इस बार पाकिस्तान के खिलाफ सिंधु-स्ट्राइक

सिंधु जल समझौता स्थगित करने से बौखलाया पाकिस्तान

 इस बार पाकिस्तान के खिलाफ सिंधु-स्ट्राइक

फिर भी पाकिस्तान बंद नहीं कर रहा आतंक की फैक्ट्री

नई दिल्ली, 24 अप्रैल (एजेंसियां)। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में दो दर्जन से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने कड़े कदम उठाए हैं। अटारी-वाघा बार्डर बंद करने के साथ ही सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया गया है। पानी न मिलने से पाकिस्तान बौखला गया है और उसने भारत के खिलाफ कई कदम उठाए हैं। पाकिस्तान की सुरक्षा समिति की बैठक में भारत के साथ कारोबार बंद करने का फैसला लिया गया है। पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर बंद करने का निर्णय लिया है। पाकिस्तान भी भारत के राजनयिकों को वापस भेजेगा। भारत की ओर से पानी रोकने को पाकिस्तान ने युद्ध जैसा कदम बताया। उसने भारतीय एयरलाइंस के लिए एयरस्पेस भी बंद कर दिया है। सिंधु जल समझौता स्थगित करने की घोषणा इस प्रस्ताव के साथ की गई थी कि पाकिस्तान अपने देश से आतंकवादियों को पालने और पड़ोसी देश में हिंसा फैलाने की हरकतें रोक दे तो जल समझौते का स्थगन हटाया जा सकता है। लेकिन पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री बंद करने की घोषणा करने के बजाय ऊल-जुलूल हरकतें करने में लगा हुआ है।

वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा वापस ले लिया था। आयात पर 200 प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी लगा दी थी। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ दिएजिससे औपचारिक व्यापार लगभग ठप्प हो गया। इससे पाकिस्तान और भी बदहाली के गर्त में चला गया।

पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में करीब ढ़ाई घंटे चली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट (सीसीएस) की मीटिंग में चार बहुत बड़े फैसले लिए गए। भारत ने सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौते पर रोक लगा दी। अटारी-वाघा बॉर्डर बंद कर दिया गया। पाकिस्तानियों का वीजा बंद कर दिया गया और पाकिस्तान में भारतीय दूतावास और भारत में पाकिस्तानी दूतावस बंद करने का निर्णय लिया गया। भारत द्वारा अटारी-वाघा सीमा बंद करनापाकिस्तानियों के वीजा पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाना और दोनों देशों के दूतावासों को बंद करने का निर्णय इस बात की गवाही देता है कि भारत की रणनीति अब प्रतिरोध की नहीं बल्कि प्रतिशोध की है। खासतौर सेसिंधु जल समझौते पर रोक लगाने का भारत का फैसला पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है। पाकिस्तान के लिए यह केवल कूटनीतिक नहींअस्तित्वगत संकट की आहट है। यह तय है कि भारत से पानी रोके जाने से पाकिस्तान की ऐसी कमर टूटेगी कि वह न अपनी जमीन पर आतंकियों को पालने-पोसने में समर्थ होगा और न घाटी में अलगाववादियों का समर्थन करने की उसकी हैसियत बचेगी।

