राजा की वापसी के नारों से गूंज रहा है देश
नेपाल की राजधानी काठमांडू पर घिरे संकट के बादल
काठमांडू, 04 जून (एजेंसियां)। भारत के पड़ोसी हिमालयी देश नेपाल में कुछ समय घट रहे घटनाक्रमों ने देश को एक गंभीर राजनीतिक संकट में डाल दिया है। पूर्व गृह मंत्री कमल थापा को गिरफ्तार किए जाने तथा राजा आओ, देश बचाओ के नारों की गूंज ने राजधानी काठमांडू में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। आए दिन हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरकर राजशाही को वापस लाने की मांग कर रहे हैं। देश में राजा की वापसी को लेकर हर नुक्कड़ पर चर्चाएं चल रही हैं। इसके बरक्स लोकतंत्र समर्थकों का मानना है कि देश के लिए राजशाही शायद उतनी कारगर नहीं रहने वाली है।
काठमांडू में देश के पूर्व गृह मंत्री कमल थापा को गिरफ्तार कर लिया गया है। वे राजशाही लाने के प्रदर्शन में शामिल हुए थे। प्रदर्शन के बीच से उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया। प्रदर्शनकारी पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के चित्र हाथों में लेकर नारे लगा रहे थे कि नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करो। इसी विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) और आरपीपी नेपाल के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया था। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सरकारी आवास बालूवाटर की ओर तरफ बढ़ने की कोशिश में थे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ झड़प हुई और थापा को गिरफ्तार किया गया।
काठमांडू में देश के पूर्व गृह मंत्री कमल थापा को गिरफ्तार कर लिया गया है। वे राजशाही लाने के प्रदर्शन में शामिल हुए थे। 2008 में नेपाल में राजशाही खत्म हुई थी। उसके बाद लोकतांत्रिक पद्धति अपनाई तो गई लेकिन वह सही मायनों में कभी सफल नहीं हुई। संविधान में भी फेरबदल हुआ। जोड़ तोड़ कर हर रंग-रूप की सरकारें बनती रहीं लेकिन स्थायित्व नहीं आया। इस राजनीतिक अस्थिरता से विकास आदि के काम मद्धम पड़ते गए। गत 16 साल में उस देश में 10 प्रधानमंत्री सरकार चला चुके हैं, लेकिन किसी के लिए भी अपना काम करना सहज नहीं रहा।
नेपाली कांग्रेस, माओवादी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार और सत्ता संघर्ष के आरोप लगते रहे हैं। कम्युनिस्ट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड, केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा जैसे नेताओं की नीतियों से जनता में संतोष की बजाय असंतोष ही बढ़ता दिखा। असल में देखा जाए तो नेपाल में 240 साल से ज्यादा वक्त से राजशाही की परंपरा रही है। 1768 में राजा पृथ्वी नारायण शाह देव ने नेपाल को एकीकृत किया था। राजा बीरेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव के शासनकाल (1990-2001) को संवैधानिक राजशाही का शानदार उदाहरण माना जाता है। लेकिन 2001 में राजपरिवार हत्याकांड और 2006 में जनांदोलन के बाद राजशाही का धीरे धीरे अंत हो गया। परन्तु आज जैसी परिस्थितियां बनी हैं, उनमें राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, विकास न होने जैसे अनेक कारण हैं जिन्होंने राजशाही समर्थकों की संख्या को एकाएक बढ़ाया है। ये सभी मांग कर रहे हैं कि नेपाल में राजशाही वापस लौटे और देश एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र बने।
नेपाल आज फिर से दोराहे पर खड़ा है। राजशाही समर्थकों और लोकतंत्र समर्थकों के बीच बहस बढ़ती जा रही है। राजशाही का पलड़ा भारी होता दिखा है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने सिर्फ अपने स्वार्थ साधने का काम किया है। देश में गंभीर राजनीतिक संकट पैदा हुआ है। भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में वह हिमालयी देश किस करवट बैठेगा, यह समय ही बताएगा।