जहां हिंदुओं का खून बहा, वहां गोल्फ खेल रहे फारूक अब्दुल्ला
पहलगाम पहुंचे जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री
श्रद्धांजलि दे रहे थे या मखौल उड़ा रहे थे?
पहलगाम, 27 मई (एजेंसियां)। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में एक महीने पहले आतंकवादियों ने चुन-चुन कर हिंदू पर्यटकों को मारा था। पाकिस्तान के खिलाफ शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर उस जख्म को भरने की धीरे-धीरे कोशिश कर रहा है। उस घटना से पूरा देश आज तक हतप्रभ है। जिस जगह धर्म के नाम पर अधर्म का नृशंस कृत्य हुआ, ठीक उसी जगह पर आज जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला शाहंशाहाना अंदाज में गोल्फ खेलते नजर आए। देश के लोगों को यह समझ में नहीं आया कि दो दर्जन से अधिक हिंदुओं की हत्या पर फारूक अब्दुल्ला गोल्फ-क्रीड़ा के जरिए श्रद्धांजलि दे रहे थे या मखौल उड़ा रहे थे। पार्टी कहती है कि पहलगाम घटना के बाद कश्मीर से उजड़े पर्यटन को बहाल करने के लिए फारूक अब्दुल्ला गोल्फ खेल रहे थे और उनके मुख्यमंत्री-पुत्र उमर अब्दुल्ला पर्यटन माहौल सामान्य करने के लिए बैठकें करेंगे।
जम्मू कश्मीर का माहौल सामान्य करने के लिए फारूक अब्दुल्ला या उनके मुख्यमंत्री-पुत्र उमर अब्दुल्ला को पहलगाम के दिखने में हरियालीभरे लेकिन असलियत में खून से सने मैदान में गोल्फ खेलने के बजाय हिंदू पर्यटकों को विशेष न्यौता देकर बुलाना चाहिए था और उनके बीच माहौल को सरल और सामान्य बनाने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन फारूक अब्दुल्ला का यह गोल्फ-कृत्य जख्म पर नमक रगड़ने जैसा और हिंदुओं का मजाक उड़ाने जैसा ही साबित हुआ। जिस जगह 26 हिंदू पर्यटकों को चुन-चुन कर मारा गया, उसी पहलगाम में फारूक अब्दुल्ला बाकायदा गोल्फ-आउटफिट (लाल टी शर्ट और काले ट्राउजर) में पहलगाम गोल्फ कोर्स में नजर आए। वह जमीन 26 हिंदुओं के खून से रंगी है, उसी जगह फारूक अब्दुल्ला अपने बेशकीमती गोल्फ स्टिक से महंगे गोल्फ-बॉल पर निशाना आजमा रहे थे। दूसरी तरफ पहलगाम में ही मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कल कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता कर रहे होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के प्रति लोगों के मन में बैठे डर को निकालने की जरूरत है। इस बारे में उमर अब्दुल्ला ने अपने पिता फारूक अब्दुल्ला से जरूर राय-मशविरा किया होगा। तभी पिता गोल्फ-मैदान में उतरे और पुत्र बैठक-मैदान में। प्रदेश में पहलगाम आतंकवादी हमले का असर कम करने की कवायद का अगर यही भावनात्मक स्तर है, तो यह गैर मुस्लिम पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए है या विकर्षित करने के लिए, इसका आभास देश को हो रहा है।
बैठकें करने और गोल्फ खेलने से अगर हिंदू पर्यटकों के हृदय से डर चला गया होता तो आज तक कश्मीरी हिंदू जिन्हें पूरा देश कश्मीरी पंडित कह कर अलग कर देता है, उनके मन से डर खत्म हो गया होता। फारूक अब्दुल्ला के गोल्फ खेलने से कश्मीरी पंडितों की टारगेटेड हत्या का सिलसिला क्या रुक गया? क्या बेमानी बैठकों से हिंदुओं को चुन-चुन कर मारे जाने का घृणित कृत्य रुक गया? क्या कश्मीर और पूरे देश की मस्जिदों से पहलगाम में मारे गए 26 हिंदुओं के शोक में मर्सिया पढ़ा गया? क्या ऐसी बदजात हिंसा के खिलाफ इस्लामिक धर्मपीठों से फतवा जारी हुआ? इसके लिए फारुक अब्दुल्ला या उमर अब्दुल्ला ने अपने धर्मगुरुओं से बात क्यों नहीं की? गोल्फ खेलने के बजाय वे अगर ऐसा प्रयास करते तो हिंदुओं के कलेजे पर लगा जख्म थोड़ा कम होता और इससे स्थिति सामान्य होने के तरफ बढ़ती।