नहीं चलेगा कांग्रेसी दांव, भाजपा रखेगी खुद अपना पांव
उपराष्ट्रपति चुनाव
नई दिल्ली, 04 अगस्त (एजेंसियां)। कांग्रेस पार्टी की योजना बिहार या आंध्रप्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है, जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी व जदयू को असमंजस में डाला जा सके। इस चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। लेकिन भाजपा कांग्रेस के इस दांव को समझ रही है, इसलिए उपराष्ट्रपति पद के लिए भाजपा अपना उम्मीदवार मैदान में उतारेगी।
उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी है लेकिन कांग्रेस साझा उम्मीदवार को मैदान में उतारकर विपक्षी एकता का संदेश देने के साथ एनडीए के सहयोगी दलों को असमंजस में डालने की रणनीति बना रही है। विपक्ष के साझा उम्मीदवार पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। पार्टी की योजना बिहार या आंध्रप्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है, जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी व जदयू को असमंजस में डाला जा सके। इस चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने दोनों सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावनाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में होंगे। आंध्रप्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में सात सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकती है। अगर इस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटे तो राजग में फूट का संदेश जाएगा।
अगर विपक्ष का उम्मीदवार बिहार से हुआ तो जदयू, लोजपा, आरएलएम से भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश के उम्मीदवार के मामले में ऐसी ही स्थिति टीडीपी और जनसेना के सामने होगी। दोनों सदनों को मिला कर जदयू के पास 16, लोजपा के पास 5 और आरएलएम के पास 1 सांसद हैं। टीडीपी के पास 18 और जनसेना के पास 2 सांसद हैं। उपराष्ट्रपति पद के लिए भाजपा में भी मंथन शुरू हो गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर उम्मीदवार के चयन में जाट बिरादरी की भावनाओं को वरीयता दी गई तो गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की लॉटरी निकल सकती है। अचानक इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ राजस्थान के जाट बिरादरी से थे। देवव्रत हरियाणा से हैं, जहां एक अरसे तक जनादेश तय करने में इस बिरादरी ने सबसे अहम भूमिका निभाई है। दो विषयों से स्नातकोत्तर देवब्रत का शिक्षा और प्राकृतिक खेती में बड़ा योगदान रहा है।
गणित सीधे-सीधे एनडीए के पक्ष में है। एनडीए के पास दोनों सदनों को मिलाकर 418 सांसद हैं। यह संख्या उपराष्ट्रपति पद पर जीत के लिए जरूरी 392 सदस्यों से 26 ज्यादा है। इसके अलावा पार्टी राज्यसभा में सात मनोनीत और तीन निर्दलीय में से दो का समर्थन हासिल कर सकती है। इसी प्रकार लोकसभा में भी पार्टी को अकाली दल का समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा यहां सात निर्दलीय और छोटे चार दलों के चार सांसदों का रुख साफ नहीं है।