महाराष्ट्र और कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या के मामले सबसे अधिक
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि २०२३ में १०,७८६ किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की, और इनमें से सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र (३८.५ प्रतिशत) से थी, उसके बाद कर्नाटक (२२.५ प्रतिशत) का स्थान था| किसान संगठनों ने इस स्थिति के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि कपास पर आयात शुल्क माफ करने का फैसला स्थिति को और बिगाड़ देगा क्योंकि ज्यादातर आत्महत्याएँ अभी भी देश के कपास उत्पादक क्षेत्रों से ही हो रही हैं|
कृषि क्षेत्र में हुई १०,७८६ आत्महत्याओं में से ४,६९० किसान या खेतिहर थे, और ६,०९६ कृषि श्रमिक थे| देश में कुल आत्महत्याओं (२०२३ में १,७१,४१८ आत्महत्याएँ) में कृषि आत्महत्याओं का योगदान ६.३ प्रतिशत है| आत्महत्या करने वाले ४,६९० किसानों में से ४,५५३ पुरुष और १३७ महिलाएँ थीं, और कृषि श्रमिकों द्वारा की गई ६,०९६ आत्महत्याओं में से ५,४३३ पुरुष और ६६३ महिलाएँ थीं| महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद, आंध्र प्रदेश (८.६ प्रतिशत), मध्य प्रदेश (७.२ प्रतिशत) और तमिलनाडु (५.९ प्रतिशत) में सबसे अधिक आत्महत्याएँ दर्ज की गईं| पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, चंडीगढ़, दिल्ली और लक्षद्वीप में कृषि क्षेत्र से किसी भी आत्महत्या की सूचना नहीं मिली|
एनसीआरबी के आंकड़ों पर टिप्पणी करते हुए, अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि २०२१, २०२२ और २०२३ में कृषि क्षेत्र से १०,००० से अधिक आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, और यह उस प्रणालीगत संकट को दर्शाता है जिसे नरेंद्र मोदी सरकार न तो समझ पाई और न ही उसका मुकाबला कर पाई|
यह संकट और भी गहराने वाला है क्योंकि कपास और सोयाबीन बेल्ट में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं| महाराष्ट्र किसानों का कब्रिस्तान बन गया है| डॉ. धवले ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता| मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र कपास और सोयाबीन बेल्ट हैं| इसके बावजूद, केंद्र सरकार मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने के दबाव और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ आतंकवाद के आगे झुक रही है| सरकार ने कपास पर ११ प्रतिशत आयात शुल्क हटा दिया है|
इसका मतलब है कि अमेरिकी कपास यहाँ आने वाला है| इन संधियों से कृषि क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा| डेयरी और खाद्य तेल क्षेत्र प्रभावित होंगे| हमने पहले भी यह चिंता जताई थी| उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में किसी भी किसान की आत्महत्या की सूचना नहीं है, जो सच नहीं है| आत्महत्याओं की संख्या कहीं अधिक होगी| उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने किसानों की आत्महत्याओं से कुछ नहीं सीखा है और आंकड़ों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है| डॉ. धवले ने कहा वे विदेशी और स्थानीय कॉरपोरेट्स से जुड़े हुए हैं|