गली के कुत्तों पर गली-गली बवाल

 कुत्तों में उलझी न्यायपालिका और विधायिका

 गली के कुत्तों पर गली-गली बवाल

डॉ. मोतीलाल गुप्ता आदित्य

पिछले कुछ समय से दिल्ली एनसीआर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में कुत्तों द्वारा बच्चोंमहिलाओं और बुजुर्गों आदि पर गंभीर हमलों की घटनाओं के चलते लोगों की तीव्र प्रतिक्रिया दिखाई देती है। लोगों का कहना है कि गलियों में घूमने वाले आवारा कुत्तों के कारण उनका घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। पता नहीं कब कौन सा कुत्ता किसे काट ले। बच्चे के घर से बाहर निकलते ही उसे मार डाले। दिल्ली के कई रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों और कुछ नागरिकों ने कुत्तों के हमलों और काटने की घटनाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इन शिकायतों में कहा गया था कि दिल्ली में गलियों के कुत्तों की संख्या लगभग 10 लाख तक पहुंच चुकी है और इनके कारण लोगों की सुरक्षा खतरे में है। खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों की घटनाओं का हवाला दिया गया।

11 अगस्त 2025 कोएक दोन्यायधीशों की बेंचजिसमें न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन शामिल थे उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली  में सड़कों पर रहने वाले सभी कुत्तों को आठ सप्ताह में शेल्टर होम्स (आश्रय गृहों) में स्थानांतरित करने का आदेश दिया । इस फैसले में कहा गया था कि गलियों के कुत्तों को किसी भी हाल में सार्वजनिक जगह पर वापस नहीं छोड़ा जाए। शेल्टर होम (आश्रय-स्थल) में पर्याप्त स्टाफसीसीटीवी और हेल्पलाइन व्यवस्था हों। यह भी कि इस प्रक्रिया में कोई बाधा डाले तो कठोर कार्रवाई हो सकती है।   

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद तो देशभर में पशु-प्रेमी और ऐसे संगठनों ने सड़कों पर उतर कर अपना जबरदस्त विरोध प्रकट किया। इन संगठनों ने इस विषय पर पुनर्विचार की मांग की और कहा कि यह निर्णय व्यवहारिक नहीं है। इस निर्णय के कारण गलियों के कुत्तों के साथ क्रूरता होगी। उधर गलियों के कुत्तों से परेशान लोग भी निर्णय के पक्ष में खड़े हो गए। मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले पर दो न्यायाधीशों के बदले तीन न्यायाधीशों की बेंच बना दी है। सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्य पीठ में जस्टिस विक्रम नाथसंदीप मेहता और एनवी अंजारिया शामिल हैं। इस पीठ ने आवारा कुत्तों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई है और मामले सुनवाई जारी है।     

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गली के कुत्तों पर उठा यह बवाल न्यायपालिका के गलियारों से निकलकर अब गलियों और सड़कों से होते हुए राजनीति के गलियारों में भी जा पहुंचा। संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को क्रूर और दूरदर्शिता-रहित बताया है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण साथ चल सकते हैं। उनकी बहन और सांसद प्रियंका वाड्रा ने इस निर्णय को अत्यंत अमानवीय बताया और कहा इतनी जल्दी कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाकर उन्हें इनमें में स्थानांतरण करने की बात अव्यवहारिक है।  कांग्रेस के ही नेता शशि थरूर का कहना था कि समस्या के समाधान और उसके कार्यान्वयन में फोकस एनजीओ यानी गैर सरकारी संगठनों पर होना चाहिए। जानी मानी पशु-प्रेमी और इसके लिए आवाज उठाने वाली पूर्व सांसद मेनका गांधीजो प्युपल फॉर एनिमल्स (PFA) की अध्यक्ष हैंउन्होंने इस आदेश को अव्यवहारिक बताते हुए कहा कि गलियों के कुत्तों के लिए इतने कम समय में ऐसे आश्रय-स्थल बनाना संभव नहीं है और इससे सरकार पर अत्यधिक वित्तीय बोझ पड़ेगा। तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने भी इस निर्णय को क्रूर और अमानवीयबताते हुए कहा कि इस निर्णय की समीक्षा होनी चाहिए। इसके विपरीत दिल्ली भाजपा नेता विजय गोयल ने कहा कि हम जनता की इस सुरक्षा के आदेश का स्वागत करते हैं। फिल्म अभिनेता जॉन अब्राहम ने इसे कुत्ता समुदाय के हितों और  एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) नियमों के खिलाफ बताते हुए इन आदेशों की समीक्षा की मांग की। पशुओं के हितों के लिए कार्य करने वाली जानी-मानी संस्था पेटा इंडिया ने कहा कि इस निर्णय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं दिखाई देता। उन्होंने इसके लिए नसबंदी अपनाने पर जोर दिया।  

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इस विषय पर विचार से पहले भारत में गलियों के कुत्तों की स्थिति पर एक नज़र डालना जरूरी है। भारत में आवारा कुत्तों की अनुमानित कुल संख्या को लेकर दो अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसारभारत में लगभग 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते हैंजबकि अन्य रिपोर्ट्स में यह संख्या 6 करोड़ तक बताई गई है। यह विसंगति विभिन्न स्रोतों और अनुमानों के कारण हो सकती है। मार्स पेट केयर / पेट होमलेसनेस इंडेक्स की वैश्विक रिपोर्ट (202122 के आसपास जारी हुई) में भारत में 6.2 करोड़ गली के कुत्तों का अनुमान था। प्रश्न यह है कि आवारा कुत्तों की इस बड़ी समस्या से कैसे निपटा जाएक्या समाधान निकाला जाएजो सरकारों के स्तर पर भी व्यावहारिक हो और जिसे मूर्त रूप दिया जा सके। सिर ही कुत्तों द्वारा नागरिकों विशेषकर बच्चोंमहिलाओं और बुजुर्गों पर हमलों पर लगाम लग सके और बेज़ुबान जीव भी अपना जीवन यापन कर सकें।

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इसके लिए पशु जनसंख्या नियंत्रण नियम 2023 बनाए गए हैं। जिसके अंतर्गत नगर निगमों और पंचायतों द्वारा सड़क के कुत्तों को पकड़नेनगर निगम/एनजीओ विशेष टीमों द्वारा कुत्तों को पकड़नेउनकी नसबंदी करनेटीकाकरणखासकरएंटी-रेबीज़ के टीके लगाने और पकड़े गए कुत्तों कोजहां से पकड़े गए थेफिर वापस उसी इलाके में छोड़ने के प्रावधान हैं। लेकिन इन नियमों के पालन की स्थिति चिंताजनक है। बड़ी-बड़ी नगर पालिकाओं तक में भी कुत्ते-बिल्लियों की नसबंदी की व्यवस्था नहीं है। रेबीज के टीके भी कितनों को लगे और कितनों को नहींकौन देखता है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह धरती केवल मनुष्यों के लिए नहीं बल्कि सभी पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए भी है। मुझे लगता है कि इसके लिए एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाना चाहिए और ऐसे प्रावधान भी किए जाने चाहिए कि नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके। इसके लिए नगर-निगमों व नगरपालिकाओं आदि में पशु – पक्षी अस्पताल और आवश्यकतानुसार बीमार व कमजोर पशुओं के लिए आश्रय स्थल भी बनाए जाने चाहिए। आवारा पशुओं की  समस्या के समाधान के लिए आश्रय-स्थलों के अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाना चाहिए। आज भारत मेंविशेषकर शहरों में ज्यादातर कुत्ता-प्रेमी अपने देश के कुत्तों के बजाए आयातितविदेशी नस्ल के कुत्तों को पालते हैं। सरकार विदेशी - नस्ल के कुत्तों पर प्रतिबंध लगा कर अपने देश के सड़कों और गलियों में रहने वाले कुत्तों को आश्रय की व्यवस्था कर सकती है। ऑल पेट डॉग्स स्टेटिस्टिक्स के अनुसार2023 में भारत में पालतू कुत्तों की अनुमानित संख्या 3.3 करोड़ थीजो कि 2028 तक 5.1 करोड़ तक बढ़ने की संभावना है। हालांकि पंजीकृत पालतू कुत्तों का प्रतिशत बहुत कम है। हो सकता है कि बहुत सारे पालतू कुत्ते पंजीकृत न हों। इनमें विदेशी नस्ल के कुत्तों की जानकारी ज्ञात नहीं है। लेकिन विदेशी नस्लों को प्रतिबंधित कर हम देसी कुत्तों के आश्रय की व्यवस्था कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त इस कार्य में पशु-प्रेमी संस्थाओं की सहभागिता का सहयोग लेने से सरकारों पर पड़ने वाला बोझ भी कम होगा और गलियों के कुत्तों आदि के प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकेगा। इस कार्य के लिए सरकार द्वारा एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन करते हुए पशु-प्रेमी संस्थाओं और व्यक्तियों व राज्य सरकारों आदि से चर्चा के बाद ऐसे नीतिगत निर्णय लिए जाने चाहिएजिससे गलियों के कुत्ते और मनुष्य सह अस्तित्व के साथ रह सकें।

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