भारत-इजराइल रिश्ते में जहर डाल रहे थे राहुल गांधी
इजराइली खुफिया एजेंसी 'मोसाद' की छानबीन से खुलासा
अडाणी तो बहाना था, मोदी और नेतन्याहू पर निशाना था
साजिश में शामिल था सैम पित्रोदा और अमेरिकी डीप-स्टेट
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके सलाहकार सैम पित्रोदा अमेरिकी षडयंत्रकारियों के साथ मिल कर न केवल भारत सरकार को अस्थिर करने में लगे थे बल्कि वे भारत और इजराइल के संबंधों में भी जहर डालने का काम कर रहे थे। अडाणी तो केवल एक कंधा था, जिसके जरिए निशाना कहीं और साधा जा रहा था। षडयंत्रकारियों के साथ मिल कर राहुल गांधी भारत की मदद से इजराइल में चल रही कुछ खास परियोजनाओं को ध्वस्त करने में लगे थे ताकि भारत के साथ इजराइल के रिश्ते खराब हो जाएं। इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने लंबे अर्से तक छानबीन के बाद इस षडयंत्र का पता लगाया। राहुल गांधी की भारत विरोधी गतिविधियों की छानबीन जारी ही थी कि रूस के एक मीडिया प्रतिष्ठान स्पुतनिक ने इस खबर को प्रकाशित कर राहुल गांधी चौकड़ी को चौकन्ना कर दिया। इस चौकड़ी में जॉर्ज सोरोस, सैम पित्रोदा, डोनाल्ड लू समेत कई नाम हैं। इस षडयंत्र के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इशारे पर यूएसएड द्वारा भी भारी फंडिंग हो रही थी, जिसे डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही बंद कर दिया।
मोसाद की पड़ताल में आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि हुई कि गौतम अडाणी के खिलाफ जारी हुई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट उसी षडयंत्र का हिस्सा थी। हिंडनबर्ग की मदद जॉर्ज सोरोस, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा, कई एनजीओ, मीडिया संस्थान, पत्रकार, वकील और अन्य लोग कर रहे थे। इस साजिशी हमले का असर इजराइल में चल रही कई परियोजनाओं पर पड़ने लगा। आखिरकार इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुफिया एजेंसी मोसाद को इसका पता लगाने को कहा। मोसाद की छानबीन के बाद ही हिंडनबर्ग का पूरा सच सामने आया और अडाणी समूह वापस उबर कर बाजार में खड़ा हो पाया। इतना ही नहीं, हिंडनबर्ग रिसर्च पर ताला भी जड़ गया। यह सारी बातें हाल ही में सामने आई रिपोर्ट्स से उजागर हुईं। इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सैम पित्रोदा का नाम प्रमुख रूप से शामिल है।
मोसाद की छानबीन में यह सामने आया कि जिस समय भारतीय उद्योगपति गौतम अडाणी इजराइल के हाइफा बंदरगाह का संचालन अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहे थे उसी दरम्यान (जनवरी 2023 में) हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी के खिलाफ आरोपों से भरी रिपोर्ट प्रकाशित की थी। हिंडनबर्ग करतूत के प्रकाशित होने के एक सप्ताह बाद ही 31 जनवरी 2023 को अडाणी समूह ने इजराइल के हाइफा पोर्ट का संचालन हासिल किया। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से इजराइल सरकार परेशान और चिंतित हुई। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गौतम अडाणी एस इस बारे में पूछा। अडाणी ने उन्हें यह भरोसा दिया कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट झूठी है और इससे उनके व्यापार को कोई खतरा नहीं है। हाइफा बंदरगाह की डील इजराइल के लिए काफी महत्वपूर्ण थी और यह भारत के लिए भी उतना ही अहम था। अडाणी ने हाइफा बंदरगाह का संचालन कई हजार करोड़ लगाकर हासिल किया था। तब नेतन्याहू ने कहा था, हां, हम जानते हैं कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट फर्जी है। लेकिन अगर इसका असर इस महत्वपूर्ण व्यापारिक डील पर पड़ता है तो हमें इसकी चिंता होनी चाहिए। क्योंकि यह डील को कमजोर करता है, तो यह न केवल इस पोर्ट डील को बल्कि भारत के साथ मिलकर हमने जो कुछ भी अब तक हासिल किया है, उसे नुकसान पहुंच सकता है।
