35 साल से मांग रहे हैं कश्मीर वापसी की दुआ

क्षीर भवानी के मेले में आने वाले कश्मीरी पंडित

 35 साल से मांग रहे हैं कश्मीर वापसी की दुआ

जम्मू03 जून (ब्यूरो)। करीब 35 सालों सेजबसे कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर से पलायन किया हैसैंकड़ों कश्मीरी पंडित परिवार क्षीर भवानी में एकत्र होकर वापसी की दुआ तो मांग रहे हैं पर अभी तक उनकी दुआ स्वीकार नहीं हुई है। सैंकड़ों कश्मीरी पंडितों ने आज भी ज्येष्ठा अष्टमी पर तुलमुला स्थित मां रागन्या के मंदिर में एकत्र होकर क्षीर भवानी को श्रद्धा के फूल चढ़ाए। इसी प्रकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने जम्मू में बनाए गए क्षीर भवानी मंदिर में भी हाजिरी लगाई। क्षीर भवानी आने वाले सैंकड़ों कश्मीरी विस्थापित पंडितों ने एक बार फिर अपनी कश्मीर वापसी के लिए दुआ भी मांगी।

लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मंदिर का दौरा किया और शांतिसमृद्धि और सभी नागरिकों की भलाई के लिए प्रार्थना की। अपनी यात्रा के दौरानएलजी सिन्हा ने भक्तों के साथ बातचीत की और बधाई दीकश्मीरी पंडित समुदाय के लिए दिन के आध्यात्मिक महत्व को स्वीकार किया और अन्य अन्य जो मंदिर में एकत्र हुए।

ज्येष्ठा अष्टमी को कश्मीर में तुलमुला तथा मझगांव स्थित मां क्षीर भवानी मेले में मां रागन्या को आस्था के फूल अर्पित करने के लिए इस बार करी 5000 कश्मीरी पंडित जम्मू से रवाना हुए थे। अंतिम समय पर डर के कारण कुछेक कश्मीरी पंडित परिवारों ने अपने कार्यक्रम को टाल दिया था। इस मौके पर जम्मू सहित देश के दूसरे राज्यों से मां राघेन्या के दरबार में हाजरी देने के लिए पहुंचे कश्मीरी हिंदुओं का फूलों से स्वागत किया गया। मंदिर के मुख्य द्वार में स्वागत के लिए पहुंचे स्थानीय मुस्लिमों ने कश्मीरी हिंदुओं का स्वागत करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडित हमारे जीवन का हिस्सा हैंदुर्भाग्य सेकट्टरवाद-आतंकवाद ने समुदायों के बीच एक कील सा पैदा कर दिया है लेकिन उन्हें बता देना चाहते हैं कि हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। हमें केवल कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए प्रशासन पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हमें कश्मीर में हालात बेहतर के साथ आपसी भाईचारा मजबूत करने के लिए खुद से भी योगदान देना होगा।

कश्मीर में आतंकवाद के दौरान विकट परिस्थितियों में भी क्षीर भवानी मंदिर पहुंचने वाले पंडितों और मुस्लिमों ने आपसी प्रेम को कायम रखा है। इसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम लंगरों में भक्तों की सेवा करते रहे हैं। मेले के लिए को पूजा में प्रयोग लाए जाने वाले दूधफूलों सहित अन्य जरूरी सामग्री को उपलब्ध करवाया गया था। इसके अलावा यात्रियों के ठहरनेपानीबिजलीचिकित्सा आदि के उचित इंतजाम किए गए थे। यह मेला कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक भी है। इस मेले में घाटी की हिंदू आबादी के साथ ही स्थानीय मुसलमान भी बढ़-चढ़ कर शामिल होते है। यहां तक कि पूजा सामग्री से लेकर श्रद्धालुओं की सुविधा का पूरा इंतजाम भी यही लोग करते हैं।

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इस बार के मेले की खास बात यह थी कि क्षीर भवानी आने वाले कश्मीरी पंडितों ने इस बार अपनी कश्मीर वापसी की चर्चा स्थानीय मुस्लिमों के साथ की थी। उन्होंने विश्वास जताया कि वे जल्द ही कश्मीर लौट सकते हैं। बंगलौर में रह रहे कश्मीरी पंडित बीएल रैना का कहना है कि उन्हें कश्मीर की बहुत याद सताती है और वे वापस आने का खतरा मोल लेने को तैयार हैं।

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