रूस और भारत के पुख्ता रक्षा संबंधों से अमेरिका बौखलाहट में
ऑपरेशन सिंदूर में रूसी विमानों और मिसाइलों ने साबित की क्षमता
अमेरिका से रक्षा सामान की खरीद की उम्मीद पर लगा ग्रहण
सोर्स-कोड के साथ 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट देने को रूस तैयार
दीनबंधु कबीर
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के बुरी तरह मार खाने की अंदरूनी वजहें अमेरिका को परेशान कर रही हैं। अमेरिका इसीलिए बौखलाया हुआ है कि भारत को रूस से मिले और रूस की मदद से भारत में विकसित किए गए विमानों और हथियारों ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी मारक क्षमता का जबरदस्त प्रदर्शन किया। इस उपलब्धि और अनुभव ने अमेरिका से रक्षा उपकरणों, विमानों और आयुधों की खरीद की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है। फ्रांस का बहुप्रचारित राफेल विमान भी इस ऑपरेशन में नाकाम साबित हुआ। इससे फ्रांस के साथ राफेल करार भी संकट में आ गया है। भारत ने फ्रांस से कहा है कि वह राफेल का सोर्स-कोड दे, ताकि राफेल को भारत में भारतीय जरूरतों के मुताबिक अपग्रेड किया जा सके। लेकिन फ्रांस ने सोर्स-कोड देने से मना कर दिया है। इसलिए यह माना जा सकता है कि फ्रांस के साथ हुई राफेल-डील अब खत्म है।
रूस और भारत के घनिष्ठ रक्षा संबंध आधी सदी से भी अधिक पुराने हैं। 1971 में पाकिस्तान-परस्त अमेरिकी रवैये के सामने सोवियत संघ भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था, जिसने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी (पार्टनरशिप) के स्तर तक पहुंचाया। यह संबंध आज भी कायम है। दिल्ली मास्को का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण रक्षा ग्राहक बना हुआ है, जिसके पास हजारों टैंक, बख्तरबंद वाहन, वायु रक्षा प्रणाली और सैकड़ों विमान हैं जो रूस से आयातित हैं या रूसी सोर्स-कोड से देश में विकसित किए गए हैं। यही वजह है कि आज ओकेबी-सुखोई यानि ऑपितनो कॉन्सट्रक्तॉरस्कोई ब्यूरो सुखोई (एक्सपेरिमेंटल डिजाइन ब्यूरो सुखोई) भारतीय वायु सेना का सबसे महत्वपूर्ण भागीदार है जो सैकड़ों एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों का संचालन करता है। पाकिस्तान के साथ हाल ही में हुई झड़पों में इन बहुउद्देशीय जेट विमानों अत्यंत कारगर भूमिका निभाई। भारतीय सेना ने इसके प्रदर्शन की पुरजोर तारीफ की है। यह प्रशंसा राफेल के विपरीत है जिसे अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा। इसने भारत को फ्रांसीसी निर्मित लड़ाकू जेट की भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए विवश किया।
ऑपरेशन सिंदूर से प्राप्त अनुभव के आधार पर ही भारत सरकार ने फ्रांस से राफेल का सोर्स कोड साझा करने के लिए कहा ताकि वह उसे अपने मुताबिक विकसित कर सके और उसमें घरेलू हथियारों (विशेष रूप से शक्तिशाली एस्ट्रा श्रृंखला की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों) को संलग्न कर सके। इससे चीन निर्मित लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की पाकिस्तानी तैनाती के सामने भारत को अपने जेट की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि, फ्रांस ने सोर्स-कोड साझा करने के भारत के अनुरोध को ठुकरा दिया है। इससे भारत द्वारा राफेल जैसे अत्यधिक महंगे और अतिरंजित जेट की खरीद का निर्णय विवादों और सवालों में घिरता जा रहा है। क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने राफेल खरीदने पर जो अरबों डॉलर बर्बाद कर दिए उससे कहीं कम दर पर और अधिक एसयू-30एमकेआई जेट खरीदे जा सकते थे, जिसने ऑपरेशन सिंदूर में कमाल का प्रदर्शन कर दिखाया। स्पष्ट है कि रूस-भारतीय लड़ाकू विमान की कीमत कई गुना कम है जबकि यह कहीं बेहतर और कारगर क्षमता वाले विमान साबित हुए हैं। एसयू-30एमकेआई भारत में निर्मित हो रहा है, यानि उन्हें खरीदने से न केवल हार्ड करेंसी में अरबों की बचत होती, बल्कि वास्तव में इसके घरेलू एयरोस्पेस उद्योग के विकास में भी मदद मिलती।