भारत द्वारा अपने ही हिस्से का पानी रोकने का अर्थ है कि पाकिस्तान की जल आधारित परियोजनाएं जैसे कि मंगलातरबेलानीलम-झेलम और दासू हाइड्रोपावर परियोजना भी ठप्प पड़ जाएंगी। पाकिस्तान की कुल पनबिजली उत्पादन क्षमता का करीब 58 प्रतिशत इन्हीं परियोजनाओं पर निर्भर हैजो अब भारत के इस निर्णय से गहरे संकट में आ जाएंगी। ऊर्जा संकट की मार झेलते पाकिस्तान मेंजहां पहले से ही बिजली कटौती आम हैवहां यह स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। यही नहींपाकिस्तान के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा जाएगी। पाकिस्तान के जल और ऊर्जा संसाधन प्राधिकरण की 2023 की रिपोर्ट के अनुसारपंजाब और सिंध के लगभग 80 प्रतिशत खेतों की सिंचाई इन्हीं नदियों से होती है। सिंधु जल प्रवाह के रुकने का अर्थ है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन घटेगाबेरोजगारी बढ़ेगी और खाद्य संकट उत्पन्न होगा। पाकिस्तान की खाद्य आयात निर्भरता पहले से ही बढ़ती जा रही है और भारत के इस निर्णय से यह निर्भरता आतंकिस्तान में विकराल रूप ले सकती है। सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देखें तो विभाजन के समय भारत ने मानवता की भावना से काम लेते हुए पाकिस्तान को निर्धारित समय सीमा के बाद भी पानी देना जारी रखा था लेकिन जब 1 अप्रैल 1948 को भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली दो नहरों का पानी रोक दिया थातब पाकिस्तान की लगभग 17 लाख एकड़ भूमि बंजर हो गई थी। यही इतिहास अब दोहराए जाने की संभावना है लेकिन इस बार और व्यापक स्तर पर।

Read More युवा सशक्तिकरण के लिए कौशल विकास पर योगी सरकार का जोर

कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि सिंधु जल संधि पर रोक के भारत के फैसले के बाद भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के विरोध का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि संभवतः ऐसा नहीं होगा क्योंकि भारत संधि के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर रहा बल्कि अपने हिस्से के पानी का ही इस्तेमाल सुनिश्चित कर रहा है। दरअसल सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (4) में स्पष्ट है कि कोई भी पक्ष इस संधि को द्विपक्षीय संबंधों की बिगड़ी हुई स्थिति के आधार पर पुनर्विचार के लिए प्रस्तुत कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय जल संधियों में राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है और चीन इसका बड़ा उदाहरण हैजिसने साउथ चाइना सी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। भारत भी अपने जल संसाधनों पर सम्प्रभु अधिकार रखते हुए यह निर्णय लेने में वैधानिक और नैतिक रूप से पूर्णतः सक्षम है। जल सुरक्षा अब केवल संसाधन से जुड़ा मुद्दा नहीं रहा बल्कि रणनीतिक शक्ति का प्रतीक भी बन चुका है।

Read More नेपाल सीमा के नजदीकी जिलों में अवैध कब्जों पर कार्रवाई जारी

वॉटर स्ट्राइक की अवधारणा अब भारत के कूटनीतिक शस्त्रागार में एक नया आयाम बनकर उभरी है। भारत जल के माध्यम से न केवल पाकिस्तान की आतंक प्रायोजक क्षमता को चुनौती दे रहा है बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी दे रहा है कि अब परंपरागत प्रतिक्रियाओं का दौर समाप्त हो चुका है। सिंधु जल संधि पर रोक लगाकर भारत ने अपनी रणनीति में दीर्घकालिक सोच दिखाई है। यह निर्णय केवल तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालीन सामरिक नीति का हिस्सा है। विशेषज्ञों के अनुसारयदि भारत सिंधु के पानी को रोकता है और अपनी बांध परियोजनाओं को तेज करता है तो पाकिस्तान का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर भारत जहां अपनी कृषिऊर्जा और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकता हैवहीं पाकिस्तान की स्थिति इससे दिन-ब-दिन दयनीय होती जाएगी और ऐसे में भारत की वाटर स्ट्राइक उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ देगी। भारत ने यदि भविष्य में इस संधि को पूरी तरह समाप्त करने का निर्णय लिया तो पाकिस्तान के लिए यह उसके राजनीतिकआर्थिक और मानवीय अस्तित्व की सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगा।

Read More  भारत ने नौ आतंकी ठिकानों को चुन कर किया ध्वस्त

Tags: