पुश-बैक अभियान रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

असम में विदेशियों के निर्वासन से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज

पुश-बैक अभियान रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

घुसपैठियों की वकालत में खड़े हुए बड़े-बड़े वकील

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा, गौहाटी हाईकोर्ट जाएं

नई दिल्ली, 02 जून (एजेंसियां)। असम में घुसपैठियों का निर्वासन रोकने से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी बात रखने के लिए गौहाटी हाईकोर्ट जा सकते हैं। याचिका में घुसपैठियों को वापस भेजने (पुश-बैक) के असम सरकार के अभियान को तत्काल प्रभास से रोकने की भी मांग की गई थी। लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से साफ तौर पर इन्कार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में आरोप लगाया गया था कि असम सरकार ने राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपाय समाप्त होने के पहले ही विदेशियों को हिरासत में लेने और उन्हें निर्वासित करने का अभियान शुरू दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ही पिछले दिनों असम सरकार समेत कई राज्यों को यह निर्देश दिया था कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को तत्काल प्रभाव से उनके देश भेजने की कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि भारतवर्ष भारत के लोगों के रहने के लिए है न कि घुसपैठियों के रहने के लिए।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से पूछा कि आप गौहाटी उच्च न्यायालय क्यों नहीं जा रहे हैं? इस पर वकील ने कहा कि यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में पारित आदेश पर आधारित है। पीठ ने फिर कहा कि गौहाटी उच्च न्यायालय जाएं। हेगड़े ने कहा कि हम हाईकोर्ट का रुख करने के लिए याचिका वापस ले लेंगे। पीठ ने उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

असम सरकार द्वारा 69 लोगों को बांग्लादेश वापस भेजे जाने की कार्रवाई के खिलाफ यह याचिका दाखिल की गई थी। इसमें घुसपैठियों की तरफ से कपिल सिब्बल जैसे कई बड़े-बड़े वकील प्रस्तुत हुए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गुवाहाटी हाईकोर्ट में ले जाने का निर्देश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता वहां अपनी बात रख सकते हैं। कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। याचिकाकर्ताओं को अब हाईकोर्ट में अपनी मांग रखनी होगी।

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घुसपैठियों को नो-मैन्स लैंड में धकेल रही असम सरकार

गुवाहाटी, 02 जून (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश के बाद असम सरकार ने विदेशी नागरिकों के रूप में घोषित किए गए लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा पर नो-मैन्स लैंड में धकेलने की प्रक्रिया शुरू कर रखी है। उन घुसपैठियों को वापस उनके देश धकेला जा रहा है जिन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने अवैध विदेशी घोषित किया है। सरकार इन घोषित विदेशी नागरिकों को भारत-बांग्लादेश सीमा के नो-मैन्स लैंड (निर्जन क्षेत्र) में जबरन धकेल रही है। 27 और 29 मई को असम के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों से कम से कम 50 घुसपैठियों को वापस उनके देश भेजा गया।

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असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने शुक्रवार को कहा था, अब तक ट्रिब्यूनलों द्वारा विदेशी घोषित किए गए 30,000 लोग गायब हो चुके हैं। एनआरसी अपडेट के दौरान यह प्रक्रिया रुकी हुई थीअब हमने इसे तेज करने का निर्णय लिया है। जैसे ही हमें कोई घोषित विदेशी मिलता हैहम कानून के अनुसार कार्रवाई कर रहे हैं। सीएम सरमा ने स्पष्ट किया कि आने वाले दिनों में इस तरह की कई पुश-बैक कार्रवाई होगी। कोई भी घोषित विदेशी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। यदि किसी ने अपील नहीं की हैतो भारत में रहने का उसका अधिकार समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका द्वारा किसी ट्रिब्यूनल आदेश पर स्टे दिया गया होतो सरकार उसका सम्मान कर रही है और ऐसे लोगों को रहने दिया गया है। उन्होंने कहाअवैध प्रवासियों के दो वर्ग हैं, एक वो जो हाल ही में भारत में घुसे हैंऔर दूसरे जिन्हें ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया गया है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में आदेश दिया था कि घोषित विदेशियों कोजिन्होंने कोई अपील नहीं की हैकिसी भी तरह से उन्हें वापस भेजा जाए। सिर्फ कल ही35 बांग्लादेशी जो कुछ दिन पहले ही सीमा पार कर भारत में घुसे थेमेघालय सीमा पर सिलचर के पास पकड़े गए और उन्हें तुरंत वापस भेज दिया गया। पुश-बैक कार्रवाई के बाद असम पुलिस और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अवैध घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर निगरानी बढ़ा दी है। हाल ही में जलालपुर में स्थानीय लोगों ने रात के अंधेरे में कई ऑटो-रिक्शा में यात्रा कर रहे 30 से अधिक संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को रोकाजिनके पास वैध भारतीय दस्तावेज नहीं थे। प्रारंभिक जांच से पता चला कि ये लोग भारत में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे थे और असम में चल रहे इस अभियान के डर से बांग्लादेश लौटने की कोशिश कर रहे थे।