गीता को अपनाओ, अधर्म मिटाओ

योगी–भागवत ने दिया राष्ट्रधर्म का घोष

गीता को अपनाओ, अधर्म मिटाओ

मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक ने दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव का शुभारम्भ किया

लखनऊ, 23 नवम्बर(एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आज राजधानी में दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर आयोजित विशाल कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय परम्परा ने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला माना है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता की दिव्य वाणी ‘वे ऑफ लाइफ’ है और सफल जीवन की दिशा प्रदान करने वाली है। 140 करोड़ भारतवासियों के लिए श्रीमद्भगवद्गीता दिव्य मंत्र है, जिसे हर व्यक्ति को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि गीता का प्रथम श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः’ ही यह सन्देश देता है कि यहां युद्ध का मैदान भी धर्म से जोड़ा गया है, जो विश्व की किसी अन्य परम्परा में दिखाई नहीं देता। भारतीय दृष्टिकोण में कर्तव्य और धर्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, वह पुण्य का भागीदार बनता है और गलत कार्य करने वाला पाप का भागीदार। यदि प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी इस भाव से आगे बढ़े, तो समाज में केवल अच्छे कर्मों की प्रवृत्ति विकसित होगी। भारत ने प्राचीन काल से विश्व मानवता को यही सन्देश दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि दिव्य गीता प्रेरणा महोत्सव गीता के 700 श्लोकों का स्मरण कराता है, जिन्हें भारत का प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी जीवन-मंत्र की तरह अपनाता है। 18 अध्यायों में संकलित श्रीमद्भगवद्गीता धर्म, कर्तव्य और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिशा प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि जैसे पूज्य स्वामी परमात्मानन्द गिरी जी महाराज ने बताया है, गीता धर्म से आरंभ होती है और उसी भाव के साथ अपना पूर्ण विराम प्राप्त करती है। भारतीय मनीषा धर्म को कर्तव्य के साथ जोड़ती है और यही उसका मूल तत्व है।

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योगी आदित्यनाथ ने स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज द्वारा तैयार ‘जीओ गीता’ की विशेष सराहना की और कहा कि यह संग्रह श्रमिकों, किसानों, महिलाओं, विद्यार्थियों, युवाओं, नौकरीपेशा लोगों, चिकित्सकों, अधिवक्ताओं, व्यापारियों, योद्धाओं और सैनिकों के लिए गीता के महत्व को छोटे-छोटे प्रेरणादायी उद्धरणों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि इनके माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग तक गीता का सार पहुँच रहा है।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय परम्परा ने कभी यह दावा नहीं किया कि केवल हमारी उपासना विधि ही श्रेष्ठ है या जो हम कह रहे हैं वही पूर्ण सत्य है। भारत ने सदैव उदारता का परिचय दिया है—जो आया उसे शरण दी, जो पीड़ित हुआ उसके साथ खड़े रहे, और जिस पर विपत्ति आयी उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़े। भारत की भूमि ने ‘जियो और जीने दो’ का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि यही भावना ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत में भी प्रकट होती है, जो सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानने का आग्रह करती है।

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उन्होंने गीता के अंतिम श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा कि जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हों, वहाँ विजय, सुख-समृद्धि और धर्म की स्थापना निश्चित है। ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ का संदेश यह सिद्ध करता है कि धर्म और कर्तव्य के पथ पर चलने वालों की विजय अटल होती है। अधर्म के मार्ग पर चलकर स्थायी सफलता किसी को नहीं मिल सकती, यह प्रकृति का शाश्वत नियम है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने ‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः’ कहकर अपने धर्म और कर्तव्य पर अडिग रहने की प्रेरणा दी है। इसी प्रकार ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ हमें निष्काम भाव से कर्म करते रहने की सीख देता है। उन्होंने कहा कि आज के मुख्य अतिथि डॉ. मोहन भागवत निष्काम कर्म के साक्षात प्रेरणास्रोत हैं।

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शताब्दी समारोह की ओर अग्रसर है और यह अपने आप में विश्व के लिए आश्चर्य का विषय है। दुनिया भर से आने वाले एम्बेस्डर और उच्चायुक्त यह समझना चाहते हैं कि यह संगठन कैसे इतना बड़ा बना और इसकी फंडिंग का ढांचा क्या है। उन्होंने कहा कि संघ समाज के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन है, जो राष्ट्र और समाज कल्याण के लिए समर्पित भाव से कार्य करता है। प्रत्येक स्वयंसेवक जरूरतमंदों की सेवा बिना किसी भेदभाव के करता है और सेवा को कभी किसी सौदे से नहीं जोड़ता।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि जीवन को सही दिशा देने के लिए गीता को अपनाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि गीता के 700 श्लोकों में सम्पूर्ण जीवन का ज्ञान समाहित है। यदि प्रतिदिन केवल दो श्लोक पढ़कर उनके अर्थ पर मनन किया जाए और उन्हें जीवन में लागू किया जाए, तो वर्षभर में व्यक्ति का जीवन गीतामय बन सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विश्व भय और मोह में उलझकर दिग्भ्रमित हो चुका है, और ऐसे समय में गीता का मार्ग ही सच्चा मार्गदर्शन प्रदान करता है।

कार्यक्रम में जियो गीता के संस्थापक स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज, अखिल भारतीय आचार्य महासभा के महासचिव स्वामी परमात्मानन्द जी महाराज, स्वामी श्रीधराचार्य जी महाराज, स्वामी सन्तोषाचार्य जी महाराज, स्वामी धर्मेन्द्र दास जी महाराज सहित अनेक संत, विद्वान एवं गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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