पुतिन से पहले दिल्ली पहुँचे रूसी कमांडो, सुरक्षा की कमान संभाली
Modi–Putin वार्ता में होंगे कई रणनीतिक ऐलान
नई दिल्ली, 2 दिसम्बर,(एजेंसियां)। दिल्ली इस समय एक बहु-स्तरीय और अत्यधिक संवेदनशील सुरक्षा ऑपरेशन के केंद्र में बदल चुकी है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले दर्जनों रूसी कमांडो राजधानी पहुँच चुके हैं और उन्होंने सुरक्षा की कमान अपने हाथ में ले ली है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 50 से अधिक रूसी सुरक्षा अधिकारी पिछले कई दिनों से दिल्ली में मौजूद हैं और उन्होंने मुख्य कार्यक्रम स्थलों, संभावित होटल-स्थानों, एयरपोर्ट लैंडिंग ज़ोन, वैकल्पिक मार्गों और इमरजेंसी निकासी पथों का माइक्रो-विश्लेषण शुरू कर दिया है।
रूसी “इनर रिंग” सुरक्षा टीम भारत की एजेंसियों—दिल्ली पुलिस, स्पेशल सेल, एसपीजी और केंद्रीय सुरक्षा तंत्र—के साथ मिलकर एक संयुक्त सुरक्षा कवच तैयार कर रही है। AI आधारित निगरानी, ड्रोन-डिटेक्शन सिस्टम, स्नाइपर तैनाती और 24×7 कमांड-एंड-कंट्रोल रूम की तैयारी तेज़ी से चल रही है। पुतिन के कार्यक्रमों को अत्यंत गोपनीय रखा गया है, पर माना जा रहा है कि 4–5 दिसंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन के लिए तैयारियाँ लगभग अंतिम चरण में हैं।
सुरक्षा इंतज़ामों से साफ है कि पुतिन की यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि वैश्विक तनावों के दौर में होने वाली एक हाई-स्टेक रणनीतिक मुलाक़ात है। अमेरिका की घटती विश्वसनीयता, चीन की आक्रामक नीतियाँ और यूरोप की नई रणनीतिक उलझनें—इन सबके बीच भारत–रूस वार्ता पर दुनिया की नज़रें टिकी हैं। भारत जहाँ हाल के अमेरिकी टैरिफ विवादों से असहज है, वहीं रूस चीन की जनसांख्यिकीय और भू-राजनीतिक बढ़त को लेकर चिंतित है। ऐसे माहौल में दोनों देश अपनी “रणनीतिक स्वायत्तता” के सिद्धांत को और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
शिखर सम्मेलन का एजेंडा भी इसका संकेत देता है। रक्षा सहयोग इसकी धुरी बना हुआ है। S-400 मिसाइल सिस्टम की अगली खेप, Su-30MKI अपग्रेड और Su-57E स्टेल्थ फाइटर पर प्रारंभिक चर्चा संभव है। लंबी दूरी के BrahMos वेरिएंट पर भी नए प्रस्तावों पर विचार हो सकता है। इसके अलावा, Reciprocal Exchange of Logistics Support (RELOS) समझौता दोनों सेनाओं को एक-दूसरे के बेस और एयरफील्ड के इस्तेमाल की सुविधा देगा, जिससे भारत की पहुंच आर्कटिक तक और रूस की पहुंच हिंद महासागर तक बढ़ेगी।
ऊर्जा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सहमतियाँ संभव हैं। रूस के नवीनतम VVER-1200 रिएक्टरों के साथ छोटे मॉड्यूलर और फ्लोटिंग प्लांट पर समझौते की संभावनाएँ बन रही हैं। भविष्य के लिए अहम critical minerals और rare earths पर संयुक्त उपक्रम का प्रस्ताव—विशेष रूप से रूस के Far East क्षेत्र में—भारत की तकनीकी और रक्षा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूती देगा।
व्यापारिक स्तर पर दोनों देशों का कारोबार 65–66 अरब डॉलर के आसपास पहुँच चुका है और लक्ष्य 2030 तक इसे 100 अरब डॉलर तक ले जाना है। रूसी कच्चे तेल ने भारत–रूस व्यापार को नई गति दी है, जबकि भारत दवाइयों, इंजीनियरिंग सामान, कृषि और इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात को बढ़ाने पर जोर दे रहा है।
पुतिन के साथ आने वाला प्रतिनिधिमंडल भी व्यापक और उच्चस्तरीय माना जा रहा है, जिसके लिए विशेष पाक-व्यवस्था, मेडिकल ट्रांजिट और बहु-स्तरीय सुरक्षा घेरा तैयार किया गया है। यह समूचा सुरक्षा ढांचा इस बात का संकेत है कि आधुनिक वैश्विक राजनीति में नेताओं की सुरक्षा कितनी जटिल और बहुआयामी हो चुकी है। सवाल यह है कि क्या हम उस दौर में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ कूटनीतिक संवाद से पहले शहरों को क़िलों में तब्दील करना अब अनिवार्य होगा?
राजनीतिक दृष्टि से यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का महत्वपूर्ण संदेश लेकर आती है। भारत किसी एक खेमे में नहीं जाना चाहता, और रूस भी आज की अनिश्चित वैश्विक परिस्थितियों में एक स्थिर, विश्वसनीय साझेदार की तलाश में है। यही वजह है कि भारत–रूस साझेदारी 2025 में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक और रणनीतिक रूप से आवश्यक दिखाई देती है।

