बंगाल में बाबरी शैली की मस्जिद की नींव रखी गई
चुनावी मौसम में ममता सरकार की चुप्पी पर गरमाई राजनीति
नई दिल्ली, 7 दिसम्बर,(एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल अचानक तेज हो गया है। मुर्शिदाबाद जिले के रेजीनगर में शनिवार को एक नई मस्जिद की नींव रखी गई, जिसके डिजाइन को अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है। इस मस्जिद का शिलान्यास सस्पेंड किए गए तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने किया। कार्यक्रम के दौरान भारी सुरक्षा व्यवस्था और स्थानीय प्रशासन की सक्रियता ने इसे और चर्चा का विषय बना दिया है। जिस तरह बाबरी मस्जिद देश की राजनीति का केंद्र रही है, उसी तर्ज पर नई मस्जिद का शिलान्यास बंगाल की राजनीतिक जमीन को भी गर्म करने लगा है।
1.jpg)
हुमायूं कबीर ने शिलान्यास के दौरान कहा कि मुसलमानों को अपने धार्मिक स्थलों को बनाने का हक है और यह मस्जिद उसी अधिकार का प्रतीक है। उनका कहना था कि यह कोई राजनीतिक कदम नहीं बल्कि लोगों की आस्था और मांग से जुड़ा हुआ मामला है। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस स्थापना को चुनावी चश्मे से देखना शुरू कर दिया है। चूंकि कबीर पहले ही टीएमसी से निलंबित किए जा चुके हैं, इसलिए उनके इस कदम को राजनीतिक भविष्य तलाशने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
इस मस्जिद के डिजाइन को बाबरी मस्जिद की तरह बनाए जाने की खबर ने इसे आम धार्मिक संरचना से अलग कर दिया है। बाबरी विध्वंस की यादें अभी भी देश की राजनीतिक चेतना में जीवित हैं, और ऐसे में बंगाल जैसे संवेदनशील राज्य में इस तरह का कदम स्वाभाविक रूप से बहस का मुद्दा बन गया। मुर्शिदाबाद पहले से ही मुस्लिम बहुल जिला माना जाता है, जहां लगभग 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है। ऐसे में इस मस्जिद के बाबरी शैली में बनाए जाने को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और भी तीखी हो रही हैं।
कांग्रेस नेता और मुर्शिदाबाद के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने इस मसले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चुप्पी पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को धार्मिक स्थल बनाने का अधिकार है, परंतु राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर क्यों ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की जा रही। उन्होंने यह भी बताया कि हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है और सरकार को उचित रिपोर्ट और कागजात प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। अधीर रंजन चौधरी इस बात से भी चिंतित दिखे कि यह मस्जिद चुनावी ध्रुवीकरण का एक नया साधन न बन जाए।
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मंदिर बनाना हो या मस्जिद, धार्मिक संरचना का निर्माण स्वयं में कोई गलत बात नहीं है, लेकिन यदि इसका उद्देश्य किसी विशेष समुदाय में उन्माद फैलाना हो, तो यह चिंता का विषय है। मांझी का बयान इस बात की ओर संकेत करता है कि भाजपा इस मुद्दे को चुनावी ध्रुवीकरण के व्यापक संदर्भ में देख रही है।
इधर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी पूरे मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हुमायूं कबीर का AIMIM के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का बयान यह साबित करता है कि तुष्टीकरण बंगाल की राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। पात्रा ने कहा कि कबीर और टीएमसी दोनों ही धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भाजपा विकास और सुशासन की राजनीति पर भरोसा करती है। पात्रा ने आरोप लगाया कि हर चुनाव से पहले टीएमसी परंपरागत वोट बैंक को पकड़े रखने के लिए ऐसे कदमों और मुद्दों को हवा देती रहती है।
राज्य की राजनीतिक जमीन में इस मस्जिद शिलान्यास की गूंज कई स्तरों पर सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय राजनीतिक सभाओं तक इस मुद्दे पर चर्चाएं हो रही हैं। लोगों में यह सवाल भी उठ रहा है कि ऐसे समय में, जब राज्य में बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और विकास जैसे मुद्दे प्रमुख होने चाहिए, तब धार्मिक स्थलों की स्थापना को केंद्र में क्यों लाया जा रहा है। इसके पीछे क्या रणनीति है और इससे किसे राजनीतिक फायदा मिल सकता है, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।
साथ ही यह भी साफ है कि ममता बनर्जी की सरकार ने अभी तक इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनकी चुप्पी को विपक्ष सरकार की रणनीतिक चुप्पी बता रहा है, जबकि टीएमसी के कुछ नेताओं ने अनौपचारिक रूप से इसे निजी कार्यक्रम बताकर इससे सरकार को अलग रखने की कोशिश की है। मगर जिस संवेदनशीलता से यह मस्जिद बन रही है और जिस प्रतीकात्मकता को इसमें जोड़ा गया है, उससे यह कहना मुश्किल है कि यह राजनीतिक मुद्दा नहीं बनेगा।
बंगाल में पहले भी धार्मिक आधार पर राजनीति होती रही है, लेकिन बाबरी शैली की मस्जिद की नींव रखे जाने जैसे कदम ने इस समीकरण को और जटिल बना दिया है। यह तय है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर बहस और तेज होगी, और चुनावों के करीब जाते-जाते यह ध्रुवीकरण की नई रेखाओं को जन्म दे सकता है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मस्जिद निर्माण को लेकर कानूनी स्तर पर क्या बाधाएं या स्वीकृतियां सामने आएंगी, लेकिन हाईकोर्ट द्वारा मामले को संज्ञान में लिए जाने से यह संकेत मिलता है कि आने वाले सप्ताहों में इस मुद्दे के और भी पहलू सामने आ सकते हैं।

