ज्वालामुखी की राख भारत तक पहुँची, अंतरराष्ट्रीय उड़ानें अस्त-व्यस्त
इथियोपिया का 12,000 साल पुराना ज्वालामुखी फटा
DGCA ने जारी की सख़्त चेतावनी
नयी दिल्ली, 24 नवंबर (एजेंसियां)। इथियोपिया के 12,000 साल पुराने हायली गुब्बी ज्वालामुखी के अचानक फटने से अफ्रीका से लेकर दक्षिण एशिया तक हलचल मच गई है। जिस ज्वालामुखी की पहचान एक निष्क्रिय, शांत और ‘प्री-हिस्टोरिक’ संरचना के रूप में की जाती थी, वह रविवार को अचानक भयंकर गर्जना के साथ सक्रिय हो गया। इसके बाद राख और धुएं का विशाल गुबार उठकर 14 किलोमीटर ऊंचाई तक फैल गया और देखते ही देखते भारत, पाकिस्तान, यमन और ओमान तक पहुंच गया। इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय विमानन पर पड़ा है और कई फ्लाइटें या तो रद्द हुईं, या फिर डायवर्ट करनी पड़ीं। भारत में DGCA ने एयरलाइंस से साफ कहा है कि राख से प्रभावित हवाई रास्तों से बचा जाए और रूट प्लानिंग से लेकर फ्यूल मैनेजमेंट तक तत्काल बदलाव किए जाएं।
ज्वालामुखी का यह विस्फोट न सिर्फ वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है, बल्कि वैश्विक यात्रियों के लिए भी बड़ी चिंता का विषय बन गया है। 10,000 से 12,000 साल पहले सक्रिय रहा यह ज्वालामुखी आखिरी बार कब फटा था, इसकी कोई पुख्ता ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि हायली गुब्बी अफ्रीका की ग्रेट रिफ्ट वैली में स्थित है, जहां दो टेक्टोनिक प्लेटें लगातार खिसक रही हैं। यह इलाका अपने भूगर्भीय बदलावों के लिए जाना जाता है, जिससे अचानक ज्वालामुखीय गतिविधि होना संभव है, लेकिन इतनी विशाल राख का फैलाव दुर्लभ माना जा रहा है।
विस्फोट भारतीय समयानुसार दोपहर करीब 1:30 बजे शुरू हुआ। शुरुआत में जिस धुएं को स्थानीय घटना माना गया था, वह कुछ ही घंटों में 6500 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय करते हुए अरब सागर के ऊपर पहुंच गया और फिर उत्तर भारत की ओर बढ़ने लगा। टूलूज़ VAAC (Volcanic Ash Advisory Centre) ने बताया कि विस्फोट भले ही कुछ देर बाद थम गया, लेकिन जो राख वातावरण में उठ चुकी है, वह हवा के तेज दबाव के कारण भारत की ओर बढ़ रही है। इस राख के ऊपर चलने वाले विमान इंजनों में गंभीर तकनीकी खराबी पैदा हो सकती है, क्योंकि राख इंजन के अंदर जाकर पिघलती है और टर्बाइन को फेल कर सकती है। इसी वजह से तमाम देशों में अलर्ट घोषित किया गया है।
रविवार शाम से ही विमानन कंपनियों ने सतर्कता बढ़ा दी। इंडिगो, अकासा एयर और KLM ने कई उड़ानों को रद्द कर दिया है। खासकर मध्य-पूर्व और अफ्रीका की ओर जाने वाली उड़ानों का रूट सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है, क्योंकि राख का सबसे घना गुबार इन्हीं क्षेत्रों के ऊपर मंडरा रहा है। KLM ने यूरोप से आने-जाने वाली कुछ उड़ानों को लंबा रास्ता देकर पुनर्निर्धारित किया है। इंडिगो ने कहा है कि सुरक्षा सर्वोपरि है और स्थितियों के अनुरूप उनके ऑपरेशन बदले जाएंगे। इंडिगो के मुताबिक राख के बादल का घनत्व देखते हुए उनके कुछ अंतरराष्ट्रीय मार्ग अस्थायी रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
