अब ‘सेवा तीर्थ’ कहलाएगा PMO
शक्ति से सेवा की ओर बढ़ते नए भारत का संदेश
नई दिल्ली, 2 दिसम्बर,(एजेंसियां)।मोदी सरकार ने शासन की भाषा और दर्शन दोनों में एक बड़ा परिवर्तन करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के नए परिसर का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखा है। सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का यह नया हिस्सा अब अंतिम चरण में है, और इसे पहले ‘एग्जीक्यूटिव एन्क्लेव’ के रूप में जाना जाता था। सूत्रों के अनुसार, यह नाम परिवर्तन केवल प्रतीकात्मक बदलाव नहीं, बल्कि शासन के उस नए मॉडल का प्रतिबिंब है जिसे सरकार “शक्ति से सेवा” की ओर बढ़ते भारत का मूल चरित्र मानती है।
नया पीएमओ परिसर न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय का केंद्र होगा, बल्कि इसमें कैबिनेट सचिवालय, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय और ‘इंडिया हाउस’ जैसे महत्वपूर्ण दफ्तर भी शामिल होंगे। ‘इंडिया हाउस’ वह स्थान होगा जहां विदेशी राष्ट्राध्यक्षों और वैश्विक नेताओं के साथ महत्वपूर्ण उच्चस्तरीय वार्ताएँ होंगी। अधिकारियों के अनुसार, यह पूरा परिसर प्रशासनिक शक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सेवा का केंद्र बनेगा।
‘सेवा तीर्थ’: शासन की नई नैतिक दिशा
अधिकारियों ने बताया कि ‘सेवा तीर्थ’ नाम का उद्देश्य यह दिखाना है कि भारतीय शासन व्यवस्था अब अधिकार और शक्ति की भाषा से हटकर, सेवा, जिम्मेदारी और जवाबदेही की ओर बढ़ रही है। उनका कहना है कि यह परिवर्तन केवल प्रशासनिक ढांचे में नहीं, बल्कि देश की सार्वजनिक संस्थाओं की गहराई में हो रहे “शांत लेकिन गहन नैतिक बदलाव” का हिस्सा है।
मोदी सरकार के नौ वर्षों में कई ऐसे नाम परिवर्तन हुए हैं जो इस नई दिशा को और स्पष्ट करते हैं। प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास का नाम 2016 में बदलकर ‘लोक कल्याण मार्ग’ रखा गया, जिसका उद्देश्य विशिष्टता नहीं, बल्कि जनकल्याण का संदेश देना था। इसी तरह, राजपथ का नाम बदलकर ‘कर्तव्य पथ’ कर दिया गया, ताकि सत्ता के प्रति जनता के प्रति दायित्व को प्राथमिकता दी जा सके।
लोक भवन, कर्तव्य भवन—शासन के बदलते आयाम
राज्यों के राज्यपालों के आधिकारिक आवास ‘राजभवन’ का नाम बदलकर भी ‘लोक भवन’ किया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक बदलाव है, जो संकेत देता है कि राज्यपाल का पद जनता से दूरी का नहीं, बल्कि जनता की सेवा का है।
इसी क्रम में केंद्रीय सचिवालय का नाम बदलकर ‘कर्तव्य भवन’ कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, इस विशाल प्रशासनिक केंद्र का नाम यह दर्शाता है कि जनसेवा केवल नौकरी या अधिकार नहीं, बल्कि एक पवित्र कर्तव्य है। इन बदलावों के माध्यम से सरकार यह संदेश देना चाहती है कि शासन का हर हिस्सा पारदर्शिता, सेवा भाव और जनता के प्रति जिम्मेदारी को सर्वोच्च स्थान दे।
नया भारत: शक्ति नहीं, सेवा का प्रतीक
सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत बनाए जा रहे नए परिसरों, नए नामों और नए दर्शन का व्यापक उद्देश्य यह दिखाना है कि भारत की शासन प्रणाली नए मूल्यों पर आधारित हो रही है। अधिकारियों का कहना है कि यह केवल इमारतों और नामों का बदलाव नहीं, बल्कि शासन के चरित्र में सेवा और कर्तव्य को मूल मूल्य के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, शासन—जो पहले शक्ति, अधिकार और औपचारिकता का प्रतीक माना जाता था—अब उसे सेवा, नैतिकता और जनविश्वास के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है। ‘सेवा तीर्थ’ इसका सबसे बड़ा और ताज़ा उदाहरण है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के पूरा होने के बाद यह परिसर न केवल प्रशासनिक ढांचा मजबूत करेगा, बल्कि नए भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक भी बनेगा।

