रेवंत रेड्डी का दोहरा चेहरा उजागर

हिंदू धर्म पर प्रहार और राजनीतिक लाभ की कोशिश?

रेवंत रेड्डी का दोहरा चेहरा उजागर

बहुदेववाद और लोकदेवता पर टिप्‍पणी ने तेलंगाना की राजनीति में तूफ़ान खड़ा किया; बीजेपी और BRS दोनों ने घेरा

नई दिल्ली, 3 दिसम्बर,(एजेंसियां)।तेलंगाना की राजनीति में इन दिनों एक बयान ने ऐसा भूचाल पैदा किया है, जिसका असर न केवल राज्य में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी गूंज रहा है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कांग्रेस की कार्यकारी बैठक के दौरान जिस तरह हिंदू धर्म के देवताओं को लेकर मज़ाकिया टिप्पणी की, उसे न केवल भाजपा बल्कि BRS और समाज के विभिन्न वर्गों ने “अत्यंत असंवेदनशील और हिंदू आस्था पर प्रहार” बताया है।

रेवंत रेड्डी ने कहा—
“हिंदू धर्म में कितने देवता हैं? तीन करोड़? क्यों? अविवाहितों के लिए हनुमान हैं, दो बार शादी वालों के लिए अलग देवता, शराब पीने वालों के लिए भी देवता, चिकन खाने वालों का देवता अलग, दाल-चावल खाने वालों का अलग… हर मौके का देवता।”

हालाँकि बाद में उन्होंने इसे “हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही गई बात” बताया, लेकिन राजनीति में बोले हुए शब्द वापस नहीं आते। खासकर तब, जब बात धार्मिक आस्था पर चोट की हो।


हिंदू धर्म की विशालता को ‘मजाक’ बनाना या राजनीतिक संदेश?

भारत का हिंदू धर्म दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण और दार्शनिक रूप से व्यापक धर्म है। इसमें बहुदेववाद, लोकदेवता, ग्राम देवता, प्राकृतिक देवता, परंपराएँ, त्योहार, और कई क्षेत्रीय संस्कृतियाँ शामिल हैं।

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जहाँ एक ओर यह व्यापकता सहानुभूति, स्वतंत्रता, स्वीकार्यता और आध्यात्मिक विविधता का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इसी विविधता को “हास्यास्पद उदाहरणों” में दिखाकर एक बड़े समुदाय की भावनाओं को चोट पहुँचाई है।

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आलोचकों का सवाल है—
क्या एक मुख्यमंत्री को धर्म के आंतरिक मूल्यों की समझ नहीं? या जानबूझकर हिंदू भावनाओं को चोट पहुँचा कर राजनीतिक कैलकुलेशन साधा जा रहा है?

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बीजेपी ने घेरा—“कांग्रेस के भीतर हिंदू विरोध की गहरी जड़ें”

केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता बंडी संजय कुमार ने कहा कि कांग्रेस पार्टी में हिंदुओं के प्रति “घृणा” घर कर चुकी है। उन्होंने रेवंत रेड्डी पर आरोप लगाया कि वे AIMIM को खुश करने की राजनीति में हिंदू धर्म का मज़ाक उड़ा रहे हैं।

बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने तो इसे “कांग्रेस के अंदरूनी हिंदू-विरोधी मानसिकता का आइना” बताया।
उन्होंने कहा—
“कांग्रेस की भाषा अब कुछ कट्टरपंथी संगठनों जैसी हो गई है। यह बेहद चिंताजनक है।”


BRS ने भी रेड्डी पर दबाव बढ़ाया—“बयान तुरंत वापस लें”

यह पहला मौका है जब भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने कांग्रेस सरकार पर धार्मिक भावना आहत करने का आरोप लगाया है। कई BRS नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री का बयान अपमानजनक है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
तेलंगाना में खुद रेवंत रेड्डी ने सत्ता में आने से पहले कई मौकों पर हिंदू आस्था को लेकर आक्रामक बयान दिए थे। BRS नेताओं के अनुसार, “रेवंत रेड्डी पहले से ही एक ‘दोहरी नीति’ पर चलते हैं—कभी हिंदू भावनाओं की बात, और कभी धार्मिक मज़ाक।”