DGCA ने सभी एयरलाइंस को स्पष्ट चेतावनी जारी कर कहा है कि पायलट राख के घने क्षेत्र में न जाएं और वैकल्पिक ऊंचाई या रूट का इस्तेमाल करें। सलाह में कहा गया है कि राख के करीब उड़ान भरने से इंजन बंद होने का खतरा बढ़ जाता है, और ऐसी घटनाएँ दुनिया में पहले भी हो चुकी हैं जब विमान राख में घुसने के बाद हवा में ‘स्टॉल’ हो गए। DGCA ने एयरलाइंस को लगातार मौसम अपडेट लेने और सभी उड़ानों में अतिरिक्त फ्यूल कैरी करने की सलाह दी है ताकि रूट बदलने पर यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
एयर इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि अब तक उनकी किसी उड़ान पर सीधा असर नहीं पड़ा है, लेकिन वे स्थिति पर चौबीसों घंटे नजर रख रहे हैं और जरूरत पड़ने पर उड़ानों की योजना बदली जाएगी। एयरलाइन के मुताबिक वे अंतरराष्ट्रीय VAAC अपडेट और DGCA निर्देशों के आधार पर निर्णय ले रहे हैं। वहीं स्पाइसजेट ने अपने यात्रियों को खासकर दुबई रूट पर उड़ान से पूर्व स्टेटस चेक करने की सलाह दी है, क्योंकि ज्वालामुखीय राख सीधे तौर पर खाड़ी क्षेत्र के रास्तों पर असर डाल सकती है।
मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे ने भी एडवाइजरी जारी की है। एयरपोर्ट ने यात्रियों से अपील की है कि वे घर से निकलने से पहले अपनी एयरलाइन से उड़ान की अद्यतन जानकारी ले लें। एयरपोर्ट प्रशासन ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर असर पड़ सकता है, इसलिए स्थिति निरंतर मॉनिटर की जा रही है। दिल्ली, हैदराबाद और बेंगलुरु एयरपोर्ट भी DGCA के निर्देशों के मुताबिक अपने-अपने नियंत्रण कक्ष में सतर्क मोड में काम कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि राख का इतना बड़ा गुबार कुछ दिनों तक वातावरण में रह सकता है। यदि हवा की दिशा बदली, तो यह संभव है कि राख भारत के और अंदरूनी इलाकों में भी दिखाई दे। हालांकि अभी यह खतरा विमानन तक सीमित है और इसका जमीन पर रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर कोई सीधा असर नहीं पड़ने वाला है। लेकिन वायु गुणवत्ता विशेषज्ञों का कहना है कि यदि गुबार ज्यादा देर तक वातावरण में रहा, तो उत्तरी और पश्चिमी भारत में सूक्ष्म कणों की मात्रा बढ़ सकती है।
यह घटना इस बात का भी संकेत है कि धरती का भूगर्भीय स्वरूप कितना अप्रत्याशित है। एक ऐसा ज्वालामुखी जो हजारों वर्ष से शांत था, वह अचानक इतनी बड़ी ऊर्जा के साथ फट पड़ता है और उसके बादल हजारों किलोमीटर दूर तक उड़ कर दूसरे देशों में उड़ानों को प्रभावित करते हैं—यह आधुनिक दुनिया के लिए भी एक चुनौती है। वैज्ञानिक इस विस्फोट के कारण, तीव्रता और भविष्य के संभावित प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं।
हवाई मार्गों पर इसका प्रभाव अगले 48 से 72 घंटों तक और देखने को मिल सकता है। मौसम विशेषज्ञों ने कहा है कि राख के बादल का मूवमेंट हवा की दिशा, ऊंचाई और नमी पर निर्भर करेगा। यदि पश्चिमी हवाएं तेज रहीं, तो यह गुबार भारत के और हिस्सों की ओर बढ़ सकता है, जिसके कारण भारत से मध्य-पूर्व जाने वाली उड़ानें लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं।
इस बीच, इथियोपिया सरकार ने अपने नागरिकों से कहा है कि वे ज्वालामुखी क्षेत्र से दूर रहें और राख गिरने वाले इलाकों में मास्क का उपयोग करें। रिफ्ट वैली के गाँवों में राख की मोटी परत गिरने की रिपोर्टें आई हैं और स्थानीय प्रशासन प्रभावित इलाकों में राहत कार्य कर रहा है। वैज्ञानिक टीमों को भी सक्रिय कर दिया गया है जो क्रेटर के तापमान, गैसों के स्तर और आगे के संभावित विस्फोटों का विश्लेषण करेंगी।

