सिंधु जल समझौता स्थगित करने से बौखलाया पाकिस्तान
इस बार पाकिस्तान के खिलाफ सिंधु-स्ट्राइक
फिर भी पाकिस्तान बंद नहीं कर रहा आतंक की फैक्ट्री
आतंक के खिलाफ देश एकजुट : विपक्ष ने दिया समर्थन
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (एजेंसियां)। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में दो दर्जन से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या में शामिल पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए सख्त कदम से पाकिस्तान बौखला गया है। भारत ने सिंधु जल समझौता स्थगित करने के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। देश के सम्पूर्ण विपक्ष ने ऐसे मौके पर एकजुटता दिखाते हुए केंद्र सरकार को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है। केंद्र सरकार और विपक्षी दलों की बैठक में विपक्ष ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट और सख्त लड़ाई का समर्थन किया। उधर, सिंधु जल समझौता रद्द होने से पाकिस्तान को पानी की भयंकर किल्लत का खौफ सताने लगा है। इस बौखलाहट में वह आत्मघाती फैसले ले रहा है। पाकिस्तान की सुरक्षा समिति की बैठक में भारत के साथ कारोबार बंद करने का फैसला लिया गया है। पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर बंद करने का निर्णय लिया है। पाकिस्तान भी भारत के राजनयिकों को वापस भेजेगा। भारत की ओर से पानी रोकने को पाकिस्तान ने युद्ध जैसा कदम बताया। उसने भारतीय एयरलाइंस के लिए एयरस्पेस भी बंद कर दिया है। सिंधु जल समझौता स्थगित करने की घोषणा इस प्रस्ताव के साथ की गई थी कि पाकिस्तान अपने देश से आतंकवादियों को पालने और पड़ोसी देश में हिंसा फैलाने की हरकतें रोक दे तो जल समझौते का स्थगन हटाया जा सकता है। लेकिन पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री बंद करने की घोषणा करने के बजाय ऊल-जुलूल हरकतें करने में लगा हुआ है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार की तरफ से आज संसद भवन में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सम्पूर्ण विपक्ष ने एकजुटता दिखाते हुए सरकार के प्रत्येक कदम के प्रति अपना समर्थन जताया। बैठक में पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। सर्वदलीय बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, रक्षा मंत्री ने सीसीएस की बैठक में पहलगाम में हुई घटना और भारत सरकार की तरफ से की गई कार्रवाई के बारे में विपक्ष को जानकारी दी। सम्पूर्ण विपक्ष ने इस बात पर सहमति जताई कि भारत को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी चाहिए। भारत ने पहले भी आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है और आगे भी करता रहेगा। सरकार की तरफ से सर्वदलीय बैठक में इस पर विस्तार से चर्चा की गई। सभी दलों ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में वे सरकार के साथ हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, सभी ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की। विपक्ष ने सरकार को कोई भी कार्रवाई करने के लिए पूरा समर्थन दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक की अध्यक्षता की, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी बैठक में मौजूद थे। सभी दलों ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की। हमने कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए प्रयास किए जाना चाहिए। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, केंद्र सरकार उस देश के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है जो आतंकवादी समूहों को पनाह देता है। अंतरराष्ट्रीय कानून हमें पाकिस्तान के खिलाफ आत्मरक्षा में हवाई और नौसैनिक नाकाबंदी करने और हथियारों की बिक्री पर पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने की भी अनुमति देता है।
बीजेडी सांसद सस्मित पात्रा ने कहा, बीजेडी ने सर्वदलीय बैठक में अपने विचार रखे। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस जघन्य हमले के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए। बीजेडी राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सभी प्रयासों में सरकार को अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन दोहराता है। इस बैठक से जो समग्र सहमति बनी है, वह यह है कि सभी राजनीतिक दल इस मामले पर एक साथ हैं और हम दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए सरकार की तरफ से उठाए जाने वाले हर कदम का पूरा समर्थन करते हैं। सर्वदलीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, विदेश मंत्री एस जयशंकर, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, सपा सांसद राम गोपाल यादव, राकांपा सांसद सुप्रिया सुले, शिवसेना नेता श्रीकांत शिंदे, राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल, राजद नेता प्रेमचंद गुप्ता, द्रमुक नेता तिरुचि शिवा, बीजद नेता सस्मित पात्रा, आपा नेता संजय सिंह, टीएमसी नेता सुदीप बंदोपाध्याय, वाईएसआरसी नेता मिथुन रेड्डी और भाजपा सांसद अनिल बलूनी मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा वापस ले लिया था। आयात पर 200 प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी लगा दी थी। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ दिए, जिससे औपचारिक व्यापार लगभग ठप्प हो गया। इससे पाकिस्तान और भी बदहाली के गर्त में चला गया।
पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में करीब ढ़ाई घंटे चली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट (सीसीएस) की मीटिंग में चार बहुत बड़े फैसले लिए गए। भारत ने सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौते पर रोक लगा दी। अटारी-वाघा बॉर्डर बंद कर दिया गया। पाकिस्तानियों का वीजा बंद कर दिया गया और पाकिस्तान में भारतीय दूतावास और भारत में पाकिस्तानी दूतावस बंद करने का निर्णय लिया गया। भारत द्वारा अटारी-वाघा सीमा बंद करना, पाकिस्तानियों के वीजा पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाना और दोनों देशों के दूतावासों को बंद करने का निर्णय इस बात की गवाही देता है कि भारत की रणनीति अब प्रतिरोध की नहीं बल्कि प्रतिशोध की है। खासतौर से, सिंधु जल समझौते पर रोक लगाने का भारत का फैसला पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है। पाकिस्तान के लिए यह केवल कूटनीतिक नहीं, अस्तित्वगत संकट की आहट है। यह तय है कि भारत से पानी रोके जाने से पाकिस्तान की ऐसी कमर टूटेगी कि वह न अपनी जमीन पर आतंकियों को पालने-पोसने में समर्थ होगा और न घाटी में अलगाववादियों का समर्थन करने की उसकी हैसियत बचेगी।
भारत द्वारा अपने ही हिस्से का पानी रोकने का अर्थ है कि पाकिस्तान की जल आधारित परियोजनाएं जैसे कि मंगला, तरबेला, नीलम-झेलम और दासू हाइड्रोपावर परियोजना भी ठप्प पड़ जाएंगी। पाकिस्तान की कुल पनबिजली उत्पादन क्षमता का करीब 58 प्रतिशत इन्हीं परियोजनाओं पर निर्भर है, जो अब भारत के इस निर्णय से गहरे संकट में आ जाएंगी। ऊर्जा संकट की मार झेलते पाकिस्तान में, जहां पहले से ही बिजली कटौती आम है, वहां यह स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। यही नहीं, पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा जाएगी। पाकिस्तान के जल और ऊर्जा संसाधन प्राधिकरण की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और सिंध के लगभग 80 प्रतिशत खेतों की सिंचाई इन्हीं नदियों से होती है। सिंधु जल प्रवाह के रुकने का अर्थ है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन घटेगा, बेरोजगारी बढ़ेगी और खाद्य संकट उत्पन्न होगा। पाकिस्तान की खाद्य आयात निर्भरता पहले से ही बढ़ती जा रही है और भारत के इस निर्णय से यह निर्भरता आतंकिस्तान में विकराल रूप ले सकती है। सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देखें तो विभाजन के समय भारत ने मानवता की भावना से काम लेते हुए पाकिस्तान को निर्धारित समय सीमा के बाद भी पानी देना जारी रखा था लेकिन जब 1 अप्रैल 1948 को भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली दो नहरों का पानी रोक दिया था, तब पाकिस्तान की लगभग 17 लाख एकड़ भूमि बंजर हो गई थी। यही इतिहास अब दोहराए जाने की संभावना है लेकिन इस बार और व्यापक स्तर पर।
कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि सिंधु जल संधि पर रोक के भारत के फैसले के बाद भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के विरोध का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि संभवतः ऐसा नहीं होगा क्योंकि भारत संधि के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर रहा बल्कि अपने हिस्से के पानी का ही इस्तेमाल सुनिश्चित कर रहा है। दरअसल सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (4) में स्पष्ट है कि कोई भी पक्ष इस संधि को द्विपक्षीय संबंधों की बिगड़ी हुई स्थिति के आधार पर पुनर्विचार के लिए प्रस्तुत कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय जल संधियों में राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है और चीन इसका बड़ा उदाहरण है, जिसने साउथ चाइना सी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। भारत भी अपने जल संसाधनों पर सम्प्रभु अधिकार रखते हुए यह निर्णय लेने में वैधानिक और नैतिक रूप से पूर्णतः सक्षम है। जल सुरक्षा अब केवल संसाधन से जुड़ा मुद्दा नहीं रहा बल्कि रणनीतिक शक्ति का प्रतीक भी बन चुका है।
वाटर स्ट्राइक की अवधारणा अब भारत के कूटनीतिक शस्त्रागार में एक नया आयाम बनकर उभरी है। भारत जल के माध्यम से न केवल पाकिस्तान की आतंक प्रायोजक क्षमता को चुनौती दे रहा है बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी दे रहा है कि अब परंपरागत प्रतिक्रियाओं का दौर समाप्त हो चुका है। सिंधु जल संधि पर रोक लगाकर भारत ने अपनी रणनीति में दीर्घकालिक सोच दिखाई है। यह निर्णय केवल तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालीन सामरिक नीति का हिस्सा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत सिंधु के पानी को रोकता है और अपनी बांध परियोजनाओं को तेज करता है तो पाकिस्तान का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर भारत जहां अपनी कृषि, ऊर्जा और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, वहीं पाकिस्तान की स्थिति इससे दिन-ब-दिन दयनीय होती जाएगी और ऐसे में भारत की वाटर स्ट्राइक उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ देगी। भारत ने यदि भविष्य में इस संधि को पूरी तरह समाप्त करने का निर्णय लिया तो पाकिस्तान के लिए यह उसके राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय अस्तित्व की सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगा।