नाबालिग वोट नहीं दे सकते, लेकिन सेक्स कर सकते हैं..!
सुप्रीम कोर्ट का नया फरमान, आपको कर देगा हैरान
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा, पॉक्सो एक्ट में संशोधन करें
नाबालिग सहमति से सेक्स करें तो वह अपराध नहीं होगा
नई दिल्ली, 27 मई (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट भारतवर्ष की सांस्कृतिक सामाजिक संरचना को तहस-नहस करने पर तुला है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज कानून यानि पॉक्सो एक्ट में संशोधन करे, ताकि नाबालिगों (18 साल से कम) के सेक्स संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आएं। सुप्रीम कोर्ट का यह मानना है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे सहमति से यौन संबंध बनाने का निर्णय लेने के योग्य होते हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह न्यायिक समझदारी तब कहां चली जाती है, जब चुनाव आयोग वोट डालने की न्यूनतम उम्र 18 साल तय करता है? वोट डालने की न्यूनतम उम्र पहले 21 साल थी, जिसे घटा कर 18 साल कर दिया गया। चुनाव आयोग ने यह माना कि 18 साल की उम्र तक वोट डालने और अपना प्रतिनिधि चुनने की समझदारी आ जाती है। तब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह क्यों नहीं कहा था कि 14 साल की उम्र में सेक्स संबंध बनाने का निर्णय लेने की समझ आ जाती है तो वोट देने का अधिकार भी 14 साल पर ही तय किया जाए। सुप्रीम कोर्ट का ऐसा रवैया चलता रहा तो आप समझ लें कि इस देश को भारी अराजकता की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकता। बलात्कार की घटनाओं से चिंतित देश बलात्कार की घटनाओं से भर जाएगा और तब सुप्रीम कोर्ट तालियां बजाएगा।
सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि उसने केंद्र सरकार को एक अहम सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किशोरों के बीच सहमति से बनने वाले प्रेम-संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और देश में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) की नीति बनाने पर विचार करना चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि किशोरों को प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पोक्सो) एक्ट के तहत जेल न जाना पड़े। यह सलाह एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति बनाने और 25 जुलाई 2025 तक रिपोर्ट देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस रिपोर्ट के आधार पर आगे के निर्देश देगा।
यह मामला पश्चिम बंगाल की एक महिला की कानूनी लड़ाई से शुरू हुआ। इस महिला के पति को पोक्सो एक्ट के तहत 20 साल की जेल हुई थी, क्योंकि जब वह 14 साल की थी, तब उनके बीच सहमति से रिश्ता था। महिला अपने पति को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची। इस मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दो वरिष्ठ महिला वकीलों, माधवी दीवान और लिज मैथ्यू को इस संवेदनशील मुद्दे पर सलाह देने के लिए नियुक्त किया। इन वकीलों ने कहा कि पोक्सो एक्ट का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, लेकिन किशोरों के बीच सहमति वाले रिश्तों में इसका सख्ती से लागू करना कई बार गलत नतीजे देता है। इससे न सिर्फ किशोरों को, बल्कि उनके परिवारों को भी नुकसान होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले तो पति की सजा बरकरार रखी थी, लेकिन सजा के अमल पर रोक लगाकर एक कमेटी का गठन कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की न्यायमित्र कमेटी ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पति की सजा खत्म कर दी। इस फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बेहद लचीला रुख अपनाया। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के संघर्षों, उसके भविष्य, दोनों के बच्चे और उनके साथ रहने को भी अपने फैसले में शामिल किया। इस मामले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस अहम मुद्दे पर सोच विचार करने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो बड़े कदम उठाने को कहा है। इसमें शामिल है, किशोरों के सहमति वाले रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बने रिश्तों को अपराध न माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाए। इस समिति में महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और कुछ विशेषज्ञ शामिल हों। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि समिति में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की डॉ. पेखम बसु, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जयिता साहा और दक्षिण 24 परगना के जिला सामाजिक कल्याण अधिकारी संजीव रक्षित को स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल किया जाए। समिति को इस मुद्दे पर विचार करके 25 जुलाई 2025 तक अपनी रिपोर्ट देनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यूनेस्को की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया कि भारत में यौन शिक्षा सिर्फ सेकेंडरी स्कूलों में दी जाती है, और वह भी बहुत सीमित तरीके से। कोर्ट का कहना है कि अगर किशोरों को सही समय पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी दी जाए, तो वे अपने फैसलों के कानूनी और सामाजिक परिणामों को बेहतर समझ सकेंगे। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह इस दिशा में एक ठोस नीति बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने कई हाईकोर्ट के फैसलों का जिक्र किया, जो इस मुद्दे पर पहले ही संवेदनशील रुख अपना चुके हैं। कोर्ट ने खास तौर पर दिल्ली, मद्रास और कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया है।
