मस्जिद के शिलान्यास के पीछे राजनीतिक हताशा, चुनावी जमीन गर्माने की कोशिश: शत्रुघ्न सिन्हा
नई दिल्ली, 7 दिसम्बर,(एजेंसियां)। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आसनसोल से सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में अचानक उभरे मंदिर–मस्जिद विवाद पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने मुर्शिदाबाद ज़िले में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनाई जाने वाली मस्जिद के शिलान्यास को न सिर्फ “राजनीतिक नाटक” कहा, बल्कि इसे “गहरी राजनीतिक हताशा” का नतीजा बताया। पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इस घटनाक्रम ने राज्य के माहौल को गर्म कर दिया है, जबकि तृणमूल कांग्रेस भी इस कदम को लेकर असहज दिखाई दे रही है।
शत्रुघ्न सिन्हा ने शनिवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि छह दिसंबर का दिन पूरे देश में ‘सद्भावना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक एकजुटता का संदेश दिया जाना चाहिए, लेकिन इसके विपरीत मुर्शिदाबाद के रेजिनगर में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर मस्जिद का शिलान्यास करवाना उनकी नज़र में “अनुचित समय पर उठाया गया अनुचित कदम” है। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर लोगों को इकठ्ठा कर राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश किसी सकारात्मक सोच का संकेत नहीं देती।
उन्होंने कहा कि यह पूरा घटनाक्रम राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं है। सिन्हा ने इशारों में कहा कि कोई भी व्यक्ति या समूह बिना किसी बड़े राजनीतिक समर्थन के इतनी बड़ी भीड़ को एकत्रित नहीं कर सकता। उनका कहना था कि इस तरह की गतिविधियां चुनावी मौसम में मतदाताओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास होती हैं और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
सिन्हा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुर्शिदाबाद में हुआ यह शिलान्यास “कुछ लोगों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और राजनीतिक हताशा का परिणाम है।” उन्होंने कहा कि राज्य में चुनावी वर्ष शुरू होते ही ऐसे मुद्दों का सामने आना यह संकेत देता है कि राजनीतिक जमीन खिसकती महसूस हो रही है, इसलिए भावनात्मक ध्रुवीकरण के सहारे समर्थन जुटाने की कोशिश की जा रही है।
टीएमसी के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं। उन्होंने रेजिनगर में मस्जिद की नींव डालकर न केवल राजनीतिक पारा बढ़ाया, बल्कि अपनी ही पार्टी को भी असहज स्थिति में डाल दिया। टीएमसी नेतृत्व ने इस कदम को पार्टी लाइन का उल्लंघन बताते हुए कबीर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। पार्टी ने साफ किया कि यह समारोह उनकी जानकारी या सहमति के बिना आयोजित किया गया था।
हालांकि कबीर का दावा है कि वह इस कार्यक्रम को धार्मिक और सामाजिक पहल के तौर पर करते रहे हैं, लेकिन विपक्ष ने इसे चुनावी मौसम में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया है। भारतीय जनता पार्टी ने भी आरोप लगाया है कि टीएमसी अंदर ही अंदर इस आयोजन को समर्थन दे रही है, जबकि बाहरी तौर पर विरोध का दिखावा कर रही है।
सिन्हा ने कहा कि "मंदिर–मस्जिद" की राजनीति को बार-बार जीवित करना समाज के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि बंगाल की जनता विकास, सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दों पर चर्चा चाहती है। लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा देना चुनावी फायदे के लिए जनता की भावनाओं से खेलने जैसा है।
उन्होंने अफसोस जताया कि बंगाल जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और विविधता से भरे राज्य में ऐसे विवादास्पद मुद्दों के जरिए मतदाताओं को बांटने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की राजनीति को हमेशा से अपने सामाजिक सामंजस्य पर गर्व रहा है। ऐसे में धार्मिक विवादों को जान-बूझकर बढ़ावा देना राज्य की सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाता है।
सिन्हा ने आगे कहा कि राजनीतिक दलों को चुनावी मौसम में जनभावनाओं को भड़काने के बजाय एकजुटता को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता के वास्तविक मुद्दों पर चुनाव लड़ना एक जनप्रतिनिधि की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने विश्वास जताया कि बंगाल की जनता ऐसे हथकंडों को समझती है और चुनाव में इसका उचित जवाब देगी।
इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या बंगाल में धार्मिक भावनाओं को हवा देकर चुनावी रणनीति तैयार की जा रही है। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि टीएमसी और इसके असंतुष्ट नेताओं के बीच आंतरिक संघर्ष बढ़ रहा है, जिसका असर ऐसे विवादित आयोजनों के रूप में सामने आ रहा है।
इस पूरे प्रकरण ने बंगाल की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है—क्या धार्मिक प्रतीकों और विवादित धरोहरों का राजनीतिक उपयोग चुनावी राजनीति का नया मानक बन रहा है? और यदि ऐसा है, तो क्या इससे लोकतांत्रिक विमर्श और सामाजिक एकता पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता? शत्रुघ्न सिन्हा के बयान ने इस बहस को और भी व्यापक बना दिया है।
बहरहाल, रेजिनगर में मस्जिद के शिलान्यास ने बंगाल की चुनावी राजनीति में नया मोड़ ला दिया है और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी और तेज होने की पूरी संभावना है।

