भारत विरोधी हरकतें बंद नहीं हुईं तो समझौता खत्म!
भारत-बांग्लादेश गंगा जल समझौते का यह आखिरी साल
हिंदुओं पर अत्याचार पसंद या 35000 क्यूसेक पानी?
नई दिल्ली, 26 जून (एजेंसियां)। बांग्लादेश ने अपनी पाकिस्तान परस्त हरकतें नहीं छोड़ीं तो भारतवर्ष गंगा जल समझौते को सिंधु जल संधि की तरह स्थगित कर सकता है। भारत-बांग्लादेश गंगा जल समझौते की अवधि पूरी होने वाली है। भारत सरकार अब इसकी नए सिरे से समीक्षा करेगी। बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद दोनों देशों के बीच जल-बंटवारा समझौता हुआ था। अब बांग्लादेश को यह तय करना है कि उसे हिंदुओं पर अत्याचारऔर भारत विरोधी हरकतें पसंद हैं या 35000 क्यूसेक पानी।
भारत में विकास और जल संसाधनों पर बढ़ते दबाव के नजरिए से भी अब भारत के लिए बांग्लादेश के साथ ऐतिहासिक गंगा जल-बंटवारे की संधि की समीक्षा का वक्त आ गया है। भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बंटवारा समझौता 2026 में अपनी अवधि पूरी कर रहा है। भारत ने संकेत दिया कि वह घरेलू जल आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण गंगा संधि पर फिर से बातचीत करना चाहता है। सब जानते हैं कि भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को किन वजहों से निरस्त कर दिया। बांग्लादेश में भी अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस पाकिस्तान और यूएस डीप स्टेट के साथ मिलीभगत कर भारत के खिलाफ हरकतें कर रहे हैं और हिंदुओं पर भीषण अत्याचार कर रहे हैं। बांग्लादेश की इन हरकतों को देखते हुए गंगा जल बंटवारा समझौता रद्द हो सकता है।
बांग्लादेश में भी राजनीतिक परिस्थितियां 30 साल पुरानी वाली नहीं है। गंगा समझौता के तहत बांग्लादेश को बगैर किसी रुकावट के पानी मिलता रहे इसके लिए समझौता करना जरूरी है। यह संधि 30 साल के लिए थी। भारतीय अधिकारी चाहते हैं कि यह केवल 10-15 साल तक का हो। संधि पर भारत के रुख ने बांग्लादेश को चिंतित कर दिया है। गंगा नदी भारत और बांग्लादेश के लोगों की जीवनदायिनी है। इसके पानी को साझा करना दोनों देशों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर विवाद 1950 के दशक से शुरू हुआ। उस वक्त भारत ने कोलकाता की ओर पानी मोड़ने के लिए पश्चिम बंगाल के फरक्का में बैराज बनाना शुरू किया।
1971 में अलग राष्ट्र बनने के बाद बांग्लादेश और भारत ने मिलकर इसके समाधान का प्रयास किया। 1972 में भारत और बांग्लादेश ने एक संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) का गठन किया। 1977 में 5 साल के लिए जल-बंटवारे का समझौता हुआ। 1978 से 1982 के बीच लागू इस समझौते के तहत बांग्लादेश को हर हाल में जल उपलब्ध कराने की गारंटी दी गई। समझौता खत्म होने के बाद दोनों देशों ने करीब एक दशक तक जल संसाधनों के बंटवारे पर कोई औपचारिक समझौता नहीं किया। इस दौरान भारत ने गर्मी में गंगा के पानी को अपनी तरफ मोड़ा, जिससे बांग्लादेश के साथ संबंधों में तनाव पैदा हुआ। 1990 के दशक में दोनों पक्षों ने माना कि फरक्का बैराज विवाद को हल करने और गंगा जल बंटवारे के लिए दीर्घकालिक संधि की आवश्यकता है।
भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय तक बातचीत चली। आखिरकार, 12 दिसंबर 1996 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जल-बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को एक ऐसी सफलता के रूप में देखा गया जिसने नदी को लेकर दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव को खत्म कर दिया। बांग्लादेश ने इस संधि को अपने किसानों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जरूरत के रूप में देखा। जबकि भारत ने इसे एक पड़ोसी देश के साथ सहयोग करने के तौर पर लिया। यह समझौता ऐसे समय में हुआ जब दोनों देशों के बीच रिश्ते मधुर हो रहे थे। ढाका में नवगठित हसीना सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहती थी, वहीं भारत की संयुक्त मोर्चा सरकार बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंध सुनिश्चित करना चाहती थी। लेकिन बांग्लादेश की स्थितियां अब बदल गई हैं और उसकी भारत विरोधी हरकतें काफी बढ़ गई हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने भी संधि को एकतरफा करार देते हुए इसकी समीक्षा पर जोर दिया है। पश्चिम बंगाल ने गंगा का अधिक जल देने की मांग की है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट यानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट तक 40,000 क्यूसेक पानी लगातार रहे इसके लिए फरक्का बैराज बनाया गया। लेकिन 1996 की गंगा जल संधि ने फरक्का बैराज के संचालन के तरीके में बदलाव करने के लिए मजबूर किया। कोलकाता के इस व्यस्त बंदरगाह में गाद जमा हो रही है, जिससे जहाजों के आवागमन में दिक्कतें आ रही हैं। यहां तक कि फरक्का में स्थित एनटीपीसी के प्लांट को भी पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।
भारत के दूसरे राज्यों की भी अलग-अलग शिकायतें हैं। फरक्का से ऊपर बिहार को दिक्कत है कि मॉनसून के दौरान कभी-कभी बैराज से बहुत ज्यादा पानी छोड़ दिया जाता है जिससे बाढ़ आ जाती है। इस वक्त फरक्का बैराज के गेट भी खोल दिए जाते हैं, जिससे बिहार के गंगा बेसिन में गाद और बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है। बदलते माहौल में संधि की समीक्षा बेहद जरूरी है इसलिए 2026 में संधि की समाप्ति की तारीख आ रही है, तो उम्मीद की जा रही है कि भारत लंबे समझौते के लिए तैयार नहीं होगा बल्कि इसकी अवधि थोड़ी छोटी होगी। इसकी तैयारी भी शुरू हो गयी है। पिछले साल भारत सरकार ने गंगा से होने वाली घरेलू जल आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए पश्चिम बंगाल और बिहार के प्रतिनिधियों सहित एक समिति का गठन किया।
बांग्लादेश कहता रहा है कि जल हिस्से में अगर कमी की गई तो उसे भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। गर्मी के महीनों में कृषि, मत्स्य पालन और पेयजल आपूर्ति की गंभीर समस्या पैदा होगी। जून 2024 में शेख हसीना की दिल्ली यात्रा के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आश्वासन दिया कि संधि को बढ़ाए जाने पर बातचीत शुरू होगी, हालांकि अब परिस्थितियां बदल गई हैं। मार्च 2025 में दोनों देशों के विशेषज्ञों की कोलकाता में बैठक हुई। इसमें फरक्का में जल प्रवाह को संयुक्त रूप से मापने की बात कही गई। इस बीच पर्यावरण वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन की चेतावनी दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा का प्रवाह अनियमित होता जा रहा है। कभी लंबे समय तक जल प्रवाह काफी कम रहता है तो कभी कम वक्त में ज्यादा बारिश से पानी का जलस्तर बढ़ जाता है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन आने वाले दशकों में गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के रास्ते में बदलाव ला सकता है। इससे लाखों लोग प्रभावित होंगे। दोनों पक्षों ने माना है कि नई संधि में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि नई संधि में बेहतर डेटा संकलन, संयुक्त बाढ़ प्रबंधन की नीतियां भी होनी चाहिए, जिससे जल बंटवारा सही तरीके से धरातल पर उतर सके।
हमें ये भी याद रखना चाहिए कि भारत और बांग्लादेश के बीच नई संधि पर राजनीतिक परिस्थितियों का भी असर पड़ेगा। अगस्त 2024 से बांग्लादेश में अंतरिम सरकार है। भारत ने संकेत दिया है कि वह ढाका में एक निर्वाचित सरकार के साथ बड़े समझौते करना पसंद करता है। बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार का चीन-पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ गई हैं। इसलिए भारत ज्यादा सतर्क है।
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