अब हर नए स्मार्टफोन में अनिवार्य होगा ‘संचार साथी’ ऐप
सुरक्षा बढ़ेगी, लेकिन बढ़ी गोपनीयता पर बहस
नई दिल्ली, 1 दिसम्बर,(एजेंसियां)। सरकार ने डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए मोबाइल निर्माता कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे अपने सभी नए स्मार्टफोनों में ‘संचार साथी’ ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करें। इतना ही नहीं, उपयोगकर्ता इस ऐप को अपने फोन से अनइंस्टॉल भी नहीं कर सकेंगे। दूरसंचार विभाग (DoT) के इस फैसले ने एक ओर जहां उपभोक्ताओं की सुरक्षा को लेकर उम्मीदें जगाई हैं, वहीं दूसरी ओर तकनीकी कंपनियों और गोपनीयता विशेषज्ञों के बीच नई बहस भी छेड़ दी है।
सरकार की ओर से कहा गया है कि ऑनलाइन धोखाधड़ी, फर्जी कॉल एवं मैसेज, साइबर फ्रॉड और मोबाइल चोरी जैसे अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में ‘संचार साथी’ ऐप को अनिवार्य रूप से हर स्मार्टफोन का हिस्सा बनाना उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। निर्देश के अनुसार, एप्पल, सैमसंग, शाओमी, ओप्पो, वीवो समेत सभी मोबाइल कंपनियों को अगले तीन महीनों के भीतर इस आदेश को लागू करना होगा। हालांकि कई कंपनियों ने अभी इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उद्योग से जुड़े लोग मानते हैं कि कुछ निर्माता इस निर्देश का विरोध कर सकते हैं।
संचार साथी ऐप: सुरक्षा की नई परत
जनवरी 2025 में लॉन्च हुए इस ऐप को अब तक 50 लाख से अधिक लोग डाउनलोड कर चुके हैं। अगस्त तक उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ऐप की मदद से 37 लाख से अधिक चोरी या गुम मोबाइल फोनों को ब्लॉक किया जा चुका है, जबकि लगभग 23 लाख फोनों का पता लगा लिया गया है।
यह ऐप फोन के 15 अंकों वाले IMEI नंबर के आधार पर चोरी हुए डिवाइस को तुरंत ब्लॉक करने और खोजने में मदद करता है। साथ ही, फर्जी कॉल, स्पैम एसएमएस और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर आए संदिग्ध संदेशों की शिकायत भी इसके माध्यम से दर्ज की जा सकती है।
अब तक यह एक वैकल्पिक ऐप था, जिसे उपयोगकर्ता गूगल प्ले स्टोर या एप्पल ऐप स्टोर से डाउनलोड करते थे। लेकिन नए निर्देश के बाद यह हर नए मोबाइल में डिफ़ॉल्ट रूप से मौजूद रहेगा और पुराने स्मार्टफोनों में भी सॉफ़्टवेयर अपडेट के जरिए जोड़ा जाएगा।
सरकार का दूसरा बड़ा फैसला: सिम-बाइंडिंग अनिवार्य
साइबर सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए DoT ने हाल ही में व्हाट्सऐप, टेलीग्राम, सिग्नल जैसी मैसेजिंग सेवाओं को भी ‘SIM Binding’ लागू करने का निर्देश दिया है। इसका मतलब यह है कि जिस सिम से उपयोगकर्ता ने अकाउंट बनाया है, उसकी अनुपस्थिति में ये ऐप काम नहीं करेंगे।
पहले ये सेवाएं OTP सिस्टम के जरिए ही पहचान की पुष्टि करती थीं, लेकिन अब कंपनियों को SIM के IMSI (International Mobile Subscriber Identity) तक पहुंच बनानी होगी, जो हर ग्राहक की वैश्विक पहचान होती है। इसका असर यह होगा कि व्हाट्सऐप वेब जैसी सेवाएं समय-समय पर स्वतः लॉगआउट होती रहेंगी।
सरकार का कहना है कि यह कदम फर्जी कॉल सेंटर, साइबर गैंग और मोबाइल चोरी के नेटवर्क को रोकने के लिए बेहद जरूरी है।
गोपनीयता और उपभोक्ता स्वतंत्रता पर उठे सवाल
हालांकि संचार साथी ऐप निश्चित रूप से जनहित में बनाया गया टूल है, लेकिन इसे अनिवार्य करना और उसे डिलीट करने का विकल्प न देना उपभोक्ता अधिकारों और डिजिटल स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े करता है।
तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी ऐप को स्थायी रूप से फोन में रखना उपयोगकर्ता की पसंद पर हस्तक्षेप माना जा सकता है। वहीं गोपनीयता अधिकार समूह चिंतित हैं कि SIM-बाइंडिंग और अनिवार्य ऐप जैसी नीतियां निगरानी के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
इसके अलावा, फोन निर्माता कंपनियां भी इस बात से असहज दिख सकती हैं क्योंकि प्री-इंस्टॉल्ड और न हटाए जा सकने वाले ऐप्स उपयोगकर्ता अनुभव को प्रभावित कर सकते हैं। दुनिया भर में उपभोक्ताओं ने पहले भी ऐसे "ब्लोटवेयर" के खिलाफ नाराजगी जताई है।
संतुलन की जरूरत: सुरक्षा भी, स्वतंत्रता भी
डिजिटल सुरक्षा आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। ‘संचार साथी’ जैसा ऐप निश्चित रूप से मोबाइल चोरी और साइबर फ्रॉड रोकने में प्रभावी साबित हुआ है। लेकिन सवाल यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि क्या सुरक्षा के नाम पर उपयोगकर्ता की आज़ादी सीमित की जा सकती है?
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार यदि ऐप को डिफ़ॉल्ट रूप से इंस्टॉल कराती, लेकिन उसे हटाने का विकल्प खुला रखती, तो उपयोगकर्ता भरोसा और पारदर्शिता दोनों बढ़ते।
फिर भी, यह निर्णय भारत के डिजिटल भविष्य और उपभोक्ता अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण मोड़ की तरह उभर रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि तकनीकी कंपनियाँ और नागरिक समाज इस कदम पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।

