भारत ने साफ कह दिया—ट्रंप! हमारी विदेश नीति तुमसे नहीं चलेगी, रूस ने भी अमेरिका को आईना दिखाया
नई दिल्ली, 10 दिसम्बर,(एजेंसियां)।अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत-विरोधी बयानबाजी, टैरिफ की धमकियाँ और दबाव की राजनीति अब दुनिया से छिपी नहीं है। कभी रूसी तेल को लेकर आंखें दिखाना, कभी चावल के निर्यात पर सवाल उठाना और कभी भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका से असहज होकर बयान देना—ट्रंप का यह रवैया बताता है कि वे भारत की आत्मनिर्भर और स्वतंत्र विदेश नीति को समझने में नाकाम रहे हैं। लेकिन इस बार रूस ने न सिर्फ ट्रंप की इस दोगली नीति का पोल खोल दिया, बल्कि साफ कर दिया कि भारत अपने हितों के फैसले अमेरिका को देखकर नहीं करेगा।
ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि भारत अमेरिकी बाजार में चावल ‘डंप’ कर रहा है और यह उनके उद्योगों को नुकसान पहुँचा रहा है। इससे पहले रूस से तेल खरीदने पर भारत को भारी टैरिफ की धमकी भी दी गई थी, जिसके बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत के उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगा दिया। हालांकि, भारत ने न किसी दबाव में आया, न किसी धमकी की परवाह की। दुनिया की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों के लिए वही रास्ता चुना, जो उसकी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक मजबूती के लिए आवश्यक था।
रूस ने भी अमेरिका की इस ‘दोहरी चाल’ को बेनकाब करते हुए कहा कि ट्रंप स्वयं रूस से यूरेनियम खरीद रहे हैं, अपने न्यूक्लीयर प्लांट्स के लिए रूस के साथ बड़े ऊर्जा समझौते कर रहे हैं, लेकिन भारत को वही काम करने से रोक रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तीखे अंदाज में कहा कि भारत दुनिया में जहाँ से सस्ता और लाभकारी तेल मिलेगा, वहीँ से खरीदेगा। रूस ने साफ कहा कि भारत की संप्रभु निर्णय क्षमता को अमेरिका की धमकियों से प्रभावित नहीं किया जा सकता।
भारत और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार हाल के वर्षों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा है। फरवरी 2022 तक भारत रूस से लगभग नाम मात्र का कच्चा तेल खरीद रहा था। लेकिन नवंबर 2025 तक यह आँकड़ा 2.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच गया। 2025 के पहले 11 महीनों में भारत ने रूस से 545 मिलियन बैरल (लगभग 81 मिलियन टन) तेल खरीदा, जो 2021 की तुलना में 25 गुना अधिक है। आज रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है और भारत कुल आयात का 40–42% रूसी स्रोतों से प्राप्त कर रहा है।
भारत को रूसी तेल ब्रेंट क्रूड की तुलना में 8 से 10 डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिलता है। 2024-25 में भारत ने इस डिस्काउंट से 9.2 अरब डॉलर की जबरदस्त बचत की है। यह वही भारत है जिसे ट्रंप ‘डंपिंग’ और ‘टैरिफ’ की धमकी देकर नियंत्रित करना चाहते थे, लेकिन भारत की प्राथमिकता अमेरिकी बाजार नहीं, बल्कि अपने 140 करोड़ नागरिकों की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता है।
अमेरिका ने प्रतिबंधों और टैरिफ के बावजूद भारत-रूस व्यापार को रोका नहीं जा सका। कई कंपनियों पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध भी भारत की नीति को झुका नहीं सके। भारत ने बार-बार स्पष्ट किया कि ऊर्जा सुरक्षा उसके लिए किसी भू-राजनीतिक दबाव से ऊपर है। भारत ने यह भी कहा कि रूस से तेल खरीदना पूरी तरह वैध है और यह किसी युद्ध में फंडिंग का मामला नहीं बल्कि आर्थिक स्थिरता का प्रश्न है।
दूसरी तरफ रूस भारत के दृढ़ रुख से खुलकर खुश है। पुतिन ने अपने बयान में कहा कि भारत और रूस का सहयोग बिना किसी बाधा के आगे बढ़ता रहेगा। क्रेमलिन ने भी साफ किया कि भारत और रूस रणनीतिक साझेदारी के एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं, जहाँ बाहरी दबावों का कोई महत्व नहीं है।
ट्रंप की बौखलाहट का एक बड़ा कारण यह भी है कि हाल के दिनों में मोदी-पुतिन मुलाकातों ने भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। रूस की ओर से यह संदेश भी अमेरिका को समझ आ गया है कि भारत अब किसी का ‘जूनियर पार्टनर’ नहीं है। ट्रंप की धमकियों का असर भारत की नीतियों पर न पहले हुआ था, न अब होगा। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का हर नया बयान भारत को रोकने से ज्यादा अपनी वैश्विक कमजोरी को उजागर कर रहा है।
भारत ने साफ कर दिया है कि वह तेल, गैस, यूरेनियम, चावल, हथियार—किसी भी क्षेत्र में अपने निर्णय अमेरिका की अनुमति से नहीं लेगा। यह वही नया भारत है जो अब न दबाव में आता है, न धमकी में। दुनिया भर में ट्रंप की यह नीति ‘फेल’ होती दिख रही है और रूस द्वारा अमेरिका की दोहरापन उजागर किए जाने के बाद अमेरिकी नाराज़गी और बढ़ने की संभावना है। लेकिन भारत अपनी गति से आगे बढ़ेगा, अपने फैसले खुद करेगा और अपने हितों को सर्वोपरि रखेगा। यही संदेश आज भारत से वॉशिंगटन तक बहुत स्पष्ट रूप से पहुँच चुका है।

