उत्तर भारत में भूजल की गुणवत्ता पर भारी संकट
दिल्ली, यूपी, हरियाणा और पंजाब के कई जिलों का पानी प्रदूषित
नई दिल्ली, 04 अगस्त (एजेंसियां)। उत्तर भारत के भूजल में गुणवत्ता पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के चुनिंदा जिलों के भूजल स्रोतों में सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक, नाइट्
नेशनल इनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनईईआरआई) की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। संस्थान ने उत्तर भारत के 4 राज्यों के 29 जिलों से 220 से अधिक जल स्रोतों की वैज्ञानिक जांच की, जिसमें ग्रामीण हैंडपंप, शहरी सबमर्सिबल पंप, सरकारी जल सप्लाई पाइपलाइनों और बोरवेल शामिल थे। शोध में प्रयुक्त तकनीकों में एटॉमिक एब्जॉर्प्शन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एएएस), आयन क्रोमैटोग्राफी और यूवी स्पेक्ट्रोफोटोमीट्री शामिल हैं। यह सभी तकनीक अत्यंत संवेदनशील और विश्वसनीय मानी जाती हैं और जल गुणवत्ता विश्लेषण में व्यापक रूप से प्रयोग होती है।
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में नरेला, बवाना, गाजियाबाद, नोएडा
दिल्ली-एनसीआर के नरेला और बवाना औद्योगिक क्षेत्रों में भूजल में आर्सेनिक और सीसा दोनों ही मानकों से अधिक पाए गए, जिसे रिपोर्ट में क्रोनिक एक्सपोजर जोन कहा गया है।उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ और हाथरस में पीतल उद्योग तथा उर्वरकों के कारण भूजल में धात्विक विषैले तत्वों की मात्रा अधिक देखी गई। हरियाणा के दक्षिणी जिलों विशेषकर महेंद्रगढ़ और भिवानी में अत्यधिक भूजल दोहन के कारण नाइट्रेट और फ्लोराइड की सांद्रता बढ़ी है। पंजाब के मालवा बेल्ट बठिंडा, मानसा, फाजिल्का में कृषि रसायनों की अधिकता के चलते कैडमियम और आर्सेनिक की अधिकता दर्ज की गई।
यदि नवजात शिशु या गर्भवती महिला द्वारा उच्च मात्रा में नाइट्रेट युक्त पानी का सेवन किया जाए तो यह नाइट्रेट शरीर में जाकर नाइट्राइट में बदल जाता है। नाइट्राइट हीमोग्लोबिन को मेटहीमोग्लोबिन में परिवर्तित कर देता है, जो ऑक्सीजन को शरीर के ऊतकों तक पहुंचाने में असमर्थ होता है। इससे रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और त्वचा नीली पड़ने लगती है। ऐसे में बच्चे जन्मजात हृदय रोग के शिकार हो जाते हैं। कुछ बच्चों में जन्म से ही दिल में छेद या रक्त संचार संबंधी विकृति होती है, जिससे ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन-रहित रक्त आपस में मिल जाते हैं।