G20 ने मोदी की छह बड़ी पहलें मंजूर कीं:जोहानसबर्ग से उठा नया वैश्विक तूफ़ान
अमेरिका के विरोध के बीच पहले ही दिन दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया
नई दिल्ली, 22 नवम्बर (एजेंसियां)। जोहानसबर्ग में चल रहे जी20 शिखर सम्मेलन ने पहले ही दिन दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छह नई वैश्विक पहलें जहां ग्लोबल साउथ की आवाज़ को मजबूत करती दिखीं, वहीं अमेरिका के कड़े विरोध के बावजूद जी20 घोषणा पत्र को मंजूरी मिलना सम्मेलन का सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश बनकर उभरा है। यह स्पष्ट है कि इस बार जी20 महज कूटनीतिक औपचारिकता का मंच नहीं, बल्कि वैश्विक समीकरणों को नए सिरे से लिखने की दिशा में एक साहसिक कदम है।
तीन दिन का यह वार्षिक सम्मेलन 21 नवंबर से शुरू हुआ, और इसके उद्घाटन पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा कि उनका देश जी20 की गंभीरता और वैश्विक प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अफ्रीका और ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताएं ही इस बार की एजेंडा सेटिंग का केंद्र होंगी। पीएम मोदी एक दिन पहले ही जोहानसबर्ग पहुंच चुके थे और यहां उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज सहित कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात की। उन्होंने एक्स पर लिखा कि वे दुनिया के प्रमुख मुद्दों पर ठोस परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं।
सम्मेलन के शुरुआती सत्र में ही प्रधानमंत्री मोदी ने जी20 के लिए छह नई वैश्विक पहलें प्रस्तावित कीं, जिनका उद्देश्य वैश्विक चुनौतियों से लड़ने में एकीकृत और व्यवहारिक व्यवस्था तैयार करना है। उनकी पहली बड़ी पहल मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के गठजोड़ को तोड़ने के लिए “जी20 इनिशिएटिव ऑन काउंटरिंग द ड्रग–टेरर नेक्सस” स्थापित करने की है। मोदी ने कहा कि ड्रग नेटवर्क न केवल सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करता है बल्कि आतंकवाद को आर्थिक शक्ति भी प्रदान करता है। यह पहल जी20 के भीतर सुरक्षा सहयोग को नई दिशा दे सकती है।
दूसरी पहल वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। पीएम मोदी ने “जी20 ग्लोबल हेल्थकेयर रिस्पॉन्स टीम” बनाने का सुझाव दिया, जिसमें सदस्य देशों के प्रशिक्षित डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह टीम किसी भी वैश्विक स्वास्थ्य संकट की स्थिति में तुरंत प्रभावित देशों की सहायता करेगी। कोविड-19 महामारी के दौरान हेल्थ इमरजेंसी के विफल वैश्विक प्रबंधन को देखते हुए यह प्रस्ताव अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इसके साथ ही अफ्रीका के कौशल विकास को गति देने के लिए मोदी ने “जी20 अफ्रीका–स्किल्स मल्टिप्लायर इनिशिएटिव” का प्रस्ताव रखा, जिसका उद्देश्य अफ्रीकी युवाओं को वैश्विक बाजार की जरूरतों के अनुरूप प्रशिक्षित करना है। चौथी पहल “ग्लोबल ट्रडिशनल नॉलेज रिपॉजिटरी” बनाने पर केंद्रित है, जिससे दुनिया की पारंपरिक चिकित्सा और ज्ञान प्रणाली को एक छतरी के नीचे संरक्षित और साझा किया जा सके। इसके अलावा “जी20 ओपन सैटेलाइट डेटा पार्टनरशिप” और “जी20 क्रिटिकल मिनरल्स सर्कुलैरिटी इनिशिएटिव” दो और महत्वपूर्ण प्रस्ताव रहे, जिनका सीधा असर वैश्विक तकनीकी और आर्थिक संरचना पर पड़ेगा।
इस सम्मेलन का सबसे विवादित और चर्चित हिस्सा घोषणा पत्र अपनाने से जुड़ा रहा। यह मसौदा अमेरिका की सहमति के बिना तैयार हुआ, और इसके बावजूद इसे पहले ही दिन मंजूरी मिल जाना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत और ग्लोबल साउथ की बढ़ती शक्ति को दर्शाता है। व्हाइट हाउस ने आरोप लगाया कि दक्षिण अफ्रीका हर हाल में घोषणा पत्र जारी करना चाहता था, जबकि अमेरिका उससे असहमत था। इस तनाव ने इस सम्मेलन को और राजनीतिक रूप से संवेदनशील बना दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो सम्मेलन का सीधा बहिष्कार कर दिया और दक्षिण अफ्रीका पर नस्लभेदी नीतियों का आरोप लगाया। इसके अलावा फरवरी में विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी जी20 मीटिंग में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था।
घोषणा पत्र में “जी20 क्रिटिकल मिनरल्स फ्रेमवर्क” को प्रमुखता से शामिल किया गया है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि ऊर्जा संक्रमण, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और तकनीकी विस्तार के कारण क्रिटिकल मिनरल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उत्पादक देशों—विशेषकर ग्लोबल साउथ—को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह फ्रेमवर्क उन्हें वैश्विक सप्लाई चेन में अधिक मजबूत और न्यायोचित स्थान दिलाने का प्रयास करता है।
घोषणा पत्र इस बात को भी दोहराता है कि जलवायु वित्त को “अरबों से खरबों” तक बढ़ाने की आवश्यकता है। खास तौर पर अफ्रीका में ऊर्जा असमानताओं को कम करने की जरूरत पर जोर दिया गया है। जलवायु आपदाओं में बढ़ोतरी को देखते हुए शुरुआती चेतावनी प्रणालियों के विस्तार को भी अनिवार्य बताया गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि वैश्विक दक्षिण अब केवल सहायता प्राप्त करने वाला क्षेत्र नहीं, बल्कि वैश्विक निर्णयों को प्रभावित करने वाली ताकत बन रहा है।
यूक्रेन से जुड़े मुद्दे पर मुख्य दस्तावेज में केवल एक उल्लेख है, लेकिन पश्चिमी देशों ने इस विषय पर निजी बैठकों में व्यापक चर्चा की है। अमेरिका की विवादास्पद “28 बिंदुओं वाली शांति योजना” के लीक होने के बाद यूरोपीय देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया है कि इस प्रस्ताव को संतुलित रूप देने के लिए और काम की जरूरत है। वे यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को समय देना चाहते हैं ताकि अमेरिका के साथ मिलकर एक व्यवहारिक और संतुलित शांति प्रस्ताव तैयार किया जा सके।
कुल मिलाकर, जोहानसबर्ग में हो रहा यह जी20 शिखर सम्मेलन न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाला मंच बन रहा है, बल्कि भू-राजनीतिक तनावों, जलवायु चुनौती और ग्लोबल साउथ की मांगों को दुनिया के केंद्र में ला रहा है। सम्मेलन का अंतिम दिन कई ऐतिहासिक निर्णयों की उम्मीद लेकर दुनिया की निगाहों में है।