इन अनुभवों के मद्देनजर भारत को मॉस्को के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाने की अनिवार्यता और आवश्यकता है। इसीलिए भारत सरकार अपने पुराने करारों के विकल्पों पर पुनर्विचार भी कर रही है। इस दिशा में नवीनतम घटनाक्रम काफी सकारात्मक संभावनाएं दिखा रहा है। रूस ने भारत को एक अभूतपूर्व प्रस्ताव दिया है। अभी 4 जून 2025 को ही रूस के यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (यूएसी) ने न केवल एसयू-57ई अगली पीढ़ी के लड़ाकू जेट देने की पेशकश की, बल्कि इसके सोर्स-कोड देने तक का प्रस्ताव दिया है। यह वास्तव में उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण प्रस्ताव है, जो भारत के लिए सुनहरा अवसर प्रदान कर रहा है। यह प्रस्ताव जमीनी धरातल पर उतरा तो घरेलू रूप से विकसित प्रणालियों (विशेष रूप से एवियोनिक्स और हथियारों) के एकीकरण को सक्षम करेगा। यह भारत को आर्थिक शक्ति भी प्रदान करेगा और यह भारत जैसे एशियाई दिग्गज के महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप भी होगा। रक्षा मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने कहा कि रूस का यह प्रस्ताव सभी पश्चिमी प्रस्तावों को ग्रहण लगा देगा।
एसयू-57ई एक सुपरमैन्युवरेबल, कम नजर में आने वाला मल्टीरोल फाइटर जेट है जिसमें सुपर क्रूज़ करने की क्षमता है। इसके उन्नत एवियोनिक्स में सेंसर फ़्यूज़न भी शामिल है। रूसी हथियारों से सुसज्जित होना इसे और भी घातक बना सकती है। इस लड़ाकू विमान के सोर्स-कोड मिलने के साथ-साथ भारत को अभूतपूर्व तकनीकी और आर्थिक लाभ भी मिलेंगे जो कोई अन्य देश देने के लिए तैयार नहीं है। सेना के आला अधिकारी बताते हैं कि भारत को दिए गए एसयू-57ई में गैलियम नाइट्राइड (जीएएन), एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड ऐरे (एईएसए) रडार और एक भारतीय-विकसित मिशन कम्प्यूटर शामिल है। इससे भी बेहतर, यह भारत में चल रहे सुपर-सुखोई प्रोजेक्ट में मदद करेगा और इससे एसयू-30एमकेआई के बेड़े में भारी सुधार होगा। यह आने वाले दशकों तक कारगर रूप से प्रासंगिक बना रहेगा। यह एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) जैसी अगली पीढ़ी की महत्वाकांक्षी स्वदेशी परियोजनाओं को भी गति दे सकता है।
जैसा कि पहले बताया गया है, एसयू-57ई घरेलू रूप से विकसित हथियारों जैसे कि एस्ट्रा (एमके1 और एमके2 दोनों) और रुद्रम (एंटी-रेडिएशन मिसाइल) के साथ-साथ कई अन्य सटीक-लक्ष्य-निर्देशित हवा से जमीन पर मार करने वाले हथियारों को भी एकीकृत करने में सक्षम होगा। इससे भारत की अपनी सेना को आसानी से उपलब्ध हथियार उपलब्ध कराने की क्षमता में काफी सुधार होगा और यह महंगे विदेशी हथियारों पर निर्भरता को कम करेगा। इसके अतिरिक्त, यह एसयू-57 प्लेटफॉर्म पर आधारित पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान (एफजीएफए) कार्यक्रम को प्रभावी रूप से पुनर्जीवित करेगा। लागत का मामला भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रूसी जेट राफेल की तुलना में कई गुना सस्ता है। यह भी रेखांकित करने वाली बात है कि उच्च तीव्रता वाले संघर्ष में एसयू-57 की तुलना में राफेल ने बहुत खराब प्रदर्शन किया है। नाटो द्वारा संचालित हो रहे यूक्रेन संघर्ष में यही देखने को मिला है।
