हिंसा की घटनाओं ने अंतरआत्मा को झकझोर दिया
बंगाल की चुनावी हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी
चुनावी हिंसा के चार आरोपियों की जमानत रद्द कर दी
नई दिल्ली, 31 मई (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद एक भाजपा कार्यकर्ता पर हमला करने और उसकी पत्नी के जबरन कपड़े उतारने और छेड़छाड़ करने के चार आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह नृशंस अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमले से कम नहीं है। इस हिंसा ने हाईकोर्ट की आत्मा को झकझोर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 24 जनवरी 2023 और 13 अप्रैल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तथ्यों को ध्यान में रखते हुए। हमें लगता है कि वर्तमान मामला ऐसा है जिसमें आरोपी प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप इतने गंभीर हैं कि वे अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देते हैं। इसके अलावा, आरोपी व्यक्तियों द्वारा मुकदमे की कार्यवाही को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की आसन्न प्रवृत्ति है। बता दें, घटना 2 मई 2021 की है, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्विवाद है कि शिकायतकर्ता ने 2 मई 2021 की घटना के संबंध में शिकायत दर्ज कराने के लिए 3 मई, 2021 को सदाईपुर पुलिस स्टेशन पहुंचा था, लेकिन प्रभारी अधिकारी ने यह कहते हुए एफआईआर दर्ज करने से इन्कार कर दिया कि उसे और उसके परिवार के सदस्यों को अपनी सुरक्षा के लिए गांव से दूर चले जाना चाहिए। जाहिर है, स्थानीय पुलिस का यह दृष्टिकोण शिकायतकर्ता की उस आशंका को बल देता है कि आरोपी प्रतिवादियों का इलाके और यहां तक कि पुलिस पर भी दबदबा है। पीठ ने बताया कि मामले में प्राथमिकी केवल रिट याचिकाओं के एक बैच में 19 अगस्त 2021 के फैसले के तहत हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने पर दर्ज की गई थी, जिसमें सीबीआई को उन सभी मामलों की जांच करने का निर्देश दिया गया था जहां आरोप हत्या के अपराध और/या बलात्कार/बलात्कार के प्रयास से संबंधित महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित हैं।
इसमें कहा गया है कि शिकायतकर्ता के घर पर चुनाव नतीजों के दिन सुनियोजित हमला किया गया था, जिसका एकमात्र उद्देश्य बदला लेना था, क्योंकि उन्होंने भगवा पार्टी का समर्थन किया था। यह एक गंभीर परिस्थिति है जो हमें आश्वस्त करती है कि आरोपी व्यक्ति जिसमें प्रतिवादी भी शामिल हैं, विपक्षी राजनीतिक दल के सदस्यों को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे, जिसका आरोपी प्रतिवादी समर्थन कर रहे थे। जिस निंदनीय तरीके से इस घटना को अंजाम दिया गया, वह आरोपी व्यक्तियों के प्रतिशोधी रवैये और विपक्षी पार्टी के समर्थकों को किसी भी तरह से अपने अधीन करने के उनके घोषित उद्देश्य को दर्शाता है। यह नृशंस अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर एक गंभीर हमले से कम नहीं है।
फैसले में कहा गया कि प्रथम दृष्टया यह साबित करने के लिए सामग्री मौजूद है कि आरोपी व्यक्तियों ने एक गैरकानूनी सभा बनाई और शिकायतकर्ता के घर पर हमला किया, तोड़फोड़ की और घर का सामान लूट लिया। शिकायतकर्ता की पत्नी को बुरी तरह से बाल पकड़कर खींचा गया और उसके कपड़े उतार दिए गए। आरोपी व्यक्ति उस पर यौन हमला करने ही वाले थे कि महिला ने हिम्मत जुटाकर अपने शरीर पर मिट्टी का तेल डाल लिया और आत्मदाह की धमकी दी, जिस पर आरोपी व्यक्ति और प्रतिवादी शिकायतकर्ता के घर से भाग गए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि मामले में आरोपपत्र 2022 में दाखिल किया गया था, लेकिन मुकदमा आज तक एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि यह देरी मुख्य रूप से प्रतिवादियों सहित आरोपी व्यक्तियों द्वारा असहयोग के कारण हुई है, जो तथ्य रिकॉर्ड से स्पष्ट रूप से स्थापित है। इस पृष्ठभूमि में हमें लगता है कि अगर आरोपी प्रतिवादियों को जमानत पर रहने दिया जाता है, तो निष्पक्ष सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार, दोनों मामलों में, यानी, (i) अपराध की प्रकृति और गंभीरता जो लोकतंत्र की जड़ों पर हमले से कम नहीं है और (ii) आरोपी द्वारा निष्पक्ष सुनवाई को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की आसन्न संभावना, आरोपी प्रतिवादियों को दी गई जमानत रद्द की जानी चाहिए।
इसने ट्रायल कोर्ट से कार्यवाही में तेजी लाने और आदेश की तारीख से छह महीने के भीतर मुकदमा पूरा करने का भी अनुरोध किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि हाई कोर्ट सहित किसी भी उच्च मंच द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर कोई स्थगन आदेश पारित किया गया है, तो उसे निरस्त माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इसने राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक से यह भी कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि शिकायतकर्ता और अन्य सभी महत्वपूर्ण गवाहों को उचित सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे बिना किसी डर या आशंका के स्वतंत्र रूप से पेश हो सकें और मुकदमे में गवाही दे सकें। कोर्ट ने निर्देश दिया कि उसके निर्देश के किसी भी उल्लंघन की सूचना अपीलकर्ता-सीबीआई या शिकायतकर्ता द्वारा उचित कार्रवाई के लिए अदालत को दी जा सकती है।