दिल्ली-NCR प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: केंद्र से दोबारा मांगा प्रभावी एक्शन प्लान

पराली पर ठीकरा फोड़ने पर उठाए बड़े सवाल

दिल्ली-NCR प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: केंद्र से दोबारा मांगा प्रभावी एक्शन प्लान

नई दिल्ली, 1 दिसम्बर,(एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियों से कहा कि वे अपने मौजूदा एक्शन प्लान का पुनर्मूल्यांकन करें। न्यायालय ने पूछा कि अब तक लागू की गई नीतियों और कदमों ने वास्तव में कितना प्रभाव डाला है और क्या वे वर्तमान प्रदूषण संकट से निपटने के लिए पर्याप्त हैं।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने साफ कहा कि सरकार को सच का सामना करना चाहिए—क्या मौजूदा उपाय प्रभावी हैं या केवल कागजी कार्रवाई भर? उन्होंने केंद्र और सीएक्यूएम (CAQM) से स्पष्ट रूप से पूछा कि क्यों न पूरी कार्ययोजना का दोबारा मूल्यांकन किया जाए ताकि यह समझा जा सके कि कौन से कदम काम कर रहे हैं और कौन से नहीं।


पराली जलाने पर ही दोष क्यों? वैज्ञानिक विश्लेषण की मांग

सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र का पक्ष रख रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी से सीधा सवाल किया कि पराली जलाने के अलावा वे कौन से प्रमुख कारक हैं जो दिल्ली की हवा को जहरीला बना रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस धारणा पर आपत्ति जताई कि किसानों को ही प्रदूषण का मुख्य कारण बताते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। न्यायालय ने कहा—
“उस वर्ग पर दोष मढ़ना बहुत आसान है जिसका अदालत में प्रतिनिधित्व नहीं होता। यह समझना जरूरी है कि पराली जलाने के अलावा भी कई बड़े कारक प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। चार-पांच साल पहले लोग नीला आसमान देखते थे, अब क्यों नहीं दिखता?”

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न्यायालय ने वैज्ञानिक और तकनीकी विश्लेषण कराने पर जोर देते हुए कहा कि केवल किसानों पर दोष डालकर समस्या का समाधान नहीं होने वाला। वाहन प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन, धूल, निर्माण गतिविधियाँ और मौसम संबंधी स्थितियाँ इस संकट के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।

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सुप्रीम कोर्ट हर महीने दो बार करेगा सुनवाई

वायु प्रदूषण के मुद्दे को ‘जन-स्वास्थ्य आपदा’ बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह अब इस मामले की सुनवाई हर महीने कम से कम दो बार करेगा। अदालत का मानना है कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता की समस्या वर्ष दर वर्ष दोहराई जाती है और इस चक्र को तोड़ने के लिए ठोस और व्यवस्थित कार्रवाई की जरूरत है।

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न्यायालय ने यह भी कहा कि सर्दियों के बाद प्रदूषण कुछ हद तक कम हो सकता है, लेकिन इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि समस्या खत्म हो गई। न्यायालय ने टिप्पणी की—“इतिहास खुद को दोहराएगा, यदि व्यवस्थागत खामियों को दूर नहीं किया गया।”

मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।


प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर चिंता: AQI फिर ‘खराब’ श्रेणी में

जबकि सर्वोच्च न्यायालय प्रदूषण नियंत्रण की नीतिगत खामियों पर विचार कर रहा था, उसी समय दिल्ली की हवा लगातार खराब होती जा रही थी।

सीपीसीबी (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, सोमवार सुबह 7 बजे दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 299 दर्ज किया गया, जो “खराब” श्रेणी में आता है। एक दिन पहले शाम 4 बजे AQI 279 था।

रविवार को वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच गई थी, जबकि शनिवार को AQI 305 तक चला गया था। दो दिनों की अस्थायी सुधार के बाद फिर हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर की ओर लौटती दिखाई दी।

विशेषज्ञ मानते हैं कि हवा की गतिशीलता, गिरते तापमान और हवा की दिशा में बदलाव के साथ स्थानीय प्रदूषण स्रोतों का प्रभाव बढ़ जाता है। ऐसे में अदालत की ओर से योजनाओं के पुनर्मूल्यांकन की मांग बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।


केंद्र और एजेंसियों के लिए बड़ा संकेत—अब ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों ने केंद्र, दिल्ली सरकार और प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों के लिए स्पष्ट संदेश दिया है—

  • केवल पराली को दोष देना पर्याप्त नहीं

  • वैज्ञानिक डेटा आधारित नीति अनिवार्य

  • मौजूदा उपायों का प्रभावी मूल्यांकन होना चाहिए

  • समस्या को केवल मौसम पर छोड़ना विकल्प नहीं

दिल्ली-NCR के लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे को देखते हुए अब अदालत ने जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में निर्णायक कदम उठाने का संकेत दे दिया है।