आस्था सही, पर राम पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं

आस्था सही, पर राम पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं

बाबरी मस्जिद की नींव पर धीरेंद्र शास्त्री की तीखी प्रतिक्रिया

नई दिल्ली, 7 दिसम्बर,(एजेंसियां)।कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड का वातावरण रविवार को आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक उत्साह से भरा दिखाई दिया। ‘सनातन संस्कृति संसद’ द्वारा आयोजित ‘लोकखो कंठे गीता पाठ’ कार्यक्रम में लाखों श्रद्धालुओं ने एक साथ भगवत गीता का पाठ किया। आयोजकों के अनुसार, इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में लगभग पांच लाख से अधिक लोग शामिल हुए। विशाल जनसमूह में गीता के श्लोकों की ध्वनि ने पूरे मैदान को आध्यात्मिक कंपन से भर दिया। आस्था, एकता और सांस्कृतिक चेतना की यह अभिव्यक्ति अपने आकार और प्रभाव में किसी महाकुंभ से कम नहीं रही।

कार्यक्रम में उपस्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि कोलकाता की भूमि पर गीता पाठ का यह विशाल दृश्य देखकर ऐसा लगा जैसे शहर में आध्यात्मिक महाकुंभ उतरा हो। शास्त्री ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा कि यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सनातन संस्कृति की सामूहिक शक्ति का प्रमाण है, जो देश और दुनिया के लिए शांति का मार्ग प्रस्तुत करती है। उनके अनुसार, “सनातन की एकता ही विश्व शांति का सबसे बड़ा साधन है। भारत सनातन चाहता है, तनातानी नहीं। भारत भगवा-ए-हिंद चाहता है, गजवा-ए-हिंद नहीं।”

धीरेंद्र शास्त्री ने यह भी कहा कि जब लाखों लोग एक साथ गीता का पाठ करते हैं, तो यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पश्चिम बंगाल, जो लंबे समय से राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों का केंद्र रहा है, वहां इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक साथ गीता पाठ करना एक सकारात्मक संदेश है कि समाज के भीतर सांस्कृतिक एकता की भावना गहरी है। शास्त्री ने कहा कि आध्यात्मिकता और संस्कृति का यह संगम देश में सद्भाव को मजबूत करता है।

इसी दौरान, एक अन्य विवादित मुद्दा भी चर्चा में आया—मुर्शिदाबाद के बेल्डंगा में निलंबित TMC विधायक हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी मस्जिद की नींव का प्रतीकात्मक पत्थर रखने का दावा। इस घटना ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी। धर्म और राजनीति के इस मिश्रण पर प्रतिक्रिया देते हुए धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि हर व्यक्ति की अपनी आस्था होती है और यदि कोई अपनी मान्यता के अनुरूप कुछ करता है तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “किसी की यदि ऐसी आस्था है तो वह अपनी आस्था के अनुसार इसे स्वीकार कर सकता है। इसमें कोई अपराध या गलती नहीं है।”

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हालांकि, शास्त्री की यह सहिष्णुता उस क्षण कठोर हो गई जब बात श्रीराम या राम मंदिर की हुई। बाबरी मुद्दे पर आए हालिया बयानों को लेकर उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी कि भगवान राम पर टिप्पणी को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, “आस्था अलग बात है, लेकिन कोई भी हमारे भगवान राम पर टिप्पणी नहीं कर सकता। यदि मंदिर निर्माण पर कोई टिप्पणी करता है, तो उसका अहंकार ही प्रकट होगा।” शास्त्री के इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि धार्मिक आस्था को वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता मानते हैं, लेकिन राम मंदिर और श्रीराम को वह ऐसी मर्यादा का केंद्र मानते हैं जहाँ कोई विवाद या टिप्पणी स्वीकार नहीं की जाएगी।

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राजनैतिक और धार्मिक विमर्श के इस मिश्रण में, धीरेंद्र शास्त्री का संदेश दो अलग लेकिन जुड़े हुए आयामों पर केंद्रित है। पहला, सनातन एकता और गीता ज्ञान को विश्व शांति का मार्ग मानने की उनकी धारणा; और दूसरा, राम मंदिर तथा श्रीराम के सम्मान को किसी भी बहस से परे रखने की उनकी कठोर चेतावनी। स्पष्ट है कि शास्त्री का विचार यह है कि सांस्कृतिक एकता और धार्मिक गौरव को एक साथ आगे बढ़ाया जाए, लेकिन ऐसी किसी भी टिप्पणी या गतिविधि को स्थान न दिया जाए जो श्रीराम या मंदिर को केंद्र में रखकर विवाद पैदा करे।

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कार्यक्रम के राजनीतिक आयाम भी स्पष्ट हैं। बंगाल की धरती पर पांच लाख लोगों का गीता पाठ—जहां धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति लंबे समय से मौजूद है—एक बड़ा संदेश देता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक समुदायों की सक्रियता को दिखाता है, बल्कि धीरेंद्र शास्त्री जैसे प्रभावशाली आध्यात्मिक नेताओं के बढ़ते प्रभाव को भी रेखांकित करता है। उनकी बयानबाजी धार्मिक भावनाओं को मजबूती देती है और साथ ही राजनीतिक विमर्श में भी गूंज पैदा करती है।

कोलकाता के इस आयोजन से यह स्पष्ट हुआ कि गीता पाठ, सामूहिक भक्ति और सांस्कृतिक समागम जैसे धार्मिक कार्यक्रम आधुनिक भारत की राजनीतिक-सामाजिक वास्तविकता के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। धीरेंद्र शास्त्री ने आस्था और समाज के बीच की इस कड़ी को रेखांकित करते हुए यह भी कहा कि सनातन संस्कृति के प्रसार का अर्थ विभाजन नहीं बल्कि एकता का विस्तार है। लेकिन उनके बयान के अंतिम हिस्से ने यह भी साफ किया कि राम मंदिर जैसे विषयों पर वे किसी भी प्रकार की टिप्पणी को सहन करने के पक्षधर नहीं हैं।

कोलकाता की इस ऐतिहासिक सभा ने धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान की शक्ति का एक बार फिर प्रमाण दिया। लाखों लोगों द्वारा किया गया गीता पाठ भारत की आध्यात्मिक धरोहर की मजबूती को दर्शाता है, वहीं धीरेंद्र शास्त्री के तीखे बयानों ने यह स्पष्ट किया कि धर्म और आस्था के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं होगा, खासकर तब जब विषय श्रीराम का हो। आने वाले समय में इन बयानों का राजनीतिक और धार्मिक विमर्श पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना बाकी है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि कोलकाता का यह आयोजन आने वाले वर्षों तक याद रखा जाएगा।

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