EVM बनाम Ballot Paper की जंग तेज
— क्या वाकई मतपत्र बेहतर और ईवीएम सुरक्षित?
नई दिल्ली, 10 दिसम्बर,(एजेंसियां)। देश में चुनाव सुधार को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है। संसद से लेकर सड़क तक इस बात पर जोरदार चर्चा चल रही है कि भारत को आगे भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम पर भरोसा बनाए रखना चाहिए या फिर मतपत्रों की पारंपरिक व्यवस्था पर लौटना चाहिए। निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण—एसआईआर—ने इस बहस को और भड़काया। विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही है और ईवीएम पर भरोसा किया नहीं जा सकता। वहीं, सरकार और चुनाव आयोग लगातार यह दावा करते रहे हैं कि ईवीएम सुरक्षित, तेज और विश्वसनीय हैं।
लोकतंत्र में मतदान की पवित्र प्रक्रिया हमेशा ही केंद्र में रही है। लंबे समय तक मतपत्र ही वोट दर्ज करने का मुख्य तरीका रहे। कागज़ पर निशान लगाकर मतपेटी में डालने की विधि मतदाताओं को सीधा भरोसा देती थी, क्योंकि उनके सामने उनका वोट भौतिक रूप से मौजूद रहता था। यही कारण है कि आज भी वोटों की पारदर्शिता के मुद्दे पर मतपत्र की मांग उठती रहती है। कागज़ी मतपत्र हैक नहीं किए जा सकते, यही तर्क विपक्ष बार-बार दोहराता है। लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी हैं—धीमी गिनती, भारी खर्च, संग्रह और परिवहन की समस्या, बूथ कैप्चरिंग की संभावना और मानवीय त्रुटियों का खतरा।
दूसरी तरफ ईवीएम ने 1982 में छोटे प्रयोग के रूप में शुरुआत की और 2004 तक यह देशभर में चुनाव की रीढ़ बन गई। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि वोटिंग तेज होती है, गिनती कुछ घंटों में हो जाती है और मानवीय गलती की कोई जगह नहीं रहती। ईवीएम की संरचना पूरी तरह ऑफलाइन रहती है—कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और वीवीपीएटी स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। इसलिए हैकिंग की संभावना सैद्धांतिक स्तर पर ही रह जाती है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वीवीपीएटी को अनिवार्य करने के बाद मतदाताओं को सात सेकंड के डिस्प्ले में अपने वोट की पुष्टि करने की अतिरिक्त सुविधा भी मिल गई।
विरोधियों का तर्क है कि मशीनें कभी भी पूरी तरह विश्वसनीय नहीं हो सकतीं। कई साइबर विशेषज्ञों ने दावा किया कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है, लेकिन जब चुनाव आयोग ने 2017 में ओपन हैकिंग चैलेंज दिया तो कोई भी इस दावे को साबित नहीं कर पाया। इसके बावजूद राजनीतिक आरोप बंद नहीं हुए। राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेता लगातार ईवीएम पर सवाल उठाते रहते हैं। सवाल यह भी उठता है कि यदि छेड़छाड़ संभव है, तो क्यों अब तक इसका कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं किया गया?
चुनाव आयोग का कहना है कि भारत की ईवीएम दुनिया की सबसे सुरक्षित मशीनों में से हैं, क्योंकि वे इंटरनेट, ब्लूटूथ या किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़तीं। मशीन को छेड़ने के लिए हर एक यूनिट तक भौतिक पहुंच चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है। फिर भी बहस जारी है और मतदाता सुधार की मांग लगातार बढ़ रही है। मतपत्र हो या ईवीएम—दोनों के अपने फायदे और चुनौतियाँ हैं। लेकिन इस विवाद की तीखी गूंज ने राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है, और यह सवाल अब भी खड़ा है कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए आगे का रास्ता कौन तय करेगा—तकनीक या परंपरा?

