कौन-सी ताकत थी जो बापू की भावना पर भारी पड़ गई?
पीएम मोदी का ऐतिहासिक खुलासा—‘वंदे मातरम्’ को विवादों में किसने धकेला
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर,(एजेंसियां)। संसद के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा क्षण आया हो जब एक चर्चा ने पूरे सदन को भावनाओं से भर दिया हो। वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सिर्फ एक ऐतिहासिक समीक्षा नहीं था, बल्कि यह उस सत्य का उद्घाटन था, जो दशकों तक पीढ़ियों से छुपाया गया। पीएम मोदी ने साफ कहा—बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं बल्कि भारत की आत्मा का घोष है। यह गीत स्वदेशी आंदोलन की धड़कन बना, क्रांति का मंत्र बना, और देश के हर कोने में आज़ादी की ज्वाला जगाने वाला आवाज़ बना।
लेकिन प्रधानमंत्री का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न था—
“आखिर वह कौन-सी ताकत थी जो बापू की भावना पर भारी पड़ गई? क्यों वंदे मातरम् जैसे पवित्र गीत को राजनीति की आग में धकेला गया?”
मोदी ने याद दिलाया कि गांधी ने 1905 में लिखे अपने लेख में इस गीत को ‘‘राष्ट्र की आत्मा’’ कहा था। लाखों लोगों की सभाओं में वंदे मातरम् गूंजता था, अंग्रेज इस गीत से इतने भयभीत थे कि उन्होंने इसे गाने, मुद्रित करने और यहां तक कि ‘शब्द बोलने’ तक पर सजा लगा दी।
फिर भी यह गीत न रुका, न झुका—स्वतंत्रता सेनानी फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए वंदे मातरम् का ही उच्चारण करते थे। अशफ़ाक उल्ला ख़ान, खुदीराम बोस, बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी… सबने इसी मंत्र के साथ प्राण न्योछावर किए।
मगर मोदी ने कहा कि आज़ादी के आंदोलन के चरम समय में कांग्रेस ने वही गलती की जिसने विभाजन की राजनीति को हवा दी। मुस्लिम लीग के विरोध के पाँच दिन बाद, कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने जिन्ना की भावना से सहमति जताई। नेहरू ने कहा कि आनंदमठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को ‘इरिटेट’ कर सकती है।
यही वह मोड़ था, जब इतिहास ने करवट ली—जहाँ कांग्रेस को देश के पक्ष में दृढ़ रहना चाहिए था, वहां उसने तुष्टीकरण की राह चुनी।
पीएम मोदी ने कहा कि 26 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस ने वंदे मातरम् के उपयोग को सीमित कर दिया और इसे दो हिस्सों में बाँट दिया। इसे ‘‘सामाजिक सद्भाव’’ का नाम देकर पेश किया गया, लेकिन सच यह था कि कांग्रेस मुस्लिम लीग के दबाव में झुक चुकी थी। मोदी के अनुसार—
“जिस कांग्रेस ने वंदे मातरम् को कमजोर किया, वही आगे चलकर भारत के विभाजन के लिए भी कमजोर पड़ी।”
उन्होंने बताया कि वंदे मातरम् का प्रभाव इतना व्यापक था कि—
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वंदे मातरम् अखबार पेरिस में मैडम भीकाजी कामा ने निकाला
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वी.ओ. चिदंबरम पिल्लै ने स्वदेशी जहाज पर इसका नाम अंकित किया
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सुब्रमण्यम भारती ने इसका तमिल अनुवाद किया
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बंगाल की हर गली इसकी गूंज से धधक उठी
मोदी ने कहा—“अगर आजादी से 50 साल पहले कोई स्वतंत्र भारत का सपना देख सकता था, तो आज हम 2047 के विकसित भारत का सपना क्यों नहीं देख सकते?”
उनका संदेश स्पष्ट था—वंदे मातरम् सिर्फ अतीत नहीं, भविष्य की भी प्रेरणा है। जिन्ना की राजनीति, कांग्रेस का झुकाव और तुष्टीकरण के फैसलों ने इसे कमजोर किया, लेकिन इसकी शक्ति आज भी वैसी ही है जैसी 1905 में थी—अटूट, अडिग, और राष्ट्र की धड़कन।

