हाथरस में खत्म होने की कगार पर हथकरघा कारोबार

उद्यम प्रदेश बनाने का योगी का दावा केवल जुमलेबाजी

हाथरस में खत्म होने की कगार पर हथकरघा कारोबार

हाथरस में पहले थीं 250 यूनिटेंअब मची हैं मात्र 20

हाथरस, 26 जून (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश को उद्यम प्रदेश बनाने का योगी सरकार का दावा केवल जुमलेबाजी ही साबित हो रहा है। हाथरस का प्रसिद्ध हथकरघा उद्योग अब आखिरी सांसें ले रहा है। सरकार इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रही है। इस सरकारी उपेक्षा के कारण हाथरस में पहले 250 हथकरघा यूनिटें थीअब मात्र 20 यूनिटें बची रह गई हैं।

हथकरघा उद्योग में हाथरस की अपनी अलग पहचान थी। 1970 के दशक में जनपद में कई कॉटन मिल थींजिसमें हजारों श्रमिक कार्यरत थेलेकिन धीरे-धीरे सभी मिलें बंद हो गईं। करीब 20 साल पहले तक हाथरस जनपद के हथकरघा कारोबार में पावरलूम का रूप ले लियालेकिन यह पावरलूम में भी काफी पुरानी मशीनों से काम किया जा रहा है। यहां के कारोबारियों को प्रोत्साहन न मिलने के कारण कारोबार खत्म होता जा रहा है। इस कारोबार को फिर एक पहचान के लिए कारोबारी किसी संजीवनी का इंतजार कर रहे हैं।

हथकरघा उद्योग में हाथरस की अपनी अलग पहचान थी। 1970 के दशक में जनपद में कई कॉटन मिल थींजिसमें हजारों श्रमिक कार्यरत थेलेकिन धीरे-धीरे सभी मिलें बंद हो गईं। दो दशक पहले तक जिले में करीब 250 बड़ी यूनिटें थींजो हैंडलूम के साथ पावरलूम का कार्य करती थींलेकिन वर्तमान में लगभग 20 यूनिटों में ही इसका काम हो रहा है। इन यूनिटों को अब प्रोत्साहन की दरकार हैक्योंकि इनकी मशीनें बहुत पुरानी हो गई हैंजो कुछ चुनिंदा उत्पाद ही बना सकती हैं।

कारोबारी वेंकटेश अग्रवाल कहते हैं, हम पुरानी मशीनों से कारोबार कर रहे हैं। मुख्य रूप से धागे व कपड़े का उत्पादन कर रहे हैं। हमें अभी तक कोई प्रोत्साहन नहीं मिलाजिससे हम अपने कारोबार को और अधिक बढ़ा सकें। अरविंद अग्रवाल ने कहा, टेक्सटाइल के क्षेत्र में हाथरस की अलग पहचान थीलेकिन अब स्थिति काफी बदल गई है। जब तक सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेगीतब तक कुछ नहीं होगा। बुद्धसेन माहौर ने कहा, छोटे स्तर पर कुछ लाभ सरकार से मिले हैंलेकिन इतना बड़ा कोई प्रोत्साहन नहीं मिलाजिससे हम अपनी यूनिटों को आधुनिक रूप दे सकें। हम अपने उत्पादों को पानीपत के उत्पादों के साथ बेच रहे हैं। कारोबारी प्रकाशचंद्र कहते हैं, आज भी हाथरस में हजारों की संख्या में हथकरघा कारोबारी मौजूद हैं। इतना हुनर है कि कारोबार चमक सकता हैलेकिन यह सरकार की मंशा के बगैर नहीं हो सकता। क्योंकि मुकाबला पानीपत से है।

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हाथरस के पावरलूम कारोबार के उत्पाद की अलग पहचान हैलेकिन आधुनिक समय में अब बाजार में तमाम ऐसे उत्पाद हैंजिनका उत्पादन यहां मुमकिन नहीं है। ऐसे में यहां के कारोबारी अपने उत्पादों को बेचने के लिए पानीपत से आधुनिक उत्पादों को मंगाकर उनकी आपूर्ति करते हैं। हाथरस के पावरलूम में बनने वाले उत्पादों की आपूर्ति सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूरदराज के प्रदेशों में भी की जाती है। इसमें गुजरात के साथ राजस्थानहरियाणामध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व उत्तराखंड शामिल हैं। हाथरस की दो बड़ी यूनिटों में पावरलूम के जरिए गलीचे यानी कॉरपेट तैयार होते हैं। यहां तैयार होने वाले कारपेट दिल्ली की बड़ी फर्में खरीदती हैं और उन्हें कई अन्य देशों में बेचती हैं। इस तरह के महंगे उत्पाद बनाने वाली यूनिटें अब काफी कम हैं। हाथरस की अधिकांश यूनिटों में धागा और कपड़ा बन रहा है। इसमें सर्दियों में ओढ़ने वाले खेस यानी मोटे धागे से बनने वाली चादरें व अन्य उत्पाद शामिल हैं।

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