इस प्रगति (डेवलपमेंट) के अभूतपूर्व भू-राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं। सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति के लिए पश्चिम पर भारत की निर्भरता कम करेगा और रणनीतिक स्वतंत्रता का एक बेजोड़ स्तर प्रदान करेगा। लगभग सभी संप्रभु राष्ट्र खास तौर पर गैर-पश्चिमी प्लेटफार्मों और हथियार प्रणालियों का चयन करते हैं। नवीनतम रूसी तकनीक हासिल करने की परंपरा को जारी रखते हुए, भारत दुनिया के कुछ आत्मनिर्भर देशों में से एक बना रहेगा। अल्जीरिया जैसे अन्य संप्रभु देशों ने भी एसयू-57 का विकल्प चुना है। पश्चिम के दबाव से बचने के लिए कई देश रूस के साथ गुप्त बातचीत कर रहे हैं। रूस के साथ भारत के बढ़ते रक्षा संबंधों के कारण ही संयुक्त राज्य अमेरिका नाराज है। नवीनतम अंदरूनी जानकारियां भी यह बताती हैं कि अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बढ़ा रहा है।
यानि, जिस दिन क्रेमलिन ने यह प्रस्ताव रखा, उसी दिन अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने रूस के साथ संबंधों के लिए भारत की आलोचना की। आठवें यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम को संबोधित करते हुए, उन्होंने यह कहकर स्पष्ट रूप से इसका संकेत दिया कि कुछ ऐसी चीजें हैं जो भारत सरकार ने की हैं जो आम तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका को नापसंद हैं। लुटनिक ने यह भी कहा कि दिल्ली की ब्रिक्स सदस्यता समस्याग्रस्त है, क्योंकि संगठन नियमित रूप से अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देता है। लुटनिक ने चेतावनी देते हुए कि यह वास्तव में अमेरिका में दोस्त बनाने और लोगों को प्रभावित करने का तरीका नहीं है। भारत अपने पूर्व के अनुभवों से यह अच्छी तरह जानता समझता है कि अमेरिका उसे लगातार संघर्ष में उलझाए रखना चाहता है ताकि भारत बहुध्रुवीयता की प्रगति को धीमा कर सके। दुनिया के खिलाफ पश्चिम की आक्रामकता के इतिहास को देखते हुए तो यही साबित होता है।
इससे यह भी पता चलता है कि वाशिंगटन डीसी के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए दिल्ली की तत्परता उसके लिए कभी भी पर्याप्त नहीं है। हालांकि भारत ने कभी भी अमेरिकी लड़ाकू जेट नहीं खरीदे, फिर भी उसने अन्य प्रणालियां खरीदी हैं, जैसे कि पी-8 पोसिडॉन आईएसआर (खुफिया, निगरानी, टोही) विमान, अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर और यहां तक कि एम777 होवित्जर जो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) के कब्जे वाले यूक्रेन में विनाशकारी नुकसान झेल चुके हैं। फिर भी, अमेरिका और अधिक चाहता है, जैसा कि डोनाल्ड ट्रम्प की घोषणा से स्पष्ट है कि हम भारत को कई अरब डॉलर की सैन्य बिक्री बढ़ाएंगे। वाशिंगटन डीसी इस तरह के सौदों में संकटग्रस्त एफ-35 को शामिल करने के लिए बेताब है, लेकिन भारत ऐसे विनाशकारी ट्रैक रिकॉर्ड वाले जेट पर पैसा बर्बाद करने के लिए कतई इच्छुक नहीं है (यहां इस बात का उल्लेख नहीं कर रहे कि कौन-कौन से देश एफ-35 का उपयोग करके अपनी संप्रभुता खो चुके हैं या नुकसान झेल चुके हैं)। एसयू-57ई और रूस द्वारा पेश किए गए स्रोत कोड ने भारत द्वारा भविष्य में भी अमेरिका से एफ-35 खरीदे जाने की संभावना को लगभग असंभव बना दिया है। इससे ही अमेरिकी बौखलाहट की असली वजह समझी जा सकती है।
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