संसद में ‘वंदे मातरम’ और चुनावी सुधारों पर गहमागहमी तेज, टकराव के आसार गहरे

संसद में ‘वंदे मातरम’ और चुनावी सुधारों पर गहमागहमी तेज, टकराव के आसार गहरे

नई दिल्ली, 7 दिसम्बर,(एजेंसियां)। संसद का शीतकालीन सत्र इस सप्ताह राजनीतिक तौर पर बेहद गर्म रहने वाला है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच तीखी बहस, आरोप-प्रत्यारोप और वैचारिक टकराव की पूरी संभावना बन गई है। एक तरफ राष्ट्रीय भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत से जुड़े ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने का अवसर है, तो दूसरी तरफ देश की चुनावी प्रक्रिया, पारदर्शिता और ‘वोट चोरी’ जैसे गंभीर आरोपों के बीच शुरू हो रही चुनावी सुधारों पर बहस है। दोनों मुद्दे स्वाभाविक रूप से संवेदनशील हैं और इन पर विचारों का टकराव न केवल दोनों सदनों में दिखाई देगा, बल्कि राजनीतिक बयानबाज़ी का तीखापन भी बढ़ने की आशंका है।

सप्ताह की शुरुआत लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा से होगी, जिसकी शुरुआत स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। यह चर्चा न केवल सांस्कृतिक है बल्कि राजनीतिक भी, क्योंकि पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि उसने ‘एक वर्ग को खुश करने के लिए’ राष्ट्रीय गीत का सम्मानपूर्ण उपयोग नहीं किया। इस आरोप का कांग्रेस ने तीखा जवाब दिया और प्रधानमंत्री पर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने रवींद्रनाथ टैगोर के उस ऐतिहासिक पत्र का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने बंकिमचंद्र चटर्जी के ‘वंदे मातरम’ के केवल पहले दो छंदों को अपनाने की सलाह दी थी। टैगोर ने उन छंदों को सांप्रदायिक विवादों से दूर बताते हुए राष्ट्रीय उपयोग योग्य माना था। अब जब ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है, तब यह चर्चा नई राजनीतिक धार के साथ सदन में उपस्थित होगी।

कांग्रेस की ओर से लोकसभा में उपनेता गौरव गोगोई के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल होंगी। प्रियंका पहली बार इस स्तर की किसी सांस्कृतिक-राजनीतिक बहस में सीधे हिस्सा लेंगी, जिसका विपक्षी राजनीति में विशेष महत्व माना जा रहा है। राज्यसभा में अगले दिन इस चर्चा का नेतृत्व गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। ‘वंदे मातरम’ पर बहस केवल इतिहास या परंपरा की बात नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक रणनीतियों, वोट बैंक की राजनीति और राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर दलों की सोच का खुला प्रदर्शन भी होगी।

दूसरा बड़ा मुद्दा है चुनावी सुधारों पर चर्चा। यह विषय कई हफ्तों से विवादों में रहा है, विशेष रूप से SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को लेकर। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इसी प्रक्रिया में ‘वोट चोरी’ या वोटर लिस्ट में हेरफेर संभव हुआ है, और इसमें बूथ लेवल अधिकारियों की संदिग्ध मौतों ने और सवाल खड़े कर दिए हैं। राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर देशभर में ‘वोट चोरी’ अभियान छेड़ा हुआ है और सीधे चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा किया है। उनका आरोप है कि चुनावी रोल में बदलाव करके बीजेपी को लाभ पहुंचाया गया।

Read More  घोटाले का अभियुक्त दलितों को बांट रहा चुनावी रिश्वत

इसी बहस के लिए बीजेपी पूरी तैयारी के साथ उतर रही है। पार्टी की ओर से ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुद्दा दोबारा जोर पकड़ सकता है, क्योंकि बीजेपी इसे देश की राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक बचत से जोड़कर देखती है। यह बहस सदन में राजनीतिक ध्रुवीकरण को और पैना करने वाली बन सकती है।

Read More कथा के दौरान मची भगदड़, कई महिलाएं चोटिल

इस चर्चा में भी दोनों सदनों में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सरकार की ओर से जवाब देंगे। चुनावी सुधार सदन में मंगलवार को शुरू होकर बुधवार तक चलने का अनुमान है। इस दौरान विपक्ष का ध्यान SIR, EVM, वोटर लिस्ट, चुनाव आयोग की भूमिका जैसे बिंदुओं पर केंद्रित रहेगा, जबकि सरकार चुनावी व्यवस्था की पारदर्शिता, मजबूत प्रक्रिया और तकनीकी सुधारों को अपना आधार बनाएगी।

Read More  काशी में मिले मंदिर को लेकर मिली धमकी

बहस की अहमियत इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि दोनों ही मुद्दों पर सत्ता और विपक्ष के बीच विचाराधारात्मक अंतर गहरा है। ‘वंदे मातरम’ पर मोदी सरकार इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़ती है और इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बताती है। वहीं विपक्ष इसे सांस्कृतिक बहुलता, संवैधानिक मर्यादा और ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखने की बात कहता है। इसी प्रकार चुनावी सुधारों पर सरकार का दावा है कि वह पारदर्शिता बढ़ाने और व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर हमला बताता है।

बहस को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच पहले हुई बातचीत में काफी तनाव था। विपक्ष चाहता था कि चर्चा केवल SIR पर केंद्रित हो, लेकिन सरकार चाहती थी कि चुनावी सुधारों पर समग्र बहस हो। बाद में सहमति बनी कि बहस व्यापक विषय पर होगी और ‘वंदे मातरम’ को भी शामिल किया जाएगा। यही समझौता अब सदन में राजनीतिक संघर्ष का मंच तैयार कर चुका है।

संसद का यह सप्ताह देश के राजनीतिक परिदृश्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। एक तरफ राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का मुद्दा है और दूसरी तरफ लोकतंत्र की सबसे मूल इकाई—चुनावी प्रक्रिया—की विश्वसनीयता का प्रश्न। राजनीतिक दल इसे जनता के सामने अपनी-अपनी वैचारिक प्राथमिकताओं और मुद्दों को रखने का मौका मान रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि सदन में बहस जितनी तीखी होगी, उतनी ही विस्तृत और विचारपूर्ण भी होगी। हालांकि, सदन में हंगामे और व्यवधान की संभावना को भी खारिज नहीं किया जा सकता, खासकर जब मुद्दे इतने संवेदनशील हों और दलों की राजनीतिक रणनीतियाँ एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हों। अंततः यह सप्ताह यह दिखाएगा कि क्या संसद रचनात्मक और सार्थक संवाद की ओर बढ़ती है या फिर यह चर्चा केवल राजनीतिक बयानबाजी में सिमटकर रह जाती है।