राहुल गांधी ने सीएसडीएस से साठगांठ कर फैलाया झूठ
वोट-चोरी के आरोप के पीछे डीप-स्टेट और फॉरेन फंडिंग का खेल
केंद्र सरकार की संस्था से भी फंडिंग लेता था सीएसडीएस, नोटिस जारी हुई
सीएसडीएस के संजय कुमार व कांग्रेस के राहुल गांधी पर एफआईआर दर्ज
नई दिल्ली, 21 अगस्त (एजेंसियां)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ साठगांठ कर फर्जी चुनावी आंकड़ों का शिगूफा छोड़ने वाले सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार और कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई लोगों के खिलाफ दिल्ली में शिकायत की गई है। विदेशी फंडिंग के बूते फर्जी आंकड़ों का खेल शुरू करने वाले संजय कुमार अब कानून के सीधे निशाने पर हैं।
फर्जीवाड़े के खिलाफ शुरू हुई कार्रवाई के बीच भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद (आईसीएसएसआर) ने सीएसडीएस पर सवाल उठाए हैं और शो कॉज नोटिस जारी किया है। आईसीएसएसआर ने सीएसडीएस पर फर्जी डेटा पेश करने और चुनाव आयोग की गरिमा को ठेस पहुंचाने का भी आरोप लगाया है। आईसीएसएसआर सीएसडीएस को फंड देता रहा है। सीएसडीएस की विदेशी फंडिंग खासकर जर्मनी की कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन से मिलने वाली करोड़ों रुपए की फंडिंग भी अब जांच के घेरे में हैं।
यह विवाद 17 अगस्त 2025 को तब शुरू हुआ जब सीएसडीएस के संजय कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी हुई है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि नासिक वेस्ट का वोटर संख्या लोकसभा चुनाव से विधानसभा चुनाव तक 47.38 प्रतिशत बढ़ गई, जबकि हिंगणा में 42.08 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। साथ ही, रामटेक और देवलाली में वोटर संख्या में 40 प्रतिशत की कमी आई। इन दावों को कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी बढ़ाया और चुनाव आयोग पर सवाल उठाए।
लेकिन 19 अगस्त को संजय कुमार को कथित तौर पर अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने अपने पोस्ट को डिलीट कर दिया और माफी मांगी। उनका कहना था कि उनकी टीम ने डेटा की पंक्तियों को गलत पढ़ लिया था। लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। फर्जी आंकड़े सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर फैल चुके थे। असली डेटा देखें तो नासिक वेस्ट में वोटर संख्या में सिर्फ 6 प्रतिशत और हिंगणा में 5.9 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी हुई, जबकि रामटेक और देवलाली में 3-4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई।
इस घटना से नाराज होकर 19 अगस्त को आईसीएसएसआर ने एक बयान जारी किया। शिक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली आईसीएसएसआर सीएसडीएस को फंडिंग देने वाली मुख्य संस्था है। आईसीएसएसआर के बयान में कहा गया कि सीएसडीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी (संजय कुमार) ने गलत डेटा पेश किया, जिसे बाद में उन्हें वापस लेना पड़ा। इसके अलावा, सीएसडीएस ने चुनाव आयोग के एसआईआर को गलत तरीके से पेश करके अखबारों में खबरें और लेख छापे/छपवाए और समाचार चैनेलों पर फर्जी बातें कहीं। आईसीएसएसआर ने कहा कि चुनाव आयोग भारत की सबसे बड़ी लोकतंत्र की रीढ़ है और इसके सम्मान को ठेस पहुंचाना गंभीर अपराध है। परिषद ने सीएसडीएस पर डेटा से छेड़छाड़ और गलत नैरेटिव बनाने का आरोप लगाया, जो उनके अनुदान नियमों (ग्रांट-इन-एड-रूल्स) का उल्लंघन है। इसके जवाब में आईसीएसएसआर ने सीएसडीएस को शो-कॉज नोटिस जारी करने का फैसला लिया है। उनका कहना है कि यह घटना संस्थान और चुनाव प्रक्रिया दोनों की गरिमा को ठेस पहुंचाती है।
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत जिंदल ने 19 अगस्त को दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक शिकायत दी। उनकी शिकायत में राहुल गांधी (विपक्ष के नेता), संजय कुमार (सीएसडीएस) समेत कई लोगों पर आरोप हैं। जिंदल का कहना है कि इन लोगों ने फर्जी डेटा फैलाकर जनता में अशांति फैलाई और सरकार के खिलाफ साजिश रची। उन्होंने कहा कि यह डेटा लोकसभा चुनावों को लेकर गलत था और चुनाव आयोग की साख को नुकसान पहुंचाने की कोशिश थी। जिंदल ने अपनी शिकायत में लिखा कि ये लोग सोशल मीडिया और प्रेस के जरिए झूठी खबरें फैला रहे हैं, जिससे जनता का भरोसा लोकतंत्र पर कमजोर हो रहा है। उन्होंने मांग की कि इस मामले में सख्त कार्रवाई हो और जांच शुरू की जाए।
