सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सिविल जजों के लिए अनिवार्य तेलगु भाषा के खिलाफ याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सिविल जजों के लिए अनिवार्य तेलगु भाषा के खिलाफ याचिका खारिज की

नई दिल्ली, 28 अप्रैल(एजेंसी)। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तेलंगाना में सिविल जज के पद के लिए योग्यता हासिल करने के लिए तेलुगु भाषा में दक्षता अनिवार्य करने वाले 2023 के नियम को बरकरार रखने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, 'नियम में केवल यह कहा गया है कि आपको तेलुगु जानने की जरूरत है।'

बता दें कि, याचिकाकर्ता, एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट, ने अप्रैल 2024 की अधिसूचना के अनुसार सिविल जज के पद के लिए आवेदन किया। उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष भाषा की आवश्यकता पर तेलंगाना राज्य न्यायिक (सेवा और संवर्ग) नियम, 2023 के नियम 5.3 और 7 (आई) की संवैधानिकता को चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने 2023 के नियमों के तहत आयोजित लिखित परीक्षा में अंग्रेजी से तेलुगु या उर्दू में और इसके विपरीत अनुवाद करने का विकल्प प्रदान करने के अलावा सिविल जज बनने की योग्यता के रूप में तेलुगु या उर्दू में से किसी एक में दक्ष होने का विकल्प प्रदान करने का निर्देश देने की भी मांग की।

मामले में शीर्ष न्यायालय की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि तेलंगाना में 15 प्रतिशत आबादी उर्दू भाषी है। वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण की है। हालांकि, पीठ ने याचिका की जांच करने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया। तेलंगाना उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि राज्य में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है, इसलिए यह मनमाना और अन्यायपूर्ण है कि सिविल जजों की भर्ती के नियमों में उर्दू या तेलुगु में पारंगत होने का विकल्प नहीं दिया गया।

उच्च न्यायालय ने क्या की थी टिप्पणी


पिछले साल नवंबर में अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा, 'यह बात आम है कि सेवा की शर्तों, पात्रता और योग्यता आदि के बारे में निर्णय लेना नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में है। इन पहलुओं के बारे में निर्णय लेने के लिए नियोक्ता ही सबसे अच्छा न्यायाधीश है। इन पहलुओं पर न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है।' उच्च न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि भर्ती नियमों के प्रावधान मनमाने, भेदभावपूर्ण या संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाले थे। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि प्राधिकारियों का निर्णय न्यायिक प्रशासन की बेहतरी के लिए नीतिगत निर्णय के दायरे में था, इसलिए इसे केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि कोई अन्य दृष्टिकोण संभव था।

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