करगिल सरीखे लघु युद्ध हो सकते हैं सीमा पर

करगिल सरीखे लघु युद्ध हो सकते हैं सीमा पर

 पहलगाम हमले के बाद का आकलन

सुरेश एस डुग्गर

जम्मू24 अप्रैल। पहले पुलवामा हमला और अब पहलगाम नरसंहार। ऐसे में पाकिस्तान को मुहंतोड़ जवाब देने की खातिर सजा और प्रतिकार के बतौर पर चाहे भारत पाकिस्तान पर हमला नहीं करेगा लेकिन इतना अब सुनिश्चित हो गया है कि सीमाओं पर करगिल सरीखे लघु युद्ध हो सकते हैं। ऐसा होने की संभावना इसलिए व्यक्त की जाने लगी है क्योंकि केंद्र की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद भारतीय सेना हमले का जवाब देने की तैयारी में है। पहले ही पुलवामा हमले के बदले के तौर पर बालाकोट एयर स्ट्राइक पाकिस्तानी तैयारियों और भारत के गुस्से को वर्ष 2019 के फरवरी महीने में प्रदर्शित कर चुकी हैं।

रक्षाधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केंद्र की ओर से इस संबंध में हरी झंडी मिल चुकी है। भारतीय सेना जवाबी कार्रवाई करने की तैयारी में जुटी है। सेना की नार्दन कमान में तैनात कई अफसर भी इस प्रकार के संकेत दे रहे हैं। पहले भी उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक की जिम्मेदारी नार्दन कमांड को दी गई थी जिसने इसे बखूबी निभाया था। सीमांत मोर्चों से मिलने वाली जानकारियों के मुताबिकभारतीय सेना पाकिस्तान को सजा देने के लिए कई विकल्पों की तैयारियों में जुटी है। मकसद पाकिस्तान को सजा देना है। जवाबी हमला करने के लिए फिलहाल कई विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। राजनीतिक तथा कूटनीतिक मोर्चों के अतिरिक्त सैनिक मोर्चों पर भी पाकिस्तान को पहलगाम हमले का जवाब देने की तैयारी जारी है। सैनिक मोर्चों पर जो भी सुझाव जवाब देने के लिए सुझाए जा रहे हैं उनका परिणाम अंत में भरपूर युद्ध के रूप में ही निकलता है।

उस कश्मीर में स्थित प्रशिक्षण केंद्रों को नष्ट करने के लिए सुझाए गए चार विकल्पों में से एक विकल्प जमीन से जमीन पर मार करने वाले ब्रहमोस व पृथ्वी मिसाइलों के इस्तेमाल का भी है जो पूरी तरह से अमेरीका की तर्ज पर करने की बात कही जा रही है। ऐसी सलाह देने वालों का कहना है कि उस कश्मीर के भीतर स्थित प्रशिक्षण केंद्र अधिक गहराई में नहीं हैं और ब्रहमोस व पृथ्वी जैसे मिसाइल उन पर पूरी तरह से अचूक निशाना लगाने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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तीन प्रकार के अन्य विकल्प भी सुझाए जा रहे हैं। इनमें एक भारतीय सेना को खूली छूट देने का है। अर्थात सर्जिकल स्ट्राइक की तरह भारतीय सेना एलओसी को पार कर 24 घंटों के भीतर आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों को नष्ट कर वापस लौटे। यह कमांडो कार्रवाई होगी। जबकि सभी प्रशिक्षण केंद्र अभी भी एलओसी के पार पाक कब्जे वाले कश्मीर में ही हैं। पर पहली सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी सेना के चौकन्ना हो जाने के बाद इस विकल्प को व्यावहारिक नहीं माना जा रहा है। सेना को बोफोर्स तोपों का खुल कर इस्तेमाल करने की इजाजत देने का विकल्प भी है। इसके अतंर्गत एलओसी से 18 से 20 किमी की दूरी पर स्थित कुछ प्रशिक्षण केंद्रों पर मोर्टारबोफोर्स तोपों से हमला किया जाए। बोफोर्स तोप पहाड़ों में 28 से 30 किमी की दूरी तक मार कर सकती हैं। एलओसी पर बोफोर्स तोपों की तैनाती फिर से हो चुकी है।

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इनके अतिरिक्त एक बार फिर भारतीय वायुसेना और ड्रोन हमलों का इस्तेमाल कर प्रशिक्षण केंद्रों को उड़ाने का विकल्प भी सैनिक कार्रवाई के तहत खुला है। प्रशिक्षण केंद्रों पर हवाई हमले किए जाने का जो विकल्प दिया गया है उसके अंतर्गत यह कहा जा रहा है कि राफेलमिराज-2000 तथा सुखोई विमानों का इस्तेमाल किया जाए जो अचूक निशाना साधनो तथा गहराई तक हमला करने में सक्षम माने जाते हैं। हालांकि इसके लिए दोनों किस्म के विमानों को जम्मू कश्मीर के सभी सैनिक हवाई अड्डों का इस्तेमाल करना होगा। यह बात अलग है कि कल रात को सीसीएस की बैठक में जो फैसले लिए गए हैं उससे भारतीयों में अधिक खुशी की लहर इसलिए नहीं है क्योंकि सिंधु जल संधि समझौते को सिर्फ स्थगित किया गया है न कि उसे हमेशा के लिए खत्म किया गया है।

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