अब सवाल उठता है कि सीएसडीएस को फंडिंग कहां से मिलती है? आईसीएसएसआर सीएसडीएस का मुख्य फंडिंग स्रोत है, जो सरकार के जरिए चलता है। लेकिन इसके अलावा सीएसडीएस को विदेशी फंडिंग भी मिलती है, जिस पर कई सवाल उठ रहे हैं। सीएसडीएस को कई देशों और संगठनों से पैसा आता है। इनमें फोर्ड फाउंडेशन, गेट्स फाउंडेशन (अमेरिका), आईडीआरसी (इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर कनाडा), डीएफआईडी (यूके), नॉराड (नॉर्वे), ह्यूलेट फाउंडेशन और जर्मनी की केएएस जैसी एजेंसियां शामिल हैं। इसके अलावा स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क, ऑस्
हर तिमाही में कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन ने सीएसडीएस को लाखों की फंडिंग की है। इन 10 सालों में देखा जाए, तो ये आंकड़ा कई करोड़ों में है। हालांकि बदले में सीएसडीएस ने कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन के साथ मिलकर कुछ रिसर्स पेपर पब्लिश किए हैं, लेकिन फंडिंग के स्तर और काम को देखते हुए साफ है कि ये पैसा सिर्फ रिसर्च पेपर के लिए तो नहीं ही मिलता है। बीते एक साल की बात की जाए, तो कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन ने सीएसडीएस को 25 लाख 9 हजार 190 रुपए दिए। यानि, सीएसडीएस को 29 सितंबर 2024 को 4,58,950 रुपए, 20 नवंबर 2024 को 4,39,300 रुपए, 17 दिसंबर 2024 को 4,38,600 रुपए, 27 फरवरी 2025 को 11,72,340 रुपए मिले।
अमेरिका की यूसीएलए लाइब्रेरी से 12.71 लाख का डोनेशन मिला। यूसीएलए की लाइब्रेरी डिपार्टमेंट से जुड़ी रेचेल डेबलिंगर ने ये धन दिए हैं। उसने 24 जून 2024 को भी 24 लाख 92 हजार रुपए से ज्यादा की धनराशि दान दी है। जनवरी 2024 में फ्रांस की एफएनएसपी संस्था के पास से 12 लाख रुपए से अधिक की धनराशि आई, तो ब्रिटिश लाइब्रेरी ने 5 फरवरी 2024 को 14 लाख रुपए से ज्यादा की धनराशि सीएसडीएस को दी। इसके अलावा अतीत में जाकर देखें तो साल 2016 से अगले कई सालों तक कनाडा की संस्था की तरफ से हर साल करोड़ों की धनराशि लगातार मिलती रही। भारत सरकार ने एनजीओ की आड़ में विदेशी धन के प्रवाह को रोकने के लिए जब कदम उठाए, तो इसका असल सीएसडीएस की फंडिंग पर भी पड़ा। साल 2016 और 2025 के आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है।
इन विदेशी फंडिंग का आंकड़ा हर तिमाही की रिपोर्ट में उपलब्ध है, जो सीएसडीएस की वेबसाइट पर सार्वजनिक है। आरोप है कि यह पैसा हिंदू समाज को जाति के आधार पर बांटने और गलत नैरेटिव बनाने में इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए सीएसडीएस के लोकनीति प्रोग्राम में हिंदुओं को ओबीसी, ईबीसी, दलित और सवर्ण में बांटकर वोटिंग पैटर्न की रिपोर्ट छापी जाती है, जो अखबारों में सुर्खियां बनती हैं। लेकिन मुसलमानों की अंदरूनी जातीय दरारों (जैसे दलित मुसलमान, अशरफ) पर चुप्पी साध ली जाती है।
कई लोग इसे साजिश मानते हैं और कहते हैं कि सीएसडीएस का मकसद हिंदू समाज को तोड़कर कांग्रेस जैसे दलों को फायदा पहुंचाना है। योगेंद्र यादव और संजय कुमार जैसे नाम इस एजेंडे को हमेशा आगे बढ़ाते दिखते हैं। फिर, योगेंद्र कुमार किसान आंदोलन से लेकर उन तमाम मंचों पर खड़े नजर आते हैं, जो सरकार के विरोध में खड़े होते हैं। आईसीएसएसआर ने साफ कर दिया है कि सीएसडीएस का यह व्यवहार उनके नियमों का उल्लंघन है। शो कॉज नोटिस के बाद अगर सीएसडीएस संतोषजनक जवाब नहीं दे पाता, तो फंडिंग रोकने की नौबत आ सकती है। यह कदम न सिर्फ सीएसडीएस के लिए बड़ा झटका होगा, बल्कि इस बात की भी जांच शुरू हो सकती है कि विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल कहां हो रहा है। अगर साबित हो जाता है कि विदेशी पैसा किसी खास राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल हुआ तो कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
यह पूरा मामला अब साजिश के दावों से भरा हुआ है। एक तरफ जहां आईसीएसएसआर और विनीत जिंदल इसे जानबूझकर फैलाई गई अफवाह मान रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सीएसडीएस इसे तकनीकी गलती बता रहा है। लेकिन सवाल यह है कि एक प्रतिष्ठित संस्थान जैसे सीएसडीएस की टीम ने बिना जांच-पड़ताल के डेटा क्यों पेश किया? क्या यह गलती सचमुच भूल थी या इसके पीछे कोई बड़ा प्लान था? आरोप है कि विदेशी फंडिंग का दबाव सीएसडीएस पर है, जिसके चलते वह गलत डेटा पेश कर रहा है। हालांकि ये तो तय है कि यह घटना भारतीय लोकतंत्र और शोध संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।