मद्रास हाईकोर्ट ने कई मामलों में कहा कि पोक्सो एक्ट का मकसद सहमति वाले रिश्तों को अपराध बनाना नहीं था। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि सहमति वाले रिश्तों में पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असाल्ट की परिभाषा लागू नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसमें हमला जैसी कोई बात नहीं होती। 2001 में भी मद्रास हाईकोर्ट ने सुझाव दिया था कि ऐसे रिश्तों को सजा से बचाने के लिए कानून में बदलाव करना चाहिए। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि पोक्सो एक्ट में पेनेट्रेशन को एकतरफा हरकत माना गया है, यानी इसे सिर्फ आरोपी की हरकत माना जाता है। लेकिन सहमति वाले रिश्तों में यह जिम्मेदारी सिर्फ एक पक्ष पर नहीं डाली जा सकती। फरवरी 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक लड़के को राहत देते हुए उसके खिलाफ पोक्सो का मामला रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि कानून का मकसद शोषण और दुरुपयोग को रोकना है, न कि प्रेम को सजा देना। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रेम एक बुनियादी मानवीय अनुभव है और किशोरों को भी सहमति से भावनात्मक रिश्ते बनाने का हक है, बशर्ते उसमें कोई दबाव या शोषण न हो।
उच्च न्यायालयों ने यह भी माना कि अगर ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई की जाए, तो इससे पीड़ित (लड़की) और उसके परिवार को भी नुकसान हो सकता है। कई बार हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों को रद्द किया, जहां आगे कार्रवाई करना पीड़ित के लिए ही हानिकारक था। सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि ज्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि सहमति की उम्र (एज ऑफ कंसेंट) को 2012 में 16 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया है। इस अनभिज्ञता की वजह से कई किशोर अनजाने में कानून तोड़ रहे हैं। पोक्सो एक्ट के तहत अगर कोई 18 साल से कम उम्र का व्यक्ति यौन संबंध बनाता है, तो उसे अपराध माना जाता है, भले ही वह सहमति से हो। इसके अलावा कोर्ट ने माना कि किशोरावस्था में हार्मोनल और जैविक बदलावों की वजह से लड़के-लड़कियां रिश्तों की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे में उन्हें सजा देने के बजाय, उनके माता-पिता और समाज को उनका समर्थन और मार्गदर्शन करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किशोरों के फैसलों को बड़ों के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे उनके प्रति सहानुभूति की कमी हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की सलाह पश्चिमी देशों की व्यवस्था, वहां की सामाजिक स्वच्छंदता और वहां के आपराधिक माइंडसेट से प्रभावित है। जबकि सुप्रीम कोर्ट को इन मुद्दों पर भारत की सामाजिक स्थिति और उस पर पड़ने वाले असर के नजरिए से देखना होगा। पश्चिमी समाजों में जो नियम चल सकते हैं, वे भारत में भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। भारत में पहले से ही जबरन बाल विवाह, नाबालिग लड़कियों की निकाह, शादी के नाम पर मानव तस्करी और धर्म परिवर्तन के लिए ग्रूमिंग जैसी गंभीर समस्याएं हैं। अगर किशोरों के बीच सहमति वाले यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, तो ये एक कानूनी खामी बन सकती है, जिसका गलत लोग फायदा उठा सकते हैं।
पोक्सो एक्ट का मकसद प्रेम को रोकना नहीं है, लेकिन इसे इसलिए भी बनाया गया था ताकि बड़े लोग नाबालिग लड़कियों के साथ किशोर प्रेम के नाम पर शादी या रिश्ते बनाकर उनका शोषण न करें। कई बार निकाह का रास्ता अपना कर पोक्सो एक्ट से बचा जाता है। उदाहरण के लिए, जून 2022 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने शरिया का हवाला देकर कहा था कि 16 साल की मुस्लिम लड़की निकाह के लिए योग्य है। क्या ऐसी नरमी तस्करों और शोषण करने वालों को और हिम्मत नहीं देगी, जो पहले से ही सिस्टम का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं?
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व चेयरमैन प्रियंक कानूनगो ने कहा, नाबालिग अपनी सरकार नहीं चुन सकते, उन्हें वोट देने का अधिकार भी नहीं है। क्या हम उनसे यह उम्मीद कर रहे हैं कि वे अपने यौन साथी को समझदारी से चुनें? सावधान रहें, इससे नाबालिग लड़कियों के साथ निकाह और बाल विवाह के अन्य रूपों को वैधता मिल सकती है। यह सिर्फ कानूनी भाषा का मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जटिलताओं का भी सवाल है। अगर 14 या 15 साल की उम्र के बच्चों के बीच सहमति वाले रिश्तों को कानूनन मंजूरी दे दी गई, तो प्रेम और शोषण के बीच की रेखा और धुंधली हो जाएगी। सहमति की जांच कौन करेगा? गरीब और हाशिए पर रहने वाली लड़की, जो 14-15 साल की है, क्या वाकई में दबाव या लालच को प्रेम समझने की गलती से बच पाएगी? भारत में बाल विवाह अभी भी एक बड़ी समस्या है। हर साल हजारों, बल्कि लाखों बाल विवाह हो रहे हैं। अगर किशोरों के यौन संबंधों को कानूनन सामान्य कर दिया गया, तो धार्मिक संगठन, खाप पंचायतें और तस्करी करने वाले गिरोह कमजोर लड़कियों को शादी या शोषण की स्थिति में धकेल सकते हैं और वो भी कानूनी तौर पर सुरक्षित होकर। कुछ मामलों में पोक्सो एक्ट का गलत इस्तेमाल होता है लेकिन कानून में बदलाव बहुत सोच-समझकर करना होगा, न कि एकबारगी सब कुछ बदल देना चाहिए।