महाभियोग की सिफारिश कर चले गए संजीव खन्ना
दिल्ली हाईकोर्ट के जज के यहां नोटों की बरामदगी का मामला
गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में
नई दिल्ली, 28 मई (एजेंसियां)। दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से नोटों का जखीरा बरामद होने के मामले में तमाम लीपापोती के बाद सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने रिटायर होने के पहले जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की सिफारिश कर दी। संजीव खन्ना तो रिटायर होकर चले गए, अब नए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई हैं और महाभियोग की गेंद केंद्र सरकार के पाले में आ गई है।
अब महाभियोग लाने के पहले केंद्र सरकार विपक्षी दलों से भी सहमति बनाने की कोशिश करेगी, क्योंकि किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की सिफारिश को राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया है। इस प्रस्ताव को संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह तक शुरू होने की उम्मीद है।
यह मामला जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जुड़ा है। 14 मार्च 2025 को उनके सरकारी आवास पर आग लगने के दौरान बड़ी मात्रा में कैश मिलने की बात सामने आई थी। इन आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च 2025 को एक तीन सदस्यीय आंतरिक समिति का गठन किया था। इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस अनु सिवरमन शामिल थीं। समिति ने कई गवाहों के बयान दर्ज किए और 3 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को विश्वसनीय पाया गया।
रिपोर्ट सामने आने के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को जांच रिपोर्ट भेजते हुए जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की। हालांकि, जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। उन्हें 20 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था। उन्होंने 5 अप्रैल 2025 को वहां जज के रूप में शपथ ली, लेकिन उन्हें अभी तक कोई काम नहीं सौंपा गया है।
संविधान के अनुसार, किसी संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश को केवल गलत व्यवहार साबित होने पर या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है। न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 में इसके लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है। किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन से ही पेश किया जा सकता है। यदि किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो अध्यक्ष/सभापति एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन करते हैं। यदि जांच समिति जज को दोषी पाती है, तो उसकी रिपोर्ट सदन द्वारा अपनाई जाती है और फिर जज को हटाने पर बहस होती है।
सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के लिए, लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उपस्थित और वोट करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों को हटाने के पक्ष में वोट करना होता है। साथ ही, पक्ष में वोटों की संख्या प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता के 50 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। यदि संसद ऐसा वोट पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं।