पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ डालेगी सिंधु-स्ट्राइक
सिंधु जल समझौता
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (एजेंसियां)। पाकिस्तान की तरफ से लगातार जारी आतंकवादी हरकतों से आजिज भारत सरकार के धैर्य का दरवाजा पहलगाम हमले के बाद टूट गया। भारत सरकार ने फौरन ही सिंधु नदी पर बने बांध का दरवाजा बंद कर दिया पाकिस्तान के तमाम आतंकी-स्ट्राइक का सटीक जवाब सिंधु-स्ट्राइक से दिया गया है। भारत सरकार का यह फैसला पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ डालेगा। सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की 6 नदियां व्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चेना
भारत और पाकिस्तान, एक ही भूभाग का हिस्सा है। भारत से कई नदियां बह कर पाकिस्तान जाती हैं। सिंधु नदी तंत्र की नदियां पाकिस्तान के पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। इन्हीं के पानी के बंटवारे को लेकर किया गया समझौता सिंधु जल समझौता कहलाता है। यह समझौता वर्ष 1960 में हुआ था। इसके लिए लगभग एक दशक तक बातचीत पाकिस्तान और भारत के बीच चली थी। तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तानाशाह अयूब खान ने इसको मंजूरी दी थी। सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की 6 नदियों (व्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चे
इस जल समझौते के अनुसार, पूर्वी नदियां (व्यास, रावी और सतलुज) के पानी पर पूरा अधिकार भारत का है। यानि इनमें बहने वाले पानी का वह किसी भी तरह से इस्तेमाल कर सकता है। भारत इन नदियों पर बांध बना सकता है, उनकी जलधाराएं मोड़ सकता है, उनसे नहरें निकाल सकता है और पूरा उपयोग कर सकता है। सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद 2 का खंड (1) कहता है, पूर्वी नदियों का पूरा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगा, सिवाय इसके कि इस अनुच्छेद में अन्यथा अलग से उसके लिए कोई प्रावधान किया गया हो। पूर्वी नदियों को लेकर पाकिस्तान को दखलअंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं है। इसको लेकर भी अनुच्छेद 2 के खंड (2) में प्रावधान है। इसमें लिखा है, घरेलू उपयोग को छोड़कर, पाकिस्तान सतलुज और रावी नदियों के पानी को बहने देने के लिए बाध्य होगा और उन स्थानों पर इनके पानी में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होने देगा, जहां ये पाकिस्तान में बहती हैं और अभी तक पूरी तरह से पाकिस्तान में प्रवेश नहीं कर पाई हैं।
दरअसल, यह नदियां पाकिस्तान में अंतिम रूप से घुसने से पहले कई बार दोनों सीमाओं के इधर-उधर बहती हैं। पूर्वी नदियों के अलावा बाकी पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) के पानी पर पूरा अधिकार पाकिस्तान का है। समझौता के अनुसार, भारत इन नदियों को लेकर कोई भी रोक नहीं लगा सकता। समझौते का अनुच्छेद 3 का भाग (2) कहता है, भारत पश्चिमी नदियों के जल को बहने देने के लिए बाध्य होगा, और इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देगा, कुछ परिस्थितियों को छोड़ कर। यह परिस्थितियां घरेलू उपयोग और कृषि उपयोग से जुड़ी हुई हैं। इस समझौते के तहत इन 6 नदियों के लगभग 70 प्रतिशत-80 प्रतिशत पानी पर पाकिस्तान को जबकि 20 प्रतिशत-30 प्रतिशत पानी पर भारत को अधिकार मिलता है। इसको लेकर पहले भी प्रश्न उठाए जाते रहे हैं कि इसका सीधा फायदा पाकिस्तान को मिला है और भारत का इससे कोई लाभ नहीं है।
बुधवार 23 अप्रैल को भारत सरकार ने सिंधु जल समझौते के निलंबन की घोषणा की। भारत ने बताया कि पहलगाम में हुआ आतंकी हमले में पाकिस्तान का रोल सामने आया है, ऐसे में समझौते को भारत निलंबित कर रहा है। इस हमले में 27 लोगों की हत्या इस्लामी आतंकियों ने कर दी है। मरने वाले अधिकांश हिंदू हैं, जिन्हें धर्म पूछ कर मारा गया। भारत ने स्पष्ट किया कि यह समझौता तब ही वापस अमल में लाया जाएगा जब पाकिस्तान आतंक पर ठोस कार्रवाई करना शुरू करेगा। सिंधु जल समझौते पर इतना बड़ा एक्शन इससे पहले कभी नहीं लिया गया था। यहां तक कि 1965 युद्ध, 1971 युद्ध और करगिल युद्ध के दौरान भी इसे कूटनीतिक विकल्पों के तहत नहीं लाया गया था। इससे पहले 2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते की पुनरसमीक्षा करने की बात कही थी। भारत इससे पहले भी कई बार पाकिस्तान को नोटिस भेज कर समझौते की शर्तों में बदलाव की मांग कर चुका है। हालांकि, उस पर कोई आगे ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
पाकिस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी खेती पर निर्भर है। उसका खेती का इलाका भी पंजाब और सिंध में सिमटा हुआ है। बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वाह जैसे राज्य सूखे मरुस्थल जैसे हैं। पाकिस्तान में होने वाली खेती के लिए 90 प्रतिशत पानी सिंधु नदी तंत्र से आता है। यह पानी भारत से ही बह कर जाता है। सिंधु नदी तंत्र से आने वाला पानी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार है। पाकिस्तान पहले से ही पानी की किल्लत झेल रहा है। ऐसे में भारत का यह समझौता निलंबित करना उसके लिए बड़ा झटका है। यह पानी रुकने से उसकी खेती तो प्रभावित होगी ही, कराची और लाहौर जैसे बड़े शहर भी पानी के लिए तरस जाएंगे।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि समझौते के निलंबित होने के बाद यह पानी पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए भारत को नए बांध बनाने होंगे, इससे ही पूरी तरह यह कार्रवाई अमल में आ पाएगी। हालांकि, भारत तुरंत भी पाकिस्तान को चोट दे सकता है। भारत अपने हिस्से में इन नदियों की धाराएं अस्थायी रूप से सेना और बाकी विभाग को काम पर लगाकर मोड़ सकता है। इसके अलावा भारत इन नदियों में बहने वाले पानी की मात्रा, इनके जलस्तर, बहाव की गति और बाकी डाटा भी अब पाकिस्तान के साथ साझा नहीं करेगा। ऐसे में पाकिस्तान को बाढ़ और पानी में कमी का अंदाजा भी नहीं लगा पाएगा। यह स्थिति उसके लिए आगामी मानसून में और भी विकट होगी।