नई दिल्ली, 4 दिसम्बर,(एजेंसियां)। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और केंद्र सरकार के बीच एक बार फिर विदेश नीति से जुड़ा विवाद सामने आ गया है। राहुल गांधी ने दावा किया कि मोदी सरकार विदेशी नेताओं को उनसे मिलने से रोकती है, क्योंकि सरकार “असुरक्षा” महसूस करती है। उन्होंने कहा कि जब भी कोई उच्चस्तरीय विदेशी मेहमान भारत आता है या वह विदेश जाते हैं, सरकार की ओर से सुझाव दिया जाता है कि उनसे मुलाकात न की जाए। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से कुछ घंटे पहले दिया गया राहुल गांधी का यह बयान राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गया।
MEA का जवाब: विदेशी प्रतिनिधिमंडल स्वतंत्र, सरकार रोक नहीं लगाती
राहुल की टिप्पणी के तुरंत बाद विदेश मंत्रालय (MEA) ने आधिकारिक प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी विदेशी आधिकारिक दौरे के दौरान मंत्रालय की जिम्मेदारी केवल सरकारी अधिकारियों और निर्धारित सरकारी संस्थाओं के साथ मुलाक़ातों को सुगम बनाना होता है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि सरकारी ढांचे के बाहर होने वाली किसी भी राजनीतिक, सामाजिक या निजी बैठक का निर्णय पूरी तरह विदेशी प्रतिनिधिमंडल के विवेक पर निर्भर करता है।
MEA ने दोहराया कि सरकार की ओर से विपक्षी नेताओं से मुलाकातों पर कोई रोक नहीं है और थोपे गए प्रोटोकॉल जैसी कोई बात नहीं है। मंत्रालय के अनुसार, विदेशी नेता किससे मिलना चाहते हैं, यह पूरी तरह उनकी स्वतंत्र पसंद होती है।
सरकारी सूत्रों ने जारी किया राहुल गांधी की विदेशी मुलाक़ातों का ब्योरा
राहुल गांधी के आरोपों के बाद सरकारी सूत्रों ने 9 जून 2024 को उनके नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद से हुई उनकी प्रमुख विदेशी नेताओं से मुलाक़ातों का विस्तार से ब्योरा जारी किया। इनमें शामिल हैं:
-
10 जून 2024 – बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना
-
21 अगस्त 2024 – मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवार इब्राहिम
-
8 मार्च 2025 – न्यूज़ीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन
-
16 सितंबर 2025 – मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम
सूत्रों ने बताया कि इन बैठकियों का कार्यक्रम संबंधित विदेशी प्रतिनिधिमंडलों ने स्वयं तय किया था, और वे किसी सरकारी प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं थीं। MEA की भूमिका केवल उन्हीं बैठकों तक सीमित होती है जो औपचारिक तौर पर भारत सरकार के साथ निर्धारित होती हैं।
राहुल गांधी का आरोप—“परंपराओं का उल्लंघन”
संसद परिसर में मीडिया से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने कहा,
“परंपरा रही है कि जब बड़े विदेशी मेहमान भारत आते हैं, तो वे नेता प्रतिपक्ष से भी मुलाकात करते हैं। यह वाजपेयी जी के समय भी होता था और मनमोहन सिंह जी के समय भी। लेकिन आजकल सरकार सुझाव देती है कि उनसे मुलाक़ात न हो।”
उन्होंने दावा किया कि सरकार विपक्ष के अंतरराष्ट्रीय संपर्क से घबरा रही है।
“हिंदुस्तान का प्रतिनिधित्व सिर्फ सरकार नहीं करती, विपक्ष भी करता है। सरकार नहीं चाहती कि हम विदेशी नेताओं से मिलें। यह उनकी असुरक्षा का परिणाम है।”
प्रियंका गांधी का पलटवार—“सरकार को पता नहीं किस बात का डर है”
राहुल गांधी के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने कहा कि सरकार प्रोटोकॉल तोड़ रही है और लोकतांत्रिक परंपराओं को कमजोर कर रही है।
उनके शब्दों में,
“एक प्रोटोकॉल होता है—आने वाले बड़े नेताओं की नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात होती है। सरकार इसे तोड़ रही है। वे किसी और की राय सुनना ही नहीं चाहते।”
उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के कदमों से दुनिया भर में भारत की लोकतांत्रिक छवि खराब हो रही है।
“भगवान जाने उन्हें किस बात का डर है। लोकतंत्र में संवाद जरूरी है। लेकिन यह सरकार हर दूसरी आवाज़ को दबाना चाहती है।”
मामला राजनीतिक बहस में क्यों बदला?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ मुलाकातों का नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति और लोकतांत्रिक परंपराओं को लेकर दोनों दलों की धारणा का टकराव है।
-
विपक्ष का आरोप: सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की भूमिका सीमित करना चाहती है।
-
सरकार का जवाब: विदेशी नेताओं की मुलाकातें उनका निजी निर्णय होती हैं और MEA केवल आधिकारिक कार्यक्रमों में शामिल होता है।
यह विवाद ऐसे समय में उठा है जब भारत लगातार वैश्विक मंचों पर अपनी भूमिका मजबूत कर रहा है और कई शीर्ष विदेशी नेता भारत का दौरा कर रहे हैं। ऐसे में विपक्ष सरकारी रवैये को “लोकतांत्रिक परंपरा के विरुद्ध” बता रहा है, जबकि सरकार विपक्ष के आरोपों को “बेवजह की राजनीति” करार दे रही है।
बयान राजनीतिक गर्मी बढ़ाने वाला रहा
राहुल गांधी का यह बयान राजनीतिक गर्मी बढ़ाने वाला रहा है। MEA की प्रतिक्रिया और विदेशी नेताओं से राहुल के मुलाकातों के विस्तृत ब्योरे ने सरकार का पक्ष मजबूत किया है। वहीं, कांग्रेस सरकार पर लोकतांत्रिक मान्यताओं को तोड़ने का आरोप लगा रही है। आने वाले दिनों में पुतिन के दौरे और अन्य अंतरराष्ट्रीय बैठकों के दौरान इस मुद्दे की राजनीतिक प्रतिध्वनि और बढ़ने की संभावना है।