इसके बाद ही इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निर्देश पर खुफिया एजेंसी मोसाद ने ऑपरेशन प्रारंभ किया। यह ऑपरेशन मोसाद की जोमेत और केशेत नाम की दो यूनिट ने शुरू किया। मोसाद ने अमेरिका से लेकर यूरोप और भारत तक जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। मोसाद की टीमें हिंडनबर्ग के न्यूयॉर्क स्थित ऑफिस तक पहुंचीं। मोसाद के एजेंटों ने हिंडनबर्ग के दफ्तर में आने-जाने वाले हर आदमी के बारे में जानकारी इकट्ठा की। उन्होंने यहां दरवाजों, दीवालों और बाकी जगह अपने खुफिया डिवाइस लगाए और सारी जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया। इस खुफिया छानबीन में पता चला कि हिंडनबर्ग अकेले काम नहीं कर रहा था बल्कि उसकी मदद में अमेरिका और भारत की कई राजनीतिक हस्तियां, पूंजीपति, कई एनजीओ, मीडिया, पत्रकार, वकील और बाकी लोग कर रहे हैं। अडाणी के खिलाफ इस हमले में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। क्योंकि चीन भी हाइफा बंदरगाह का संचालन हासिल करने की प्रतियोगिता में शामिल था।
हिंडनबर्ग की जांच के दौरान ही मोसाद को अमेरिका के एक और पते की जानकारी हुई जहां से अडाणी के खिलाफ साजिशी गतिविधियां संचालित हो रही थीं। यह पता कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा का था। मोसाद ने इस पते का कम्यूटर भी हैक कर लिया था। हैक किए गए कम्यूटर से कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। इसी कम्यूटर में अडाणी को नुकसान पहुंचाने संबंधी कई ईमेल मिले। यह भी पता चला कि इस साजिश में और भी कई लोग जुड़े थे जो भारत के थे। कई बड़े कारोबारी घराने भी इस साजिश में शामिल मिले।
यह सब पता चलने के बाद अडाणी ने हिंडनबर्ग पर वार किया। इसके लिए मोसाद ने ऑपरेशन जेपलिन लॉन्च किया। जेपलिन एक हवाई गुब्बारे का नाम था। इस ऑपरेशन के लिए अडाणी से मोसाद के लोग स्विट्ज़रलैंड में मिले थे। यह मुलाकात जनवरी 2024 में हुई थी। अडाणी को पता चला कि तीन अलग-अलग देशों में बैठे हुए शेयर मार्केट ऑपरेटर उनके खिलाफ गड़बड़ी कर रहे हैं। वे यह काम एक अमेरिकी फंड के लिए कर रहे थे जो कि चीन के भरोसे चल रही थी। भारत के भीतर से भी कई प्रतिद्वंदी कारोबारी घराने भी उनके खिलाफ साजिश में शामिल हैं। अडाणी के खिलाफ एक राजनीतिक पार्टी के लोग भी शामिल थे। इसके बाद इस बात की जांच की गई कि कहां से अडाणी के खिलाफ सूचनाएं फैलाई जा रही हैं।
अडाणी ने हिंडनबर्ग के खिलाफ अक्टूबर 2024 तक 350 से अधिक पेज का एक डोजियर बनाया। इसमें उनके खिलाफ साजिश करने वाले एनजीओ, कारोबारी घराने, एक महिला नेता और पत्रकारों समेत बाकी के विषय में सबूत थे। यहां तक कि उन अखबारों की भी जानकारी निकाली गई जो अडाणी के खिलाफ नियोजित रूप से प्रोपेगेंडा चला रहे थे। इससे बौखला कर अमेरिकी डीप स्टेट, जॉर्ज सोरोस, राहुल गांधी टीम और यूएसएड ने अडाणी पर हमला किया और उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ने का कुचक्र किया। यह बात फ्रांसीसी मीडिया संस्थान मीडियापार्ट ने छाप दी। इससे यह सच्चाई भी सामने आ गई। इसके बावजूद बाइडेन प्रशासन ने एक बार फिर अडाणी को एक मुकदमे के माध्यम से पीछे धकेलने का प्रयास किया लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। यहां तक भारत ने खुले तौर पर अमेरिका की आलोचना भी कर दी। अडाणी समूह ने इसके बाद हिंडनबर्ग को कानूनी तौर पर चुनौती देने का फैसला किया। अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन को सात पन्ने का कानूनी नोटिस भेजा। इसमें उनके सारे कारनामों की लिस्ट थी और उस पर होने वाली कानूनी कार्रवाई के विषय में भी जानकारी थी।
इससे घबराया नाथन एंडरसन समझौते के लिए रास्ता ढूंढ़ने लगा। उसने एक बार अडाणी समूह से जुड़े एक व्यक्ति से भी मुलाकात की। एंडरसन ने हामी भरी कि वह हिंडनबर्ग पर ताला लगा देगा, अगर अडाणी उन पर मुकदमा न करें। इस तरह यह समझौता हुआ और जनवरी 2025 में हिंडनबर्ग ने अपना बोरिया बिस्तर समेटने का ऐलान कर दिया। इस बीच अमेरिका में सरकार भी बदल गई और ट्रंप प्रशासन ने आते ही तमाम षडयंत्रकारियों का धंधा बंद करना शुरू कर दिया और यूएसएड का तो ढक्कन ही बंद कर दिया।