16 साल से लंबित एसिड अटैक केस पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
न्याय व्यवस्था पर उठे बड़े सवाल
नई दिल्ली, 6 दिसम्बर,(एजेंसियां)।देश की सर्वोच्च अदालत में शुक्रवार को एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने न केवल न्याय व्यवस्था की कार्यशैली पर सवाल उठाए, बल्कि एक बार फिर पीड़ितों के दर्द और व्यवस्था की सुस्ती को भी उजागर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एक एसिड अटैक केस में 16 साल की देरी पर कड़ा ऐतराज़ जताते हुए टिप्पणी की कि अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी ऐसे गंभीर अपराधों के मामलों में न्याय इतनी धीमी गति से चलेगा, तो देश के बाकी हिस्सों से क्या उम्मीद की जा सकती है? चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को “सिस्टम के लिए राष्ट्रीय शर्म” बताते हुए सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से अपने-अपने क्षेत्राधिकार में लंबित एसिड अटैक मामलों की जानकारी एक सप्ताह के भीतर देने का निर्देश दिया।
यह मामला 2009 में हुई एक पीड़िता से जुड़ा है—जो स्वयं इस याचिका की पक्षकार हैं और व्यक्तिगत तौर पर अदालत में उपस्थित हुईं। पीड़िता ने अदालत को बताया कि 2013 तक उनके केस में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न केवल पुलिस स्तर पर बल्कि न्याय प्रणाली में भी लापरवाही का गंभीर स्वरूप मौजूद है। मामला वर्तमान में रोहिणी कोर्ट में ट्रायल के आखिरी चरण में है, लेकिन यह तथ्य कि एक एसिड अटैक केस को 16 साल लग गए, सुप्रीम कोर्ट के लिए भी असहनीय साबित हुआ।
सुनवाई के दौरान एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा उठा—कि कई मामलों में एसिड पीड़ित केवल झुलसाए नहीं जाते, बल्कि उन्हें जबरन एसिड पिलाया भी जाता है। ऐसे पीड़ित अकल्पनीय शारीरिक और मानसिक कष्ट झेलते हैं और अक्सर कृत्रिम फीडिंग ट्यूब पर निर्भर रहते हैं। अदालत ने माना कि यह अपराध न सिर्फ क्रूरता की हद पार करता है बल्कि पीड़ितों को जीवनभर के लिए गंभीर अक्षमता की स्थिति में भी धकेल देता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे मामलों को दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 के तहत विकलांगता की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए ताकि पीड़ितों को लंबे समय तक सरकारी सहायता, सुरक्षा और पुनर्वास मिल सके।
अदालत ने पीड़िताओं की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एसिड फेंकने के मामले तो सुने थे, लेकिन एसिड पिलाने की क्रूर घटनाएँ मन को झकझोर देने वाली हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की नरमी या सहानुभूति की गुंजाइश नहीं है। अपराध की गंभीरता को देखते हुए ट्रायल को विशेष अदालतों में तेज गति से चलाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामलों में देरी न केवल पीड़ित के साथ अन्याय है, बल्कि अपराधी को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण देने जैसा भी है।
इस समस्या का दायरा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। एनसीआरबी की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 844 एसिड अटैक मामले न्यायालयों में लंबित हैं, जिनमें से अधिकांश कई वर्ष पुराने हैं। यह भी चिंताजनक है कि 2021 के बाद से एसिड हमलों के मामलों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की 2024 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदालत में बताया गया कि भारत में हर वर्ष 250 से 300 एसिड अटैक केस दर्ज होते हैं, जबकि इन घटनाओं की वास्तविक संख्या 1000 से अधिक हो सकती है। कई पीड़ित सामाजिक दबाव, शर्म या कानूनी जटिलताओं के कारण शिकायत दर्ज ही नहीं करा पाते।
यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि एसिड हमलों का संबंध अक्सर व्यक्तिगत बदले, असफल प्रेम प्रस्ताव, घरेलू विवाद, संपत्ति विवाद—और कभी-कभी जातीय या सामाजिक तनाव से भी होता है। सरकार और अदालतों ने वर्षों में कई बार एसिड बिक्री पर प्रतिबंध और नियंत्रण के आदेश जारी किए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका पालन आज भी कमजोर है। खुले तौर पर केमिस्ट दुकानों पर एसिड मिल जाना या बिना सरकारी पहचान पत्र के बिक्री होना आम बात है, जिसके परिणाम पीड़ितों को जीवन भर भुगतने पड़ते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि “अगर दिल्ली जैसे शहर में न्याय इतना धीमा है, तो बाकी देश में कौन न्याय देगा?” केवल एक टिप्पणी नहीं बल्कि पूरे न्याय प्रणाली पर गहरा प्रश्नचिह्न है। इस टिप्पणी ने एक बार फिर नीति-निर्माताओं, कानून व्यवस्था और प्रशासन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम पीड़ितों की सुरक्षा और न्याय को लेकर पर्याप्त संवेदनशील हैं? और क्या वर्तमान व्यवस्था इस प्रकार के जघन्य अपराधों को रोकने में सक्षम है?
सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त रुख न केवल पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण है, बल्कि पूरे देश के लिए यह संदेश भी देता है कि न्याय की देरी अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब देखना यह है कि हाई कोर्ट से प्राप्त डेटा के बाद क्या वास्तव में एसिड अटैक मामलों के लिए विशेष कोर्ट या त्वरित सुनवाई की व्यवस्था की जाती है, या फिर यह भी किसी अन्य लंबित सुधार की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।

