बाघ और तेंदुए लगातार ले रहे हैं इंसानी जान
समाधान के नाम पर सिर्फ मुआवजा
लखनऊ, 31 मई (एजेंसियां)। यूपी में बाघ और तेंदुए लगातार इंसानी जान ले रहे हैं। सिर्फ 2024-25 में इनके हमलों से 61 घायल हुए हैं और 92 लोगों की मौत हुई है। साल दर साल बाघों और तेंदुओं के हमले में इंसान मारे जा रहे हैं। पिछले तीन साल में मृतकों की संख्या एक दशक के अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गई है। 2024-25 में ही मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण 61 घायलों और 92 मृतकों के परिजनों को 2.39 करोड़ रुपए का मुआवजा देना पड़ा। बहराइच से लेकर बिजनौर तक ये घटनाएं हो रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सिर्फ मुआवजे को समाधान मान लेना चाहिए या इस मुसीबत का कोई मुकम्मल हल ढूंढा जाएगा।
पिछले एक पखवाड़े के भीतर पीलीभीत, खुटार (शाहजहांपुर) और बहराइच में बाघों और तेंदुए के हमले में चार लोगों की जान चली गई। इनमें कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के अयोध्या पुरवा निवासी जाहिरा भी शामिल हैं, जो अपने घर की छत पर सो रही थीं। आधी रात के बाद तेंदुआ उन्हें उठा ले गया। इसी तरह से पीलीभीत में जंगल के किनारे खेत में गन्ने के फसल की निराई कर रही खिरकिया की लौंगश्री को बाघ ने मार डाला। खुटार में भी बाघ ने दो लोगों की जान ले ली। मतलब, घर से लेकर खेत तक लोग दहशत और खतरे की जद में हैं।
अगर इन घटनाओं की और अधिक भयावहता पर नजर डालें तो पाते हैं कि तेंदुओं ने वर्ष 2023 में बिजनौर में फरवरी से अगस्त के बीच ही 13 लोगों को मार डाला था। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2024-25 में मानव-वन्यजीव संघर्ष के चलते 60 लोगों ने जान गंवाई, जबकि 220 घायल हुए। ये 60 लोग कतर्नियाघाट, साउथ खीरी, बहराइच, नॉर्थ खीरी और बिजनौर के इलाकों में मारे गए। वहीं, घायल होने की घटनाएं कतर्नियाघाट, नॉर्थ खीरी, पीलीभीत, बहराइच और बिजनौर में हुईं।
स्थिति यह है कि यूपी के जंगलों में जैसे-जैसे तेंदुओं और बाघों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मानव वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। वर्ष 2012-13 में जहां मानव-वन्यजीव संघर्ष में 22 लोग मारे गए थे और 42 घायल हुए थे, वहीं अब मृतकों के मामले में यह आंकड़ा 3 गुना से ज्यादा और घायलों के मामले में 5 गुना हो गया है।
यूपी में वर्ष 2018 में 173 बाघ थे, जिनकी संख्या 2022 की गणना में बढ़कर 205 हो गई। 2022 की वन विभाग की गणना के अनुसार, यूपी में 848 तेंदुए थे, लेकिन विभाग के ही कुछ अधिकारी इस गणना पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि इसमें गन्ने के खेत में रहने वाले तेंदुओं की गिनती शामिल नहीं है। करीब एक हजार तेंदुए तो बिजनौर में ही जंगल से बाहर इन खेतों में बताए जाते हैं।