Modi–Putin का 'न्यूक्लियर प्लांट' पर बड़ा गेम, हिले चीन–अमेरिका
नई दिल्ली, 6 दिसम्बर,(एजेंसियां)।भारत और रूस के संबंधों में परमाणु ऊर्जा सहयोग हमेशा से केंद्रीय स्तंभ रहा है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की संयुक्त प्रेस वार्ता ने न सिर्फ इस साझेदारी की गहराई को रेखांकित किया, बल्कि चीन और अमेरिका जैसे वैश्विक शक्तियों को भी एक बार फिर संकेत दे दिया कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता दोनों को लेकर गंभीरता से आगे बढ़ रहा है। नई दिल्ली में आयोजित इस प्रेस वार्ता में पुतिन ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र की प्रगति को भारत–रूस सहयोग का “जीवंत उदाहरण” बताया।
कुडनकुलम परियोजना भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। रूस की सरकारी परमाणु एजेंसी रोसाटॉम के साथ संयुक्त रूप से बन रहा यह विशाल प्लांट कुल छह VVER–1000 रिएक्टरों से मिलकर बनेगा, जिनकी संयुक्त उत्पादन क्षमता 6,000 मेगावाट होगी। अब तक दो रिएक्टर—इकाई 1 और इकाई 2—पहले ही 2013 और 2016 में ऊर्जा ग्रिड से सफलतापूर्वक जोड़े जा चुके हैं। बाकी चार रिएक्टरों का निर्माण तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिनमें से दो इकाइयों के लिए ईंधन आपूर्ति की नई खेप रूस से हाल ही में भारत पहुंची है। राष्ट्रपति पुतिन ने इसी प्रगति को वैश्विक मंच पर उठाते हुए कहा कि यह परियोजना दोनों देशों के बीच दशकों पुराने भरोसे की अनोखी मिसाल है।
पुतिन की यह टिप्पणी तब सामने आई जब रोसाटॉम ने तीसरे रिएक्टर की प्रारंभिक ईंधन लोडिंग के लिए ईंधन की पहली खेप भारत भेजने की पुष्टि की। यह खेप विशेष विमानों से रूस से सीधे तमिलनाडु पहुंचाई गई, ताकि सुरक्षा और समय—दोनों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा सके। यह पूरा शिपमेंट सात कार्गो फ्लाइट्स में भेजा जाएगा, जो 2024 में हुए उस समझौते का हिस्सा है जिससे कुडनकुलम की तीसरी और चौथी इकाइयों के लिए आजीवन परमाणु ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। इस समझौते से भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए दीर्घकालिक स्थिरता की गारंटी मिलती है।
भारत की तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग को देखते हुए यह परियोजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यूरेनियम ईंधन की निर्बाध आपूर्ति किसी भी परमाणु संयंत्र की लाइफलाइन होती है। रूस पिछले कई दशकों से भारत का प्रमुख यूरेनियम आपूर्तिकर्ता रहा है और नवीनतम खेप नोवोसिबिर्स्क केमिकल कंसंट्रेट प्लांट में तैयार की गई है, जो वैश्विक स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले न्यूक्लियर ईंधन के लिए प्रसिद्ध है। पुतिन ने संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि रूस, भारत की ऊर्जा सुरक्षा में अपनी भूमिका को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और तेल, गैस, कोयला तथा अन्य संसाधनों की निरंतर आपूर्ति जारी रखेगा।
रूस की यह स्पष्ट घोषणा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी सुर्खियां बटोर रही है। अमेरिका और चीन दोनों ही वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति के क्षेत्र में अपने–अपने ब्लॉक्स और प्रभाव को मजबूत करने में लगे हैं। ऐसे में भारत–रूस न्यूक्लियर सहयोग का बढ़ना उन दोनों देशों के लिए कूटनीतिक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। विशेष रूप से अमेरिका, जिसकी भारत से गहरी सामरिक साझेदारी है, रूस–भारत की बढ़ती निकटता को अपने व्यापक भू-राजनीतिक समीकरण में एक “संतुलनकारी कदम” के रूप में देख सकता है। यही कारण है कि अमेरिकी विदेश विभाग की प्रतिक्रिया में असहजता साफ दिखाई दी, जिसे भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि भारत–रूस संबंधों पर किसी देश का veto नहीं चल सकता।
पुतिन की भारत यात्रा के दौरान हुए समझौतों और ऊर्जा सहयोग पर दिए गए बयानों की वैश्विक राजनीति में गूंज इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि ऊर्जा ही 21वीं सदी की आर्थिक शक्ति का मुख्य इंजन है। भारत जैसे विशाल और तेज़ी से बढ़ते देश के लिए ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना सिर्फ विकास का सवाल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा भी बन चुका है। कुडनकुलम जैसे बड़े परमाणु संयंत्र इसी रणनीतिक विस्तार का आधार हैं। इसके पूर्ण क्षमता पर चालू होने के बाद तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कई औद्योगिक जिलों को स्थिर और सस्ती बिजली की उपलब्धता बढ़ जाएगी, जिससे विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
तमिलनाडु के दक्षिणी सिरे पर स्थित यह परियोजना सिर्फ ऊर्जा उपलब्धता ही नहीं, बल्कि भारत–रूस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का भी बड़ा उदाहरण है। VVER–1000 रिएक्टर दुनिया की सबसे सुरक्षित और आधुनिक तकनीकों में से एक माने जाते हैं। उनके निर्माण और संचालन में भारतीय इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की सक्रिय भागीदारी भारत को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी के मामले में और अधिक सक्षम बना रही है।
कुडनकुलम का विस्तार भारत की ऊर्जा रणनीति में एक बड़े परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है—जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा और पारंपरिक संसाधनों के बीच संतुलन बनाते हुए परमाणु ऊर्जा को मुख्य स्तंभ के रूप में उभारने का लक्ष्य है। इस साझेदारी में रूस की भागीदारी भारत के कूटनीतिक संदेश को भी स्पष्ट करती है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए बहु–स्रोत और बहु–साझेदार मॉडल को अपनाएगा, चाहे वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरण कुछ भी हों।
यह स्पष्ट है कि मोदी–पुतिन की यह परमाणु साझेदारी न केवल भारत की ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित कर रही है, बल्कि चीन और अमेरिका जैसे प्रतिस्पर्धी देशों के लिए एक गंभीर संकेत भी है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को और मजबूती से आगे बढ़ा रहा है।

