वंदे मातरम बोलने पर इंदिरा जी ने डाल दिया था जेल
अमित शाह का कांग्रेस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला, राज्यसभा में जोरदार बहस
नई दिल्ली, 9 दिसम्बर,(एजेंसियां)। राज्यसभा में मंगलवार को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई विशेष चर्चा ने सदन का माहौल बेहद तीखा और संवेदनशील बना दिया। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के शासनकाल में राष्ट्रगीत बोलने वालों को जेल भेजा गया था और वंदे मातरम को दबाने की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी। शाह के इन तीखे आरोपों ने सदन में जोरदार बहस को जन्म दिया, जिसमें इतिहास, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और आज़ादी के आंदोलन में वंदे मातरम की भूमिका पर विस्तृत चर्चा हुई।
शाह ने अपने संबोधन में कहा कि देश की महान रचना वंदे मातरम के साथ कांग्रेस ने लगातार अन्याय किया और तुष्टिकरण की राजनीति के कारण राष्ट्रगीत का अपमान होता रहा। उन्होंने दावा किया कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने वंदे मातरम बोलने वालों को जेल में डलवाया, कई अखबार बंद कर दिए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल दिया। शाह के अनुसार यह कदम केवल राजनीतिक नियंत्रण का मामला नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर हमला भी था।
गृह मंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि स्वतंत्रता के बाद वंदे मातरम की महत्वपूर्ण वर्षगाँठों पर भी इसे उचित सम्मान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि 50 वर्ष पूरे होने पर देश स्वतंत्र नहीं था, लेकिन 75 और 100 वर्ष पूरे होने पर भी सरकारों ने इसकी महिमा का जश्न नहीं मनाया। शाह ने जब यह आरोप लगाया कि जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं वंदे मातरम को दो छंदों तक सीमित कर इसका “विभाजन” किया, तब सदन में विपक्षी नेताओं ने जोरदार आपत्ति दर्ज कराई।
अमित शाह ने कहा कि यह विभाजन केवल साहित्यिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक तुष्टिकरण की शुरुआत थी, जिसके कारण देश का सामाजिक ताना-बाना और बाद में राष्ट्र की एकता को क्षति पहुँची। उन्होंने कहा कि मेरे जैसे करोड़ों लोग मानते हैं कि यदि कांग्रेस ने वंदे मातरम को विभाजित न किया होता, तो सांस्कृतिक विभाजन की वह प्रक्रिया शुरू ही नहीं होती जिसने अंततः भारत के विभाजन को बढ़ावा दिया।
राज्यसभा में हुई इस बहस के दौरान शाह ने उन ऐतिहासिक प्रसंगों का भी उल्लेख किया, जब वंदे मातरम गाने के दौरान कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने सदन से बहिर्गमन किया था। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुखद है कि जिस गीत ने स्वतंत्रता की लड़ाई में क्रांतिकारी ऊर्जा भरी, उसी गीत को आज़ादी के बाद कई नेताओं ने गाने से इनकार कर दिया। शाह ने याद दिलाया कि जब संसद में वंदे मातरम गाने की परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया था, तब इंडिया गठबंधन के नेताओं में से कई ने कहा था कि वे राष्ट्रगीत नहीं गाएँगे।
शाह के भाषण का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रयासों को समर्पित था। उन्होंने कहा कि 1992 में भाजपा सांसद राम नाइक ने संसद में वंदे मातरम के सामूहिक गान की पुरानी परंपरा को बहाल करने का मुद्दा उठाया था। उस समय विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा अध्यक्ष से इसे तत्काल लागू करने का जोरदार आग्रह किया था, जिसके बाद सदन ने इसे सर्वसम्मति से मंजूरी दी। शाह ने कहा कि भाजपा ने स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले इस गीत की गरिमा को पुनर्स्थापित करने और इसे जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह गीत उस दौर में आज़ादी का आह्वान था और आज यह विकसित भारत के निर्माण का संकल्प बन रहा है। शाह ने कहा कि जिस तरह वंदे मातरम ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन को ऊर्जा दी, उसी प्रकार अमृत काल में यह राष्ट्र निर्माण के नए युग का प्रेरक बनेगा। उन्होंने संसद से आह्वान किया कि आगामी 150वीं वर्षगाँठ को केवल स्मारक आयोजन के रूप में न मनाया जाए, बल्कि इसे नई पीढ़ी को राष्ट्रभावना से जोड़ने का अवसर बनाया जाए।
लोकसभा में सोमवार को हुई बहस का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी की यह रचना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आदर्श थी और इसने लाखों देशभक्तों को बलिदान और संघर्ष के लिए प्रेरित किया। राज्यसभा की बहस में भी कई दलों के नेताओं ने बंकिम चंद्र को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वंदे मातरम ने देश की एकता और राष्ट्रवाद को नई दिशा दी।
विपक्षी दलों ने हालांकि शाह के आरोपों को राजनीतिक हमला बताते हुए कहा कि वंदे मातरम पर बहस को ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। विपक्ष की ओर से कहा गया कि स्वतंत्रता आंदोलन के प्रत्येक घटक का सम्मान किया जाना चाहिए, न कि इसे राजनीतिक आधार पर बाँटने का प्रयास होना चाहिए। लेकिन शाह ने जोर देकर कहा कि इतिहास को सच के साथ पढ़ा जाना आवश्यक है और राष्ट्रगीत का दमन देश के इतिहास का काला अध्याय है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
बहस कई घंटों तक चली, जिसमें सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक ध्रुवीकरण, देश की एकता और वंदे मातरम की 150वीं वर्षगाँठ पर विस्तृत विमर्श हुआ। राज्यसभा का यह सत्र इस बात का स्पष्ट संकेत था कि वंदे मातरम पर राजनीति केवल अतीत का विषय नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य में भी यह भारतीय पहचान और राष्ट्रवाद के केंद्र में रहने वाला मुद्दा है।
अमित शाह के तीखे प्रहारों ने कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया, जबकि भाजपा इसे अपनी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वैचारिक विजय के रूप में पेश कर रही है। यह बहस आगे आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति में वंदे मातरम के महत्व को और बढ़ा सकती है।

