वीडियो जारी होने से वोटर पर खतरा हो सकता है

वीडियो जारी होने से वोटर पर खतरा हो सकता है

बूथ का वीडियो जारी करने की मांग का परिपक्व जवाब

नई दिल्ली, 21 जून (एजेंसियां)। मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज सार्वजनिक करने की मांग पर चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को करारा जवाब दिया है। निर्वाचन आयोग ने कहा कि मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज सार्वजनिक करना मतदाताओं की निजता और सुरक्षा संबंधी संवेदनशीलता का उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने कहा कि इस तरह की मांग मतदाताओं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हिफाजत के बजाय बिल्कुल विपरीत उद्देश्य को प्राप्त करने के इरादे से हो रही है।

चुनाव आयोग ने कहा कि इस तरह की मांग वास्तव में मतदाताओं की निजता और सुरक्षा पर गहरे संकट खड़े करेगी। यह मांग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम1950 और 1951 में निर्धारित कानूनी स्थिति और शीर्ष कोर्ट के निर्देशों के पूरी तरह विपरीत है। आयोग ने कहा कि फुटेज को साझा करने से मतदाता असामाजिक तत्वों के निशाने पर आ सकते हैं। इससे किसी भी समूह या व्यक्ति की ओर से मतदाताओं की पहचान करना आसान हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर आयोग ने कहा कि यदि किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी विशेष बूथ पर कम वोट मिलते हैं तो वह सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से आसानी से पहचान सकता है कि किस मतदाता ने वोट दिया है और किस मतदाता ने नहीं। उसके बाद उन्हें परेशान या धमकाया जा सकता है। निश्चित रूप से चुनाव आयोग सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों की अवधि के लिए अपने पास रखता हैजो पूरी तरह से एक आंतरिक प्रबंधन है। यह अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। यह प्रक्रिया भी चुनाव याचिका दायर करने के लिए निर्धारित अवधि की वजह से  है।

आयोग ने साफ किया कि परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के बाद किसी भी चुनाव को चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसलिए इस अवधि से अधिक समय तक फुटेज को अपने पास रखने से गैर-प्रतियोगियों कर ओर से गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण खबरें फैलाने के लिए सामग्री का दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि यदि 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दायर की जाती हैतो सीसीटीवी फुटेज को नष्ट नहीं किया जाता है और मांगे जाने पर इसे सक्षम न्यायालय को भी उपलब्ध कराया जाता है।

मतदाता की गोपनीयता बनाए रखना चुनाव आयोग के लिए अपरिहार्य है। आयोग ने कानून में निर्धारित इस आवश्यक सिद्धांत पर कभी समझौता नहीं किया हैजिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है। अपने इलेक्ट्रॉनिक डेटा के दुर्भावनापूर्ण जरिया बनने के डर से चुनाव आयोग ने अपने राज्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि उस अवधि के भीतर अदालतों में फैसले को चुनौती नहीं दी जाती हैतो वे 45 दिनों के बाद चुनाव प्रक्रिया के सीसीटीवी कैमरेवेबकास्टिंग और वीडियो फुटेज को नष्ट कर दें।

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