एक अफसर को बना दिया था चीफ जस्टिस
कांग्रेस ने न्यायिक व्यवस्था को तहस-नहस किया
आईसीएस अफसर के पास लॉ की डिग्री भी नहीं थी
सुप्रीम कोर्ट के अराजक, गैर संवैधानिक और गैर लोकतांत्रिक फैसलों पर करारा प्रहार करने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भारत की न्यायिक व्यवस्था को तहस-नहस करने के लिए कांग्रेस पार्टी को जिम्मेदार ठहराया है। निशिकांत दुबे ने कहा है कि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने एक ऐसे नौकरशाह को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया था, जिसने कभी कानून की पढ़ाई नहीं की। निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर अपना प्रहार जारी रखा है। भाजपा ने उनके बयान से खुद को किनारे कर लिया, लेकिन अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले उनके समर्थन में सामने आ गए हैं। देश के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के उपसभापति डॉ. जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के विवादास्पद आचरण को लेकर पहले से ही नाराज हैं और अपनी नाराजगी सार्वजनिक मंचों पर अभिव्यक्त भी कर रहे हैं।
कानून की पढ़ाई किए बगैर किसी नौकरशाह को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिए जाने की कांग्रेस सरकार की हरकत के बारे में सामान्य तौर पर नई पीढ़ी को जानकारी नहीं है। निशिकांत दुबे द्वारा वह प्रसंग खोले जाने के बाद देश को यह पता चला है कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का कितना नुकसान किया है। भारत के 10वें मुख्य न्यायाधीश के पास कानून की डिग्री थी ही नहीं, यह जानते हुए भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) के अफसर कैलाशनाथ वांचू को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया था। वांचू ने अपने 10 महीने के कार्यकाल में कई फैसले लिए। विडंबना यह है कि कानून की डिग्री के बगैर उस नौकरशाह को सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश और राजस्थान हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बनाया और उसके लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के लिए रास्ता बनाया।
कैलाशनाथ वांचू भारत के दसवें मुख्य न्यायाधीश थे। वांचू 12 अप्रैल 1967 से 24
वांचू के कुछ फैसलों को आज के परिप्रेक्ष्य में नजीर की तरह रखा जाना चाहिए। उस समय की कांग्रेस सरकार को वांचू का फैसला जंच रहा था। वांचू की पीठ ने फैसला दिया था कि संसद संविधान के तीसरे भाग में बदलाव नहीं कर सकती। जस्टिस वांचू ने तब फैसला दिया था कि संसद को संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार है। तब कांग्रेस उस फैसले का साथ दे रही थी। आज कांग्रेस उसके ठीक विपरीत फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का समर्थन कर रही है। क्योंकि आज जब वह विपक्ष में है तो उसे सुप्रीम कोर्ट का गैर लोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक फैसला पसंद आ रहा है। आज सुप्रीम कोर्ट खुद को राष्ट्रपति और संसद के ऊपर स्थापित करने की अभद्र और अमर्यादित कोशिशें कर रहा, लेकिन कांग्रेस पार्टी को यह अभद्रता रास आ रही है।
उधर, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा वक्फ बोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए बयान पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा उनके समर्थन में सामने आए हैं। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसके पिछले बयानों की याद दिलाते हुए नसीहत दी। साथ ही कहा भाजपा ने हमेशा न्यायपालिका और उसकी गरिमा को बनाए रखने का प्रय़ास किया है। सीएम सरमा ने कहा, यही कांग्रेस तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ बिना किसी सबूत के महाभियोग का प्रस्ताव लाई थी। इसके अलावा पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के मंदिर जाने पर और गणेश चतुर्थी पर उनके आवास पर हुई पूजा में प्रधानमंत्री मोदी के शरीक होने पर कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों ने अभद्रतापूर्ण टिप्पणियां जारी की थी। तब क्यों नहीं इनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाया गया था? भारत की संसद द्वारा पारित किए गए वक्फ संशोधन कानून-2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई शुरू किए जाने पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दी है। अठावले ने कहा, न्यायपालिका को यह बात माननी पड़ेगी कि देश की संसद ही सुप्रीम है। कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद पर होती है और कानून के अनुसार न्याय देने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की होती है। हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन, उसे भी संसद का आदर करना चाहिए। संसद के बनाए कानून पर बेजा टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट को शोभा नहीं देती है।