पार्टी से दूरी बना रहे

राज्य भाजपा में आंतरिक कलह से तंग आकर कार्यकर्ता पार्टी से दूरी बना रहे

बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| विपक्षी भाजपा में नदी में बहते पानी की तरह संकट सुलझता नहीं दिख रहा है| आरोप लग रहे हैं कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी सत्ताधारी दल में हो रहे घटनाक्रम और सरकार की नाकामियों को जनता तक पहुंचाने में नाकाम साबित हो रही है|
 
तीन दरवाजों वाले घर जैसी भाजपा की गुटबाजी से कार्यकर्ता खुद तंग आ चुके हैं और पार्टी की गतिविधियों से मुंह मोड़ रहे हैं| इससे स्वाभाविक रूप से नेताओं की नींद हराम हो गई है| चाहे कितनी भी नाराजगी और पारिवारिक प्रेम क्यों न हो, जब पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पार्टी अध्यक्ष या विपक्ष के नेता थे, तो वे कार्यकर्ताओं को पहचानते, उनकी पीठ थपथपाते और उनका हौसला बढ़ाते थे| इसी वजह से, बीएसवाई से चाहे कितना भी असंतोष क्यों न हो, कार्यकर्ता पार्टी संगठन में जुट जाते थे| अब, समय बदलने के साथ, वफादारों की पहचान करना संभव नहीं है| इसके बजाय, कार्यकर्ताओं को लगता है कि उनके समर्थकों को ही रणनीतिक स्थानों पर बिठाया जा रहा है|
 
नेता चाहे जितना भी दावा करें कि हम सब एकजुट हैं, हकीकत पार्टी से अलग है| देश में भाजपा भले ही मजबूत है, लेकिन यहां स्थिति उलट है| ज्यादातर लोग पार्टी की इस हालत की वजह येदियुरप्पा जैसे मजबूत नेता का न होना और सबको विश्वास में न लेना मान रहे हैं| हालांकि भाजपा अध्यक्ष पद की घोषणा की उल्टी गिनती शुरू होने की चर्चाएं हैं, लेकिन आलाकमान के नेता आधिकारिक घोषणा से आगे नहीं बढ़ रहे हैं| राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आलाकमान के नेताओं के दरबार तक पहुंच रही आरोपों की बौछार इसकी वजह है| भाजपा अध्यक्ष गुट को भरोसा था कि विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल के भाजपा से निष्कासन के बाद सब ठीक हो जाएगा| लेकिन उम्मीद के मुताबिक ऐसा नहीं हो रहा है| यतनाल गुट के असंतुष्ट सदस्य लगातार अपनी मांगें उठा रहे हैं| वे अलग-अलग बैठकों के जरिए अंदरूनी बगावत के संकेत दे रहे हैं|

 बी.वाई. विजयेंद्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं| उन्हें मनोनीत किया जा चुका है| लेकिन भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया जैसी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है| हालांकि यह प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसमें काफी देर हो रही है| विजयेंद्र को आधिकारिक तौर पर अध्यक्ष क्यों नहीं घोषित किया जा रहा है, इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है| भाजपा में आंतरिक अराजकता थमी नहीं है| एक ओर असंतुष्ट गुट और विजयेंद्र गुट के बीच समस्या बढ़ती जा रही है| दूसरी ओर, विपक्षी नेता आर. अशोक और प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र के बीच समन्वय का अभाव है| इसका कोई समाधान निकालना संभव नहीं है| इन सारी अराजकता का सीधा असर भाजपा पार्टी की गतिविधियों पर पड़ रहा है| राज्य में भाजपा २०२३ के चुनावों में झटका लगने के बाद उभर नहीं पाई है| भले ही सत्ता विजयेंद्र को सौंप दी गई हो, लेकिन इसका कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ रहा है|
 
भाजपा को राज्य सरकार से लड़ने में भी झटके लग रहे हैं| वर्तमान में, भाजपा के प्रदेश नेतृत्व पर यह सबसे बड़ा आरोप सुनने को मिल रहा है| आरोप है कि राज्य भाजपा सत्ताधारी दल के साथ समझौतावादी राजनीति कर रही है| असंतुष्ट गुट लगातार यह आरोप लगा रहा है| इससे पहले, बसनगौड़ा पाटिल यतनाल यह आरोप लगाते थे| अब असंतुष्ट धड़े के अन्य सदस्यों की ओर से भी यही आरोप सुनने को मिल रहे हैं| फिलहाल राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की कोई संभावना नहीं है, कुछ लोग नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करके भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं| प्रदेश प्रभारी डॉ. राधामोहन ने कहा था कि ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी| लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है| जाहिर है, इन सब बातों ने कई शंकाओं को जन्म दिया है| फिलहाल, भाजपा की असहमति का समाधान निकालना जरूरी है| राज्य सरकार को दो साल पूरे हो चुके हैं| हालांकि, भाजपा एक विपक्षी दल के रूप में विफल रही है| ऐसे में, आने वाले दिनों में भाजपा कैसे लड़ेगी, यह उत्सुकता की बात है|
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