रेवंत रेड्डी का दोहरा व्यक्तित्व: सत्ता में आते ही बदला स्वर?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रेवंत रेड्डी चुनाव के दौरान अपने अलग चेहरे दिखाते थे—

  • मंदिरों में जाकर दर्शन

  • हिंदू समाज पर कई वादे

  • धर्मस्थलों को संरक्षित करने की बातें

लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी भाषा, व्यवहार और राजनीतिक प्राथमिकताओं में स्पष्ट बदलाव देखा गया।
बीजेपी इसे “सोची-समझी रणनीति” बता रही है—
“सत्ता में आते ही कांग्रेस अपने वास्तविक हिंदू विरोधी रूप में लौट आई।”

विशेषज्ञों का मानना है कि रेवंत रेड्डी अपने ‘लिबरल दर्शक वर्ग’ और AIMIM समर्थक वोटबैंक को साधने के लिए हिंदू आस्था को हल्का दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।


लोकदेवता और बहुदेववाद का मज़ाक—सामाजिक सामंजस्य को चोट

भारत में लोकदेवता—जैसे येल्लम्मा, पोचम्मा, मैसम्मा—ग्रामीण और आदिवासी समाज की सांस्कृतिक आत्मा हैं।
ये कोई काल्पनिक चरित्र नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था, संघर्ष और जीवनदर्शन से जुड़े प्रतीक हैं।

रेवंत रेड्डी की टिप्पणी ने इन्हीं लोकदेवताओं को सतही और भोजन-आधारित ‘देवता’ के रूप में चित्रित कर दिया।

यह न केवल हिंदू मुख्यधारा, बल्कि उन ग्रामीण समुदायों का भी अपमान है जिनकी परंपराएँ इन्हीं देवताओं से जीवित हैं।

विशेषज्ञों का कहना है—
“हिंदू धर्म डॉजिंग नहीं, एक्सेप्टेंस की परंपरा है। इसे मज़ाक में लेना अज्ञानता भी है और राजनीतिक अपरिपक्वता भी।”


राजनीतिक ध्रुवीकरण के समय ऐसा बयान और भी खतरनाक

देश पहले ही धार्मिक पहचान के आधार पर विभाजन और ध्रुवीकरण से गुजर रहा है। ऐसे समय में मुख्यमंत्री के स्तर का कोई भी नेता यदि मज़ाक के नाम पर धर्म पर प्रहार करता है, तो उससे तनाव, संदेह और गलतफहमी फैलना स्वाभाविक है।
राजनीतिक नेतृत्व का हर शब्द जन-सामान्य का मूड सेट करता है।

इसलिए सवाल उठता है—
क्या रेवंत रेड्डी वास्तव में मजाक कर रहे थे, या यह एक राजनीतिक संकेत था?


हिंदू धर्म की विविधता पर चोट—समाज में गलत संदेश

बहुदेववाद हिंदू धर्म की ताकत है, कमजोरी नहीं। यह धर्म की विशिष्टता है कि यहाँ हर व्यक्ति को अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता है।
रेवंत रेड्डी की टिप्पणी इस स्वतंत्रता को ‘हल्का’ दिखाने की कोशिश लगती है।

और जब यह बात एक मुख्यमंत्री के मुँह से निकलती है, तो इसका असर कई गुना बढ़ जाता है।


एक मुख्यमंत्री से परिपक्वता की उम्मीद होती है, चुटकुले की नहीं

रेवंत रेड्डी के बयान ने उनका दोहरा चेहरा उजागर कर दिया है—

  • सत्ता आने से पहले धार्मिकता

  • सत्ता में आते ही धार्मिक व्यंग्य

आस्था पर कटाक्ष केवल राजनीतिक मूर्खता नहीं, बल्कि उत्तरदायित्वहीनता का भी प्रमाण है।
आज भारत जैसी विविधता-भरी संस्कृति में नेतृत्व की परिपक्वता की आवश्यकता है—
ना कि बहुदेववाद और लोकदेवताओं पर टिप्पणी कर जनता को आहत करने की।