आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलना दुखद
नई दिल्ली, 25 अगस्त (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अभय एस ओका ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने विशेष रूप से आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पूर्व का फैसला बदले जाने को दुखद बताया और कहा कि यह चलन में न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। आवारा कुत्तों पर दिए गए जस्टिस जेबी पारदीवाला के फैसले को विरोध के बाद बदल दिया गया। जस्टिस ओका ने कहा, इस तरह सुप्रीम कोर्ट का न्यायिक फैसला गंभीर सवालों के घेरे में आ गया है।
उल्लेखनीय है कि 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों को पकड़कर उन्हें शेल्टर होम (आश्रय स्थल) में भेजने का आदेश दिया था। पशु प्रेमियों, मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले की आलोचना की। इस आलोचना के तुरंत बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस भूषण आर गवई ने प्रशासनिक स्तर पर हस्तक्षेप करते हुए इस मामले को जस्टिस पारदीवाला की पीठ से हटाकर एक बड़ी पीठ को सौंप दिया, जिसने पारदीवाला का फैसला बदल दिया।
जस्टिस अभय ओका ने इसे लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि अगर किसी आदेश को बदलना हो, तो वह केवल उसी पीठ द्वारा दोबारा सुनवाई करके या समीक्षा याचिका के जरिए किया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार नहीं है कि वे किसी पीठ को पत्र लिखकर उसके आदेश में बदलाव करें या मामला किसी दूसरी पीठ को सौंप दें। उनका कहना है कि इस तरह का प्रशासनिक हस्तक्षेप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। अगर किसी पीठ के आदेश पर असहमति है, तो उस पर कानूनी प्रक्रिया के तहत काम होना चाहिए, न कि सार्वजनिक आलोचना के दबाव में आकर पीठ को बदला जाए। जस्टिस ओका ने सुझाव दिया कि अगर मामला बड़ी पीठ को सौंपना ही था, तो जस्टिस पारदीवाला की मौजूदा पीठ में एक और जज जोड़कर बड़ी पीठ बनाई जा सकती थी। इससे न्यायिक प्रक्रिया में निरंतरता बनी रहती और पहले से जुड़ी पीठ को अचानक हटाने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने इसे सैद्धांतिक रूप से गलत बताया।
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