रेयर-अर्थ के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर होगा भारत

खनिज निर्यात बंद करने वाले चीन को जवाब देगा भारत

रेयर-अर्थ के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर होगा भारत

दुर्लभ खनिज में चीन का एकाधिकार तोड़ने की तैयारी

नई दिल्ली07 जून (एजेंसियां)। दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक (रेयर अर्थ मैग्नेट) पर चीनी दबदबे को मिटाने के लिए केंद्र सरकार इस दिशा में आत्मनिर्भर बनने की योजना बना रही है। दरअसलचीन ने 4 अप्रैल को दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक के निर्यात पर रोक लगा दिया है। चीन के इस फैसले से दुनियाभर की ऑटो इंडस्ट्री में हाहाकार मच गया है। जापान में सुजुकी ने स्विफ्ट कार का प्रॉडक्शन रोक दिया है तो भारत में भी कंपनियों के सामने मैन्युफैक्चरिंग रोकने की नौबत आ रही है।

ऐसे में केंद्र सरकार रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए चीन पर निर्भरता कम करने के लिए देश में इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना चाह रही है। सरकार संबंधित कंपनियों को काम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन (इंसेटिव) देने की रूपरेखा भी तैयार कर रही है। रेयर अर्थ मैग्नेट की सबसे ज्यादा जरूरत इलेक्ट्रिक वाहनोंमोबाइल और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में होता है। भारत इन मोर्चों पर बहुत मजबूती से कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में चीन की तरफ से खड़ी की गई बाधा नई चिंता का विषय बन गई है जिसे दूर करने के तरीके ढूंढ़े जा रहे हैं। दुनिया में 90 फीसदी दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक का उत्पादन चीन करता है।

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के खजाने के लिहाज से 69 लाख टन के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। लेकिन इसके उत्पादन में भारत की स्थिति बहुत दयनीय है। अभी सिर्फ एक सरकारी कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लि. (आईआरईएल) ही दुर्लभ तत्वों का खनन करती है। उसका उत्पादन भी परमाणु ऊर्जा और रक्षा इकाइयों की जरूरतें पूरा करने तक सीमित है। केंद्र ने तय किया है कि निजी कंपनियों को भी उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सूत्रों के हवाले से बताया कि सरकार निजी कंपनियों को दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के खनन और उसकी प्रोसेसिंग के काम में लगाने के लिए हर तरह से मदद करने को तैयार है। इसके लिए जरूरी मशीनों की विदेशों से आयात को ड्यूटी फ्री करने और प्रॉडक्शन पर इंसेंटिव देने की प्लानिंग है।

चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर रोक लगा देने से ऑटो कंपनियों को झटका लगा है। दुनिया भर की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों और उनके पार्ट्स सप्लायर्स को इन दिनों एक नई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। चीन द्वारा रेयर अर्थदुर्लभ खनिजों और मैग्नेट के निर्यात पर रोक लगाने से कुछ कंपनियों को अपने मॉडल्स का उत्पादन तक रोकना पड़ा है। रेयर अर्थ (दुर्लभ पृथ्वी खनिजों) से बने मैग्नेट का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मोटर्सखिड़कियों और ऑडियो स्पीकर्स जैसे कई हिस्सों में किया जाता है। इनकी कमी अब कंपनियों की सप्लाई चेन को गहरा नुकसान पहुंचा रही है।

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दुर्लभ खनिजों की कमी की वजह से फोर्ड ने मई महीने में एक हफ्ते के लिए अमेरिका के शिकागो प्लांट में अपनी एक्सप्लोरर एसयूवी का उत्पादन रोक दिया। सुजुकी मोटर ने 26 मई से अपनी सबसे पॉपुलर कार स्विफ्ट का उत्पादन अस्थायी रूप से बंद कर दिया। कंपनी ने इसकी वजह पार्ट्स की कमी बताई है और उम्मीद जताई है कि 13 जून से आंशिक तौर पर उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। और 16 जून के बाद पूरी तरह से वापस पटरी पर आ जाएगा। हालांकि यह बंदी सीधे तौर पर चीन की पाबंदियों से जुड़ी हुई है। लेकिन सुजुकी ने इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की। यूरोप की ऑटो सप्लायर एसोसिएशन क्लेपा ने 4 जून को बताया कि यूरोप की कई कंपनियों के कारखानों और उत्पादन लाइनों को भी इन खनिजों की कमी के चलते बंद करना पड़ा है।

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भारत में बजाज ऑटो ने भी चेतावनी दी है कि अगर चीन से दुर्लभ मैग्नेट की सप्लाई में और देरी होती है तो जुलाई तक उनकी इलेक्ट्रिक व्हीकल प्रोडक्शन पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है। ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनी बॉश ने कहा है कि उनके सप्लायर्स को चीन से एक्सपोर्ट लाइसेंस लेने के लिए ढेर सारे डाक्यूमेंट्स और जानकारी जमा करनी पड़ रही हैजिससे सप्लाई में रुकावट आ रही है। बीएमडब्ल्यू ने भी माना कि उनके कुछ सप्लायर्स इस कमी से प्रभावित हुए हैं। लेकिन कंपनी की अपनी फैक्ट्रियां अभी तक सामान्य रूप से चल रही हैं। भारत की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी ने कहा कि अभी तक उनके उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ा है। लेकिन सरकार से इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है। जर्मनी की ऑटो पार्ट्स सप्लाई करने वाली जेडएफ कंपनी ने कहा कि दुर्लभ खनिजों की कमी का असर उसके कुछ सप्लायर्स पर पड़ा है। हालांकि कंपनी खुद सीधे ये कच्चा माल नहीं खरीदती। इस समय जो स्थिति बनी हैउससे साफ है कि इलेक्ट्रिक वाहनों और उनके कंपोनेंट्स के लिए जरूरी दुर्लभ खनिजों पर चीन की निर्भरता दुनिया की कई ऑटो कंपनियों के लिए एक गंभीर जोखिम बन चुकी है।

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कारड्रोन और रोबोट से लेकर एयरक्राफ्ट के पार्ट्स तक बनाने में इस्तेमाल होने वाले बेशकीमती धातुओं (रेयर अर्थ मेटल) का 90% उत्पादन अकेले चीन करता है। वहींइसकी माइनिंग पर चीन की हिस्सेदारी 70% से अधिक है। इससे पता लगाया जा सकता है कि चीन इन धातुओं के बाजार का अकेला मालिक है। चीन ने हाल ही में अमेरिका के साथ बढ़ती ट्रेड वॉर के बीच सात कीमती धातुओं (रेयर अर्थ मेटल) के निर्यात पर रोक लगा दी थी। कारों के प्रोडक्शन में प्रमुखता से इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मैग्नेट पर भी चीन ने पाबंदी लगाई हुई है। ये मैग्नेट सेमीकंडक्टर और एयरोस्पेस बिजनेस के लिए भी बेहद अहम हैं।

गाड़ियों को बनाने में सबसे ज्यादा मात्रा में स्टील का इस्तेमाल होता हैलेकिन कुछ पार्ट्स को तैयार करने में रेयर अर्थ मेटल का इस्तेमाल किया जाता है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कुल 7 तरह के रेयर अर्थ मेटल का उपयोग होता है। इनमें समेरियम सबसे ज्यादा चर्चा में है जिसका इस्तेमाल चुंबक बनाने में किया जाता है। इस मेटल से बने चुंबक हाई टेम्प्रेचर पर भी अपनी ताकत नहीं खोते। इससे बने चुंबकों का इस्तेमाल मिसाइल गाइडेड सिस्टमटर्बाइनइलेक्ट्रिक मोटर में किया जाता है। समेरियम के अलावागैडोलिनियमटरबियमडिसप्रोसियमल्यूटेटियमस्कैंडियम और यिट्रियम जैसे धातुओं का भी इस्तेमाल होता है।

जरूरी खनिजों की आपूर्ति में बाधा डालना खतरनाक गोयल

नई दिल्ली, 07 जून (एजेंसियां)। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति में किसी खास देश द्वारा बाधा डालना या जरूरी खनिजों की आपूर्ति कुछ देशों तक सीमित होना वैश्विक आर्थिक विकास के लिए खतरा है। गोयल ने आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने पर जोर दिया और साथ ही चीन की खनिज के क्षेत्र में बढ़ती निरंकुश पकड़ को लेकर चिंता जताई। पिछले दिनों इटली दौरे पर गए वाणिज्य मंत्री ने कहा था कि दुनिया को यह समझना चाहिए कि खनिजों का खनन और उनका प्रसंस्करण कुछ ही क्षेत्रों में सीमित होना कितना खतरनाक हो सकता हैखासकर तब जब ये खनिज स्वच्छ ऊर्जा के लिए जरूरी हो गए हैं। गोयल ने कहा कि यह जरूरी है कि दुनिया यह समझे कि अगर महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति और उनका प्रसंस्करण कुछ ही देशों तक सीमित रहेगातो यह कभी भी वैश्विक आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचा सकता है। बता दें कि केंद्रीय मंत्री गोयल अपने बयान में जिन खनिजों का जिक्र कर रहें हैंउनमें कोबाल्टतांबालिथियमनिकल और दुर्लभ पृथ्वी तत्व शामिल हैंजो इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर पवन टरबाइन तक में इस्तेमाल होते हैं। देखा जाए तो विशेष रूप से चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती पकड़ को लेकर कई देशों की चिंता बढ़ी है। चीन ने दुनिया भर में इन खनिजों का भारी मात्रा में अधिग्रहण किया हैजिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर उसका नियंत्रण बढ़ गया है।

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