सीएसडीएस को आईसीएसएसआर के शो-कॉज नोटिस और विनीत जिंदल की एफआईआर से साफ है कि यह मामला यहीं खत्म नहीं होगा। चुनाव आयोग की साख बचाने और फर्जी डेटा से नुकसान को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। अगर सीएसडीएस दोषी पाया जाता है, तो न सिर्फ उसकी फंडिंग पर असर पड़ेगा, बल्कि उसके शोध कार्यों पर भी सवाल उठेंगे। दूसरी तरफ विदेशी फंडिंग की जांच शुरू होने से सीएसडीएस को और दबाव का सामना करना पड़ सकता है। जनता के लिए भी यह सब एक सबक है कि सोशल मीडिया पर आने वाली हर खबर पर भरोसा करने से पहले उसकी सच्चाई जांच लेनी चाहिए।
यह पूरा मामला सीएसडीएस, आईसीएसएसआर और भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। फंडिंग को लेकर उठे सवाल, फर्जी डेटा का विवाद, और एफआईआर सब कुछ मिलाकर यह दिखाता है कि शोध संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। आईसीएसएसआर का कड़ा रुख और जिंदल की शिकायत से उम्मीद है कि सच सामने आएगा और दोषियों पर कार्रवाई होगी। लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि जांच निष्पक्ष हो, ताकि किसी का भी राजनीतिक फायदा न हो।
महाराष्ट्र चुनावों से जुड़े विवादास्पद सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर नागपुर पुलिस ने विकासशील समाज अध्ययन केंद्र (सीएसडीएस) के अधिकारी संजय कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 175, 353 (1) (बी), 212, और 340 (1) (2) के तहत दर्ज की गई है। जानकारी के लिए बता दें कि 17 अगस्त को संजय कुमार ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक पोस्ट साझा किया था, जिसमें उन्होंने नासिक पश्चिम और हिंगना निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि का दावा किया। कुमार के अनुसार, नासिक पश्चिम में मतदाताओं की संख्या 328,053 से बढ़कर 483,459 हो गई, जो 47.38 प्रतिशत की वृद्धि थी, वहीं हिंगना में यह आंकड़ा 314,605 से बढ़कर 450,414 हो गया, जो 43.08 प्रतिशत की बढ़ोतरी थी। कुमार ने इसे चुनावी प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ी का संकेत मानते हुए चिंता जताई थी।
संजय कुमार के पोस्ट के वायरल होने के बाद, इस पर विवाद ने तूल पकड़ लिया। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि मतदाता सूची में जानबूझकर गड़बड़ी की गई है। विवाद बढ़ने के बाद 19 अगस्त को संजय कुमार ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर माफी मांगते हुए लिखा कि मैं महाराष्ट्र चुनावों के संदर्भ में किए गए अपने ट्वीट के लिए माफी मांगता हूं। 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के आंकड़ों की तुलना करते समय एक गलती हुई थी। हमारी डेटा टीम ने आंकड़ों को गलत पढ़ा था। मैंने अब उस ट्वीट को हटा लिया है और मेरा किसी भी प्रकार की गलत सूचना फैलाने का कोई इरादा नहीं था। माफी के बावजूद नागपुर पुलिस ने संजय कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है,जिसमें उनके ऊपर झूठी सूचना फैलाने और चुनाव संबंधी उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। पुलिस ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है और मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है।
मतिशून्य : मकान नंबर-0 का मतलब वोट चोरी नहीं होता
नई दिल्ली, 21 अगस्त (एजेंसियां)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी बालपन के साथ-साथ मतिशून्यता भी प्रदर्शित कर रहे हैं। राहुल गांधी ने मकान नंबर-0 का हवाला देते हुए चुनाव आयोग पर चुनाव चोरी का आरोप लगाया था। जबकि बुजुर्ग राजकुमार को अब तक नहीं पता था कि बेघर मतदाताओं के आवास नंबर के आगे शून्य लिखा होता है। रैन बसेरा, आश्रय स्थलों या आश्रमों में रहने वाले मतदाताओं के भी घर का नंबर शून्य ही लिखा होता है। इसके बावजूद चुनाव आयोग राहुल गांधी के विद्वत वक्तव्य सुनने के लिए प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन वे चुनाव आयोग के समक्ष अवतरित नहीं हुए और न कोई औपचारिक शिकायत दर्ज कराई।
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