अदालत एफआईआर रद्द कर सकती है या नहीं!
नए कानून में मिले अधिकार की व्यवहार्यता तय करेगी नौ जजों की पीठ
प्रयागराज, 28 मई (एजेंसियां)। एफआईआर रद्द करने की हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति का परीक्षण अब नौ जजों की वृहद पीठ करेगी। यह देखा जाएगा कि हाईकोर्ट में एफआईआर को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा-528 के तहत चुनौती दी जा सकती है या फिर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के अंतर्गत दाखिल होने वाली याचिका ही पोषणीय है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने इस कानूनी उलझन को नौ जजों की वृहद पीठ को सौंपने का फैसला सुनाया है। साथ ही कोर्ट ने महानिबंधक को वृहद पीठ के गठन के लिए मामला तीन दिन में मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने को कहा है।
याची शशांक गुप्ता उर्फ गुड्डू और अन्य के खिलाफ चित्रकूट के कर्वी थाने में दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज है। मामले में याचियों ने बीएनएसएस की धारा-528 के तहत एफआईआर रद्द करने की मांग के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दावा है कि मुकदमा दुर्भावनापूर्ण तरीके से उन्हें सताने के लिए दर्ज करवाया गया है। याची का तर्क है कि हाईकोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर झूठी एवं दुर्भावनापूर्ण एफआईआर रद्द कर सकता है। बीएनएसएस की धारा-528 हाईकोर्ट को यह अधिकार देती है कि वह ऐसी शिकायतों और एफआईआर को सीधे खारिज कर सके, जो प्रथम दृष्टया न तो किसी अपराध को दर्शाती है और न ही न्याय की कसौटी पर खरी उतरती है। इस नई धारा का उद्देश्य फर्जी मुकदमों से नागरिकों की रक्षा करना है। लिहाजा, नए कानून के तहत याची के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द किया जाना चाहिए।
राज्य सरकार के अधिवक्ता ने 1989 में रामलाल यादव के मामले में सात जजों की पूर्ण पीठ के दिए फैसले का हवाला देते हुए याचिका की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाई। कहा कि एफआईआर को रद्द करने की मांग भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत ही पोषणीय है। बीएनएसएस की धारा-528 (पुरानी धारा 482 सीआरपीसी) के तहत एफआईआर रद्द करने की अर्जी स्वीकार नहीं की जा सकती। बीएनएसएस लागू होने के बाद यह पहला मामला है, जब धारा 528 के तहत एफआईआर रद्द करने की मांग की गई है। इससे पहले 1989 में सात जजों की पूर्ण पीठ ने एफआईआर रद्द करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत याचिका को पोषणीय माना था।
सात जजों की पूर्ण पीठ के फैसले और नए कानून के प्रावधानों में टकराव को देखते हुए कोर्ट ने मामले को नौ जजों की वृहद पीठ को संदर्भित कर दिया। वृहद पीठ के का फैसला आने तक याचियों को दी गई अंतरिम राहत बरकरार रहेगी। उनके खिलाफ कोई भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।