नेहरू का सिंहासन डोलने लगा था!
वंदे मातरम् पर संसद में पीएम मोदी का प्रहार, इतिहास की ऐसी सच्चाइयाँ उजागर कि सदन गूँज उठा
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर,(एजेंसियां)। लोकसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि इतिहास की परतों को उधेड़ देने वाला शक्तिशाली वार साबित हुआ। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि 1905 से शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता के हर मोड़ पर "वंदे मातरम्" सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि क्रांति की धड़कन था। अंग्रेजों की सत्ता जहाँ-जहाँ हिली, वहाँ-वहाँ ‘‘वंदे मातरम्’’ का स्वर गूंजा। लेकिन पीएम मोदी का सबसे तीखा हमला उस क्षण आया, जब उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की भूमिका पर सवाल खड़े किए।
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पीएम मोदी ने कहा कि बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्य भारत की आज़ादी का ऊर्जा केंद्र था। अंग्रेजों ने इसी कारण ‘बांटो और राज करो’ की नीति के लिए बंगाल को प्रयोगशाला बनाया। 1905 में बंगाल का विभाजन अंग्रेजों ने देश को तोड़ने की पहली कोशिश के रूप में किया। मगर उनका यह दांव उल्टा पड़ा—क्योंकि इस विभाजन ने वंदे मातरम् को राष्ट्र का उद्घोष बना दिया। बंगाल की गलियों में यह गीत एक जीवित ज्वालामुखी की तरह फूटा, जिसने अंग्रेजों की सत्ता को हिला कर रख दिया।
मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी, बंकिमचंद्र चटर्जी और तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम् को राष्ट्र की आत्मा माना। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की इस धड़कन के साथ सबसे बड़ा अन्याय तब हुआ जब कांग्रेस मुस्लिम लीग के दबाव में झुक गई। प्रधानमंत्री ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि जब मोहम्मद अली जिन्ना ने वंदे मातरम् का विरोध शुरू किया, तब कांग्रेस को राष्ट्रगान की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए थी। मगर इसके बजाय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने खुद वंदे मातरम् की समीक्षा पर जोर दिया।
पीएम मोदी के अनुसार—
“जिन्ना के दबाव के बाद नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखाई दिया… देश को नेतृत्व देने वाली पार्टी स्वयं राष्ट्रीय भावना के सामने कमज़ोर पड़ गई… यही विभाजन की राजनीति की शुरुआत थी।”
प्रधानमंत्री ने सवाल उठाया कि जब महात्मा गांधी स्वयं वंदे मातरम् को राष्ट्रगान के योग्य बताते थे, जब यह गीत अंग्रेजों के खिलाफ हथियार बना था, तो आखिर क्यों इसे विवादों में धकेला गया? कांग्रेस ने 1937 में मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम् को ‘टुकड़ों में बाँटने’ का निर्णय लिया। पीएम मोदी ने इसे “राष्ट्रभावना के साथ विश्वासघात” बताया।
उन्होंने कहा कि 2047 तक विकसित भारत का संकल्प तभी मजबूत हो सकता है जब राष्ट्र अपनी जड़ों को, अपने इतिहास को और अपनी राष्ट्रीय चेतना को समझे। वंदे मातरम् सिर्फ गीत नहीं—एक आंदोलन था, एक शक्ति थी, एक आत्मा थी जिसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की प्रेरणा दी। और आज, संसद में उसकी 150वीं वर्षगांठ का उत्सव उन सेंकड़ों-हजारों बलिदानों की याद भी है, जिन्होंने फांसी के फंदे पर चढ़ते हुए आखिरी सांस में सिर्फ एक ही शब्द कहा—“वंदे मातरम